देश की खबरें | रोजगार खोने के डर से वायु प्रदूषण के खिलाफ आवाज नहीं उठाती हैं 94 प्रतिशत निर्माण मजदूर

नयी दिल्ली, 24 मई दिल्ली में एक अध्ययन के तहत किये गए सर्वेक्षण के अनुसार निर्माण कार्यों में शामिल 94 प्रतिशत महिला मजदूर रोजगार खोने के डर से वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव के खिलाफ न तो अपनी आवाज उठाती हैं और ना ही इससे बचने के लिए कोई कदम उठाती हैं।

'पर्पस इंडिया' और 'महिला हाउसिंग ट्रस्ट' ने अगस्त 2021 से अप्रैल 2022 के बीच दिल्ली में बक्करवाला, गोकुलपुरी और सावदा घेवरा की निर्माण मजदूरों पर संयुक्त रूप से अध्ययन किया, ताकि उन्हें उन पर और उनके बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव के बारे में जागरुक किया जा सके।

इसके तहत महिला निर्माण मजदूरों की प्राथमिकताओं और मुद्दों को समझने और इस समूह पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को जानने के लिये 390 महिला निर्माण मजदूरों पर शुरुआती अध्ययन किया गया।

अध्ययन में यह सामने आया कि इनमें से 94 प्रतिशत महिला मजदूर रोजगार खोने के डर के चलते वायु प्रदूषण के खिलाफ आवाज नहीं उठाती हैं।

सर्वेक्षण में शामिल की गई महिला मजदूर मुख्य रूप से 36 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग की थीं। इनमें ज्यादातर निरक्षर या कम पढ़ी-लिखी और अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़ा वर्ग से थीं। इनमें 87 अविवाहित थीं।

सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 85 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 75 प्रतिशत ने कहा कि जब वायु गुणवत्ता खराब होती है, तो वे बीमार और असहज महसूस करती हैं।

तीन-चौथाई से अधिक महिला मजदूरों का मानना ​​था कि निर्माण स्थलों पर काम करना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

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