
नई जर्मन सरकार अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए तत्काल एक सुधार कार्यक्रम शुरू करना चाहती है. हालांकि, संकट इतना गंभीर है कि आर्थिक विशेषज्ञों को तेजी से सुधार की उम्मीद कम ही दिखती है. आखिर इसकी वजह क्या है?मंदी शब्द का अर्थ है ऐसी अर्थव्यवस्था जो सिकुड़ रही हो. जर्मनी में पिछले दो वर्षों से ऐसा हो रहा है. यह यूरोपीय संघ में ऐसा एकमात्र देश है जो अपनी अर्थव्यवस्था में इस तरह की गिरावट का सामना कर रहा है.
यह देश 2011 में भारी वित्तीय और आर्थिक संकट के दौर से गुजर चुका है. उस समय देश में कई कंपनियां बंद हो गई थीं. 2024 में उससे भी ज्यादा कंपनियां बंद हो गईं. यहां बिजली की कीमतें काफी ज्यादा बढ़ गई हैं. बिजली की ऊंची कीमतों का मतलब है कि ज्यादा ऊर्जा इस्तेमाल करने वाले उद्योगों को विशेष रूप से कड़ी मार झेलनी पड़ी है.
सिर्फ पैसे खर्च करने से नहीं हो जाएगा जर्मनी का विकास
इसके अलावा, देश में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी के कारण श्रमिकों और विशेषज्ञों की कमी की वजह से कंपनियों को बंद करना पड़ रहा है. जर्मनी की बढ़ती नौकरशाही कारोबार को बाधित करने वाला एक और प्रमुख कारक है.
नई सरकार ने स्थिति को जल्दी और स्थायी रूप से सुधारने का लक्ष्य रखा है, लेकिन यह काम रातों-रात नहीं होगा. यह संघीय सरकार के आर्थिक सलाहकार निकाय का निष्कर्ष है. अपनी रिपोर्ट में, जर्मन काउंसिल ऑफ इकोनॉमिक एक्सपर्ट्स ने कहा कि ‘काफी धीमी रफ्तार का दौर' चल रहा है और उन्हें लगता है कि जल्दी से कोई बड़ा सुधार नहीं होगा.
अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा नहीं
2025 के लिए, अर्थशास्त्र के पांच प्रोफेसरों ने ठहराव का अनुमान लगाया है, जिसका मतलब है शून्य वृद्धि. 2026 में, वे अर्थव्यवस्था को संभवतः एक प्रतिशत वृद्धि के साथ कुछ हद तक ठीक होते हुए देखते हैं. हालांकि, विशेषज्ञ इस बात से पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि जर्मनी मध्यम और लंबी अवधि में आर्थिक सफलता की राह पर वापस आ पाएगा.
जर्मन अर्थव्यवस्था कम प्रतिस्पर्धी होती जा रही है. एक बड़ा कारण 2022 में रूस का यूक्रेन पर हमला करना और रूस से गैस की सप्लाई बंद होना था. सस्ती ऊर्जा और उच्च इंजीनियरिंग कौशल का इस्तेमाल करके, दुनिया भर में मांग वाले उत्पादों का निर्माण करने का सफल जर्मन व्यापार मॉडल तभी से इतिहास बन गया है.
डॉनल्ड ट्रंप ने जर्मन निर्यात पर लगा दिया ब्रेक
कई घरेलू समस्याओं की वजह से भी जर्मन अर्थव्यवस्था गति नहीं पकड़ पा रही है. आर्थिक विशेषज्ञों की रिपोर्ट में कहा गया है, "सरकारी कामकाज के नियम और मंजूरी मिलने में लगने वाला ज्यादा समय देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को कम कर रहा है.”
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों का भी नकारात्मक असर जर्मन अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. उनके शुल्क दुनिया भर में आर्थिक विकास को खतरे में डाल रहे हैं, लेकिन निर्यात आधारित जर्मन अर्थव्यवस्था पर इसका सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ रहा है.
ट्रैफिक के साथ अर्थव्यवस्था को भी रोक रही हैं जर्मनी की टूटी सड़कें
कंपनियों पर बोझ कम करने के लिए, संघीय सरकार के आर्थिक मामलों की मंत्री काथरीना राइषे जुलाई के मध्य तक कई शुरुआती उपाय पेश करना चाहती हैं. राइषे ने पिछले सप्ताह एक आर्थिक मंच पर कहा कि बिजली पर लगने वाले टैक्स को कम किया जाएगा और श्रम बाजार में सुधार किया जाएगा. उन्होंने कहा कि विकास आज की जरूरत है. सरकार कॉर्पोरेट टैक्स को कम करके कंपनियों को प्रोत्साहित करेगी.
नए कारोबार मॉडल की जरूरत
आर्थिक विशेषज्ञों का पैनल संघीय सरकार से भविष्य के बारे में यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की मांग कर रहा है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ऐसी नौकरियों को बचाने का कोई प्रयास न किया जाए जो लंबे समय तक चलने वाली नहीं हैं.
जर्मन काउंसिल ऑफ इकोनॉमिक एक्सपर्ट्स की अध्यक्ष मोनिका श्नित्सर ने कहा, "ऐसी आर्थिक नीति जिसका उद्देश्य सब्सिडी देकर संरचनात्मक बदलाव को रोकना है वह लंबे समय में सफल नहीं हो सकती है.” इसके बजाय, नए कारोबारी मॉडल और व्यवसायों को बढ़ावा देने पर विचार करना चाहिए.
सत्तारूढ़ सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू)/क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) और सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) द्वारा शुरू किया गया मल्टी-बिलियन-यूरो वित्तीय पैकेज जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए उम्मीद की एक नई किरण है. अगले 12 वर्षों में खस्ताहाल बुनियादी ढांचे में लगभग 500 अरब यूरो का निवेश किया जाना है.
पैसा लालच को बढ़ावा देता है
अर्थशास्त्री आखिम ट्रुगर ने कहा, "अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो यह धन जर्मनी को भविष्य के लिए तैयार कर सकता है, जिससे विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.” हालांकि, उन्होंने कहा कि यह तभी संभव है, जब पैसा वास्तव में निवेश पर खर्च किया जाए.
अर्थशास्त्रियों को संदेह है कि सत्तारूढ़ दल अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त धन का इस्तेमाल कर सकते हैं. जैसे, गृहिणियों के लिए पेंशन में वृद्धि, कृषि डीजल सब्सिडी, और रेस्तरां पर लगने वाले टैक्स में कमी. अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि 500 अरब यूरो के पैकेज का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए.
चूंकि इतनी राशि जल्दी खर्च नहीं की जा सकती, इसलिए विशेषज्ञों को कम से कम 2026 तक सकारात्मक असर की उम्मीद नहीं है.
वहीं, 500 अरब यूरो का फंड और रक्षा खर्च में भारी वृद्धि के लिए नया कर्ज लिया गया है, इसलिए जर्मनी अब यूरोपीय संघ के कर्ज के लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाएगा. यह एक ऐसी चीज है जिसके बारे में विशेषज्ञों ने भी चेतावनी दी है. उनका कहना है कि अगर जर्मनी खुद को संरचनात्मक रूप से आधुनिक बनाने में कामयाब होता है, तभी इतना खर्चा करना ठीक माना जाएगा.
पार्ट-टाइम नौकरी कर रहे हैं कई जर्मन
चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने बार-बार कहा है कि जर्मनी में लोगों को ज्यादा काम करने की जरूरत है. उन्होंने हाल ही में सीडीयू आर्थिक परिषद को बताया, "हम हफ्ते में चार दिन काम और बाकी समय आराम करके तरक्की नहीं कर सकते हैं.
उन्होंने लोगों के लिए काम के घंटे को और लचीला बनाने की मांग की. साथ ही, रिटायरमेंट की उम्र के बाद भी स्वेच्छा से काम जारी रखने वालों को प्रोत्साहन देने की बात कही.
अर्थशास्त्र की प्रोफेसर वेरोनिका ग्रिम ने कहा कि यह सही है कि श्रम बाजार में भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन की जरूरत है. उनका मानना है कि अगर बच्चों की देखभाल की व्यवस्था बेहतर हो जाए, तो ज्यादा महिलाएं काम कर सकती हैं. हालांकि, अगर शिक्षकों की संख्या बहुत कम है, तो ऐसा कैसे किया जा सकता है?
ग्रिम का सुझाव है कि जब काम करने वाले लोग कम हो जाएंगे, तो जो लोग काम करेंगे उन्हें ज्यादा काम करना पड़ेगा. वह कहती हैं कि यह डिजिटलीकरण और नौकरशाही में कमी के माध्यम से संभव है.
नौकरशाही को कैसे कम किया जा सकता है?
इतनी सारी राजनीतिक कोशिशों के बाद भी, कंपनियों पर नौकरशाही की लागत का बोझ अभी तक ज्यादा कम नहीं हुआ है.
विशेषज्ञों का सुझाव है कि आवेदन और मंजूरी मिलने की प्रक्रियाओं को तेज किया जाए, कंपनियों को सरकार को जो जानकारी देनी पड़ती है उसे कम किया जाए, सरकारी कामकाज का डिजिटलीकरण किया जाए और पूरे देश के लिए एक जैसा ई-गवर्नमेंट पोर्टल बनाया जाए. उनका कहना है कि नए नियम असरदार और आम लोगों के लिए सुविधाजनक होने चाहिए, अन्यथा इससे नौकरशाही की स्थिति और ज्यादा खराब हो जाएगी.
एक्सपर्ट्स काउंसिल ने इस पूरे हालात पर कहा कि उन्हें ‘उम्मीद भी है और डर भी'. जर्मन चैंबर ऑफ इंडस्ट्री ऐंड कॉमर्स ने अपनी प्रेस रिलीज में लिखा, "वक्त कम है, कंपनियां तैयार हैं. अब राजनेताओं को कुछ करके दिखाना होगा.”