मध्य पूर्व में क्यों बढ़ रहा गोल्डन वीजा और पासपोर्ट का चलन
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

यूरोप के देश भ्रष्टाचार और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के कारण ‘गोल्डन वीजा’ या ‘निवेश के जरिए रेजीडेंसी’ योजनाओं को बंद कर रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर मध्य पूर्व के देशों में यह तथाकथित ‘नागरिकता उद्योग’ तेजी से बढ़ रहा है.वर्ष 2014 में ‘इस्लामिक स्टेट' नामक चरमपंथी समूह ने इराक के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था. उसका प्रभाव देश के अन्य हिस्सों में तेजी से बढ़ रहा था. उस समय इराकी पत्रकार हिबा अहमद ने इस समूह से बचने के रास्ते की तलाश शुरू कर दी थी. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे लगा कि सुरक्षित रहने के लिए इराक से बाहर किसी ठिकाने की जरूरत है, ताकि स्थिति ज्यादा खराब होने पर मैं वहां जाकर रह सकूं.”

ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर काफी ज्यादा खोज करने के बाद बगदाद की मूल निवासी हिबा ने तुर्की में एक छोटा सा अपार्टमेंट खरीदने का फैसला किया. उन्हें इस्तांबुल से लगभग एक घंटे की दूरी पर स्थित छोटे से समुद्र तटीय रिजॉर्ट के पास करीब 40,000 डॉलर की कीमत वाला एक अपार्टमेंट मिला. उन्होंने इस अपार्टमेंट को खरीद लिया. 2017 में ‘इस्लामिक स्टेट' समूह का सफाया कर दिया गया, लेकिन हिबा अब भी तुर्की स्थित अपने अपार्टमेंट में नियमित तौर पर आती हैं.

हिबा कहती हैं, "मैं यहां अब भी नियमित तौर पर आती हूं. इसकी वजह यह है कि बगदाद में काफी ज्यादा गर्मी पड़ती है. जबकि यहां का वातावरण काफी शांत है. मैं यहां दो या तीन महीने तक रहती हूं.”

इस बीच तुर्की ने हाल ही में अपने यहां रहने से जुड़े नियमों को सख्त बनाया है, इसके बावजूद हिबा यहां सामान्य रूप से आकर रह सकती हैं, क्योंकि उन्होंने तुर्की में अपार्टमेंट खरीदा है. इस वजह से उनका वीजा अगले दो साल तक तुर्की में रहने के लिए नियमित तौर पर नवीनीकृत हो जाता है. वह बताती हैं कि अगर उन्होंने तुर्की में अपार्टमेंट नहीं खरीदा होता, तो उन्हें सिर्फ एक महीने रहने की अनुमति वाला पर्यटन वीजा ही मिलता. अगर वह चाहतीं, तो तुर्की की नागरिकता के लिए आवेदन भी कर सकती थीं.

गोल्डन वीजा के मौके

हिबा को तुर्की का जो वीजा मिलता है उसे बोलचाल की भाषा में ‘गोल्डन वीजा' कहा जाता है. इसे निवेश के जरिए रेजीडेंसी (आरबीआई) के तौर पर भी जाना जाता है. यह काफी किफायती होता है. वहीं, निवेश या ‘गोल्डन पासपोर्ट' योजनाओं के जरिए भी लोग किसी दूसरे देश की नागरिकता हासिल कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए आमतौर पर काफी ज्यादा धन, कागजी कार्रवाई और समय की जरूरत होती है.

मध्य पूर्व के देशों में इन दोनों तरह की योजनाओं के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. गोल्डन वीजा या गोल्डन पासपोर्ट की सुविधा उपलब्ध कराने वाले देश ज्यादा से ज्यादा निवेश और विदेशी मुद्रा जमा करना चाहते हैं. जो लोग इन योजनाओं में शामिल होते हैं उन्हें बेहतर जिंदगी जीने का मौका उपलब्ध कराया जाता है. इससे उन्हें उस देश में आने-जाने के ज्यादा मौके मिलते हैं. साथ ही, अपने देश में किसी तरह की राजनीतिक समस्या होने, आर्थिक उथल-पुथल या किसी तरह की तनावपूर्ण स्थिति होने पर गोल्डन वीजा या पासपोर्ट धारकों को वहां रहने की सुविधा मिलती है.

कनाडा, अमेरिका, आयरलैंड और यूरोप के कई देशों में भी ये सभी योजनाएं थीं, लेकिन पिछले पांच वर्षों से मध्य पूर्व के देशों में भी ऐसी योजनाओं ने लोकप्रियता हासिल की है. सामान्य शब्दों में कहें, तो अब मध्य पूर्व के देश भी गोल्डन वीजा या पासपोर्ट की चाह रखने वाले लोगों के पसंदीदा ठिकाने बन रहे हैं.

मार्च की शुरुआत में, मिस्र ने निवेश के जरिए विदेशियों के लिए नागरिकता हासिल करने की प्रक्रिया को और आसान बना दिया है. इस देश में 2020 के बाद से निवेश के जरिए नागरिकता या सीबीआई योजना शुरू हुई. हालांकि, आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे इस देश ने ज्यादा से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय निवेश और विदेशी मुद्रा पाने के लिए इस वर्ष इन योजनाओं से जुड़ी शर्तों में ढील दी.

संयुक्त अरब अमीरात में 2019 से गोल्डन वीजा योजना है, लेकिन 2022 में इस योजना में काफी ज्यादा बदलाव किया गया. इससे यह सस्ता हो गया है. साथ ही, लोगों के लिए यहां का गोल्डन वीजा पाना आसान हो गया है.

जॉर्डन में 2018 से सीबीआई योजना लागू है. कतर ने 2020 में रियल एस्टेट में निवेश करने और प्रॉपर्टी खरीदने के बदले लंबी और अस्थायी निवास की पेशकश शुरू की. बहरीन में 2022 से ‘गोल्डन वीजा रेजिडेंसी' योजना है और बड़े पैमाने पर निवेश करने वाले विदेशियों के लिए इस महीने ‘गोल्डन लाइसेंस' पेश किया गया. सऊदी अरब ने इस साल ‘प्रीमियम रेजिडेंसी' योजना की शुरुआत की है.

यूरोप चरणबद्ध तरीके से ‘गोल्डन वीजा' योजना समाप्त कर रहा है

इटली में यूरोपियन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर और ग्लोबल सिटिजनशिप ऑब्जर्वेटरी की सह-निदेशक येलेना जांकिक ने कहा, "मध्य पूर्व में जो चलन शुरू हुआ है वह पूरी तरह यूरोप के विपरीत है.” उन्होंने कहा कि यूरोप में पुर्तगाल, ग्रीस और साइप्रस में पहले गोल्डन पासपोर्ट और रेजीडेंसी योजनाएं थीं, जो अब चरणबद्ध तरीके से खत्म की जा रही हैं. ऐसा इन योजनाओं से जुड़े घोटालों और जोखिमों के कारण किया जा रहा है.

आलोचक अक्सर ऐसी योजनाओं की आलोचना करते हैं. वे कहते हैं कि देश सबसे ज्यादा बोली लगाने वालों को नागरिकता बेचते हैं. उनका तर्क है कि ऐसी योजनाओं से देश की सुरक्षा से जुड़े जोखिम बढ़ते हैं, अचल संपत्ति की कीमतें बढ़ती हैं, भ्रष्टाचार बढ़ता है और मनी लॉन्ड्रिंग के जोखिम बढ़ जाते हैं. यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद यूरोपीय संघ ने सभी सदस्य देशों से ऐसी योजनाओं को खत्म करने का आग्रह किया है. ईयू को डर है कि ऐसी योजनाओं का लाभ वे लोग ले सकते हैं जिनपर प्रतिबंध लगाया गया है.

येसेना ने कहा, "मौजूदा हालात को देखते हुए मुझे लगता है कि यूरोप अब गोल्डन वीजा की चाह रखने वाले लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है. इसलिए, अब लोगों ने नए विकल्पों की तलाश शुरू कर दी है.”

नागरिकता के लिए फास्ट ट्रैक

निवेश के जरिए नागरिकता हासिल करने का विचार 1980 के दशक का है. इस क्षेत्र में शामिल कंपनियों के संगठन स्विट्जरलैंड स्थित इन्वेस्टमेंट माइग्रेशन काउंसिल (आईएमसी) के मुताबिक, पहली सीबीआई योजना 1982 में टोंगा में शुरू की गई थी. इसके बाद 1984 में सेंट किट्स और नेविस में शुरू की गई.

दरअसल, उपनिवेशवाद खत्म होने के बाद छोटे-छोटे द्वीपीय देश आर्थिक मोर्चे पर काफी ज्यादा संघर्ष कर रहे थे. इसलिए, उन्होंने निवेश के बदले नागरिकता या निवास देने की पेशकश की, ताकि धन जुटा सकें.

आईएमसी के मुताबिक, आज अधिकांश देश निवेशकों को नागरिकता देने के लिए किसी न किसी तरह की योजना चलाते हैं. हालांकि, लगभग 80 देशों द्वारा मौजूदा समय में पेश की जाने वाली आरबीआई या सीबीआई योजनाओं और अन्य योजनाओं के बीच अंतर करना जरूरी है.

पर्याप्त निवेश के बदले ये देश तुरंत या फास्ट ट्रैक के माध्यम से नागरिकता या निवास की सुविधा उपलब्ध कराते हैं. कैरेबियाई देशों में इसके लिए करीब 1,00,000 डॉलर तक खर्च करने पड़ते हैं. वहीं, यूरोप में निवेश की यह रकम बढ़कर करीब 3.25 मिलियन डॉलर तक पहुंच जाती है. कुछ योजनाओं के तहत निवेशकों को उस देश में कुछ समय तक रहना पड़ता है या कारोबार स्थापित करना होता है. वहीं, कुछ देशों में उन्हें जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती.

येसेना पिछले एक दशक से इस क्षेत्र का अध्ययन कर रही हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "नागरिकता उद्योग इस निवेश के कारण ही विकसित हुआ है. इस उद्योग में शामिल कंपनियां निवेशकों को ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकारी विभागों में पैरवी भी करती हैं.”

इस क्षेत्र से जुड़े पर्यवेक्षकों का कहना है कि मध्य पूर्व देश की सरकारों के साथ-साथ उन देशों के अमीर लोग भी आरबीआई और सीबीआई योजनाओं पर विशेष ध्यान दे रहे हैं जो काफी ज्यादा आर्थिक या सामाजिक उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं. जैसे, लेबनान, इराक, लीबिया और सीरिया. गोल्डन वीजा के लिए कौन आवेदन करता है?

गोल्डन पासपोर्ट या वीजा के लिए कौन आवेदन कर रहा है या कितने लोग आवेदन कर रहे हैं, इसकी सटीक संख्या का पता लगाना कठिन है. देश की योजनाओं में ज्यादा पारदर्शिता नहीं है और इससे जुड़ा आंकड़ा भी काफी समय बाद प्रकाशित होता है.

इन्वेस्टमेंट माइग्रेशन काउंसिल के क्षेत्रीय प्रतिनिधि डेविड रेगुइरो ने डीडब्ल्यू को बताया, "इन योजनाओं में शामिल होने वाले मध्य पूर्व के निवेशकों की राष्ट्रीयता का कोई सटीक डेटा मौजूद नहीं है, लेकिन उन निवेशकों के कुछ पैटर्न दिखाई देते हैं. मध्य पूर्व के निवेशक दुनिया भर में चलने वाली इस तरह की योजनाओं के सबसे ज्यादा सक्रिय उपभोक्ताओं में शामिल हैं. कुछ देशों को सीबीआई योजना के तहत मिले आवेदन में तीन-चौथाई संख्या इस क्षेत्र के लोगों की है.”

उन्होंने कहा, "अलग-अलग राष्ट्रीयता के हिसाब से देखें, तो सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन, लेबनान, सीरिया और ईरान जैसे देशों के निवेशक सबसे अधिक सक्रिय हैं.”

रेगुइरो ने बताया कि अधिकांश अप्रवासी निवेशकों की संपत्ति 2 मिलियन डॉलर से लेकर 10 मिलियन डॉलर के बीच है. इन निवेशकों में से एक चौथाई के पास इससे कम संपत्ति है. हालांकि, यह सच है कि धनी लोग सबसे सक्रिय निवेशक हैं. वहीं, मध्यम आय वाले निवेशक भी इस योजना में काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

यह भी संभव है कि ऐसी योजनाएं जितनी कम खर्चीली और आसानी से उपलब्ध होंगी उतने ही ज्यादा लोग इनमें शामिल होने पर विचार करेंगे. जैसे कि मिस्र की सीबीआई योजना या तुर्की की रियल एस्टेट फॉर रेजीडेंसी योजना. जलवायु परिवर्तन या अपने देश में आर्थिक या सामाजिक उथल-पुथल होने पर कम संपत्ति वाले लोग भी इस योजना में शामिल होने पर विचार करेंगे.

दुबई स्थित इमिग्रेशन कंसल्टेंसी सेवरी एंड पार्टनर्स के प्रमुख जेरेमी सेवरी ने कहा, "कई सारे ऐसे लोग हैं जो सामान्य सीबीआई योजनाओं का खर्च वहन नहीं कर सकते. हो सकता है कि कुछ लोग 50,000 डॉलर से शुरू होने वाले इस बाजार का हिस्सा न बन पाएं.”

अनिश्चित भविष्य

विशेषज्ञों के मुताबिक, यह देखा जाना बाकी है कि क्या मध्य पूर्व की योजनाएं उन योजनाओं की तुलना में अधिक सफल होंगी जो इससे पहले पेश की गई थीं. रेगुइरो का मानना है कि मध्य पूर्व में इस तरह की और नई योजनाएं सामने आती रहेंगी. उन्होंने आगे कहा, "इन योजनाओं को लेकर एक और प्रवृत्ति यह देखी जा सकती है कि अब आवेदन करने वाले लोगों की जांच बेहतर तरीके से की जा रही है.”

वहीं, सेवरी ने कहा, "यह प्रक्रिया भरोसेमंद होनी चाहिए और इसका सही तरीके से पालन होना चाहिए.” उन्होंने तर्क दिया कि कुछ योजनाओं को काफी ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है, जैसे कि कैरेबियाई देशों में दशकों से चल रही योजनाएं.

येसेना ने कहा, "इन योजनाओं के लिहाज से मध्य पूर्व नया बाजार है. इसलिए इनका क्या होगा, यह कई बातों पर निर्भर करेगा. जैसे, ये योजनाएं कितनी लोकप्रिय होंगी और ‘नागरिकता उद्योग' किस तरह से अपनी प्रतिक्रिया देगा वगैरह.” इन योजनाओं को लेकर, यूरोप के देश कई तरह के नियम कानून से बंधे हैं और उन्हें सदस्य देशों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, लेकिन मध्य पूर्व में इस तरह का नियंत्रण नहीं है.

येसेना कहती हैं, "इसलिए, लोकतंत्र और बेहतर शासन से जुड़े दबाव कम हो सकते हैं, लेकिन आने वाले समय में इन योजनाओं से जुड़ी कई अन्य चुनौतियां सामने आ सकती हैं. उदाहरण के लिए, पिछले साल के अंत में यूरोपीय संघ ने पहली बार वानुआतु के नागरिकों के लिए यूरोप में वीजा-मुक्त यात्रा को निलंबित करने का निर्णय लिया. इसके पीछे की वजह यह बताई गई कि वानुआतु की निवेशक नागरिकता योजनाओं में गंभीर कमियां हैं, जो सुरक्षा से जुड़े जोखिमों को बढ़ाती हैं. ऐसी स्थितियों में यह देशों पर निर्भर करेगा कि वे इस तरह की चुनौतियों से कैसे निपटते हैं.