डब्ल्यूटीओ की प्रासंगिकता खतरे में है. सदस्य देश मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं. अमेरिका और भारत जैसे देशों का रवैया चिंताजनक है.विश्व व्यापार संगठन में एक संकट विकराल होता जा रहा है. सदस्य देशों के बीच विवादों के मामलों का अंबार बढ़ता जा रहा है, और चिंताएं भी. 2019 के बाद से अमेरिका ने संगठन के अपील बोर्ड में नये जजों की नियुक्ति नहीं होने दी है. इस कारण 29 मामले लंबित पड़े हैं और विवाद सुलझाने की संगठन की पूरी व्यवस्था ठप्प हो गयी है.
जिन देशों के विवाद लंबित हैं, उनमें चीन, डॉमिनिकन रिपब्लिक, भारत, इंडोनेशिया. मोरक्को, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका शामिल हैं.
पिछले महीने पूर्व उप महासचिव ऐलन वॉल्फ ने एक सम्मेलन में सदस्य देशों से अपील की कि 2024 से नये विवाद दायर करने से परहेज करें. संगठन ने कहा है कि कोविड महामारी, यूक्रेन में युद्ध और महंगाई जैसे एकाधिक कारणों से वैश्वीकरण में भरोसे को भारी नुकसान हुआ है. नतीजतन डब्ल्यूटीओ के नियमों के प्रति सम्मान लगातार घट रहा है.
बढ़ रहा है नुकसान
पिछले महीने डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश एकपक्षीय निर्णय ले रहे हैं, जो जारी रहता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में दरारें पड़ जाएंगी और पांच फीसदी वैश्विक आय का नुकसान होगा.
2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एक के बीद एक चीन और अन्य देशों पर व्यापारिक प्रतिबंध लगा रहे थे. हालांकि तब से प्रतिबंधों में तो कमी आयी है लेकिन विभिन्न देशों द्वारा अपने यहां निर्यात पर लगाये गये प्रतिबंधों के कारण नुकसान बढ़ा है.
2016 से 2019 के बीच ऐसे व्यापारिक प्रतिबंधों का औसत सालाना 21 का था. लेकिन पिछले साल इनकी संख्या बढ़कर 139 पर पहुंच गयी थी. मसलन, भारत ने अपने यहां चावल और गेहूं के निर्यात पर कई तरह के प्रतिबंध लगाये हैं. इसी तरह अमेरिका ने इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट लागू कर क्लीन-टेक पर सब्सिडी कम कर दी है, ताकि अमेरिका में उत्पादन बढ़ाया जा सके और चीन से आ रहे इलेक्ट्रिक वाहन महंगे हो गये हैं. यूरोप भी चीन की ईवी तकनीक की जांच कर रहा है. इन प्रतिबंधों ने डब्ल्यूटीओ में चिंताएं बढ़ा दी हैं.
प्रासंगिकता का संकट
अमेरिका ने बाई अमेरिकन एक्ट के तहत किसी भी उत्पाद में स्थानीय सामग्री के इस्तेमाल की मात्रा बढ़ा दी है. इसी तरह यूरोपीय संघ ने कम कार्बन उत्सर्जन और महत्वपूर्ण खनिजों की घरेलू सप्लाई बढ़ाने के नाम पर कई तरह की सब्सिडी दी हैं.
हाइनरिष फाउंडेशन में सीनियर फेलो कीथ रॉकवेल कहते हैं कि डब्ल्यूटीओ अप्रासंगिक हो जाने के कगार पर पहुंच गया है.
वह कहते हैं, "लोग डब्ल्यूटीओ के प्रति जवाबदेही को लेकर किसी तरह का बंधन ही महसूस नहीं कर रहे हैं. एक दशक पहले ऐसा नहीं था.”
रॉकवेल कहते हैं कि दुनिया में नियम-आधारित व्यापारिक व्यवस्था बनाने का सबसे बड़ा प्रचारक रहा अमेरिका भी अब डब्ल्यूटीओ को लेकर लापरवाह हो गया है.
कई देशों ने डब्ल्यूटीओ के नियमों में दिये गये अपवादों का फायदा उठाया है. मसलन, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नियमों में कुछ छूट मिलती है. इसे आधार बनाकर अमेरिका ने धातुओं का आयात कम कर दिया है. इसी तरह कई खाड़ी देशों ने कतर के साथ व्यापार पर कई तरह की रोक लगा दी हैं.
उधर चीन ने अहम खनिजों का निर्यात रोक दिया है तो अमेरिका ने ऐसे नियम बना दिये हैं कि चीन उसकी तकनीक इस्तेमाल ना कर सके. विशेषज्ञ कहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा ने वैश्विक व्यापार नियमों के दायरे को तोड़ दिया है.
सुधारों की जरूरत
डब्ल्यूटीओ में 164 सदस्य देश हैं. उसके 620 कर्मचारी जेनेवा झील के किनारे बनी एक कलात्मक इमारत से काम करते हैं. लेकिन इस इमारत की प्रतीकात्मक अहमियत लगातार कम हो रही है और सुधारों की सख्त दरकार है. पर समस्या ये है कि किसी भी तरह के बदलाव के लिए पूर्ण सहमति की जरूरत होती है, जो मौजूदा हालात में लगभग असंभव दिखायी दे रही है.
सबसे बड़ा सुधार तो अपील बॉडी को दोबारा सक्रिय करने से जुड़ा है, जो अमेरिका को स्वीकार नहीं है. अमेरिका मानता है कि डब्ल्यूटीओके सुधारों के केंद्र में विभिन्न देशों की सरकारी कंपनियों की भेदभावपूर्ण गतिविधियां होनी चाहिए, क्योंकि उनके कारण प्रतिद्वन्द्विता प्रभावित होती है. उसका इशारा चीन की ओर है.
डब्ल्यूटीओ के सुधारों में वे मुद्दे भी हैं जो इसके गठन के वक्त ध्यान में नहीं रखे गये थे. जैसे कि जलवायु परिवर्तन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा स्थानांतरण की प्रक्रिया. फरवरी में जब डब्ल्यूटीओ का 13वां मंत्री-स्तरीय सम्मेलन होगा तो सुधारों का मुद्दा चर्चा के केंद्र में होगा.
अव्यवस्था का खतरा
एक सदस्य देश के अधिकारी ने जेनेवा में बताया कि ऐसा लगता है कि अब अमेरिका वैश्विक नियमों को उदार बनाने को अपने हित में नहीं मानता. 2024 में यह विचार और ज्यादा मजबूत हो सकता है, जब वहां राष्ट्रपति चुनाव होने हैं.
इस अधिकारी ने बताया, "अगर वे ऐसा नहीं मानते तो इससे डब्ल्यूटीओ की धार कुंद हो जाती है. जिन वजहों से 12वें सम्मेलन में मुश्किलें आयी थीं, वही 13वें सम्मेलन को भी मुश्किल बनाएंगी. यानी भारत का विरोध और अमेरिका की उदासीनता.”
डब्ल्यूटीओ का तर्क है कि दुनिया के एकीकरण के लिए पुनर्वैश्विकरण की नयी मुहिम की जरूरत है ताकि जलवायु परिवर्तन से लेकर गरीबी उन्मूलन तक विभिन्न चुनौतियों से पार पाया जा सके. अभी भी 75 फीसदी वैश्विक व्यापार नियमों के तहत होता है. संगठन के महासचिव न्गोजी ओकोंजो-इविएला कहती हैं, "यह खत्म हो जाएगा तो सिर्फ अव्यवस्था रह जाएगी, जो नियम-आधारित नहीं बल्कि शक्ति-आधारित होगी.”
वीके/एए (रॉयटर्स)