क्यों होता है विस्थापन और पलायन
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

युद्ध, तबाही, आर्थिक संकटः हर साल दुनिया भर में लाखों लोग घर छोड़ने को मजबूर होते हैं. कौन लोग कहां जा रहे हैं और क्यों. कौन उनका स्वागत कर रहा है और उनके लिए अपने दरवाजे किसने बंद कर दिये हैं.संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) का कहना है कि 2022 के मध्य तक, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के जरूरतमंदों के लिए बनाए गए अभियान के तहत आने वाले तमाम शरणार्थियों में से 72 प्रतिशत सिर्फ पांच देशों के थे.

इनमें से भी अधिकांश सीरिया से हैं जहां 2011 के अरब बसंत के दौरान हुए आंदोलनों से गृहयुद्ध भड़क उठा था. अंतरराष्ट्रीय भागीदारी के साथ छिड़ा ये युद्ध आज भी जारी है. दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रीय समूह वेनेजुएला के 56 लाख लोगों का है. यह दक्षिणी अमेरिकी देश कई सालों से गंभीर राजनीतिक, आर्थिक और मानवाधिकार संकट से जूझ रहा है. इतनी ही संख्या में शरणार्थी 2022 के मध्य में यूक्रेन से भागे थे. तबसे उनकी संख्या 80 लाख हो चुकी है. इस बीच यूक्रेन पर कब्जे के लिए रूस की लड़ाई जारी है.

शरणार्थियों का एक बड़ा हिस्सा, कुछ थोड़े से देशों से ही आता है. हालांकि जब बात आती है बेघरों को अपने यहां जगह देने वाले देशों की तो स्थिति पूरी साफ नहीं. संख्या के लिहाज से देखें तो पांच देशों ने सबसे अधिक शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी है. यूनएचसीआर के मैनडेट के तहत आने वाले तमाम शरणार्थियों में से 36 फीसदी लोग इन देशों में रहते हैं. ये हैं तुर्की, कोलंबिया, जर्मनी, पाकिस्तान और युगांडा.

आखिरी दो देशों के नाम इस सूची में देखने से वो अंदाजा भी गलत साबित हो जाता है जिसके मुताबिक अफ्रीका और एशिया के तमाम शरणार्थी यूरोप का ही रुख करते हैं. कई यूरोपीय लोगों को यही लगता है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि अफ्रीकी महाद्वीप के करीब 80 फीसदी प्रवासी अपने ही क्षेत्र में पलायन करते हैं. एशिया में भी अधिकांश शरणार्थी और प्रवासी, अपने महाद्वीप में ही रहते हैं, क्षेत्रीय पलायन को आवाजाही के सबसे प्रमुख पैटर्न के रूप में देखा गया है.

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पलायन करने वालों (माइग्रेंट्स) की अच्छी खासी संख्या के अलावा ये जानना भी प्रासंगिक है कि कौनसे देश अपनी कुल आबादी के अनुपात में सबसे ज्यादा प्रवासियों और शरणार्थियों को अपने यहां जगह देते हैं. इस समूह में लेबनान का नाम सबसे ऊपर आता है. 2020 के अंत में, सांख्यिकी की वेबसाइट स्टाटिस्टा के मुताबिक, लेबनान में रह रहे करीब 13 फीसदी लोग शरणार्थी थे और उनमें से अधिकांश सीरिया से थे. इस संख्या में फलीस्तीनी शरणार्थी शामिल नहीं हैं जो सैकड़ों, हजारों की तादाद में लेबनान में रहते हैं.

कई लोग ये जानकर हैरान होंगे कि कैरेबियाई द्वीप अरूबा और कुरुकाओ भी आबादी के सापेक्ष बड़ी संख्या में शरणार्थियों को अपने यहां जगह देने के मामले में अव्वल है. स्टाटिस्टा के मुताबिक 2020 के आखिर में अरूबा पूरी दुनिया में आनुपातिक रूप से सबसे ज्यादा संख्या में शरण देने वाला द्वीपदेश बन गया था.

अरूबा के 112000 निवासियों में से 16 फीसदी लोग शरणार्थी थे. इनमें अधिकांश संख्या पड़ोसी वेनेजुएला के नागरिकों की थी. अरूबा और कुरुकाओ, नीदरलैंड्स राजशाही के दो घटक देश हैं, उसके ओवरसीज प्रदेश हैं, वे यूरोपीय संघ का हिस्सा नहीं है लेकिन उससे करीब से जुड़े हुए हैं.

2014-2022 के बीच 50,000 से ज्यादा मरे या लापता हुए

शरणार्थी और प्रवासी नयी जिंदगी की तलाश में सफर करते हुए कई खतरों का सामना करते हैं. वे भूख, बीमारी और हिंसा से जूझते हैं. इनमें से कई लोग पैसे देकर अपनी जिंदगी को खतरे में डालते हैं. पलायन से जुड़े अंतरराष्ट्रीय संगठन (आईओएम) के लापता प्रवासी प्रोजेक्ट से मिली सूचना के मुताबिक 2014 से 2022 के बीच कम से कम 50000 लोग मारे गए थे या लापता थे.

इनमें से आधा से ज्यादा मौतें और गुमशुदगी, भूमध्य सागर के रास्ते में हुई. 2014 से 26 हजार से ज्यादा शरणार्थी लीबिया, मिस्र, या मोरक्को से यूरोप आते हुए समन्दर पार करने की कोशिश मे डूब कर मर गए. ये आंकड़ा भूमध्य सागर को पूरी दुनिया में सबसे खतरनाक माइग्रेशन रूट बनाता है. दूसरा सबसे ज्यादा खतरनाक इलाका अफ्रीका है और खासतौर पर सहारा रेगिस्तान.

अमेरिकी महाद्वीपों में भी दक्षिण से उत्तर की ओर पलायन का जोर है. होंडुरास, ग्वाटेमाला, वेनेजुएला और हैती जैसे देशों के लोग गरीबी, हिंसा और राजनीतिक संकटों की वजह से अपने घरों को छोड़ रहे हैं. उनके लिए आखिरी और खतरनाक अवरोध है मेक्सिको से लगा बॉर्डर जिसे पार कर वे अमेरिका में दाखिल होने की कोशिश करते रहे हैं.

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अक्टूबर 2021 से अक्टूबर 2022 के दौरान, अमेरिकी सीमा सुरक्षा बल ने देश में दाखिल होने की 20 लाख से ज्यादा कोशिशें दर्ज की थी- अक्सर ये कोशिशें खतरनाक परिस्थितियों में अंजाम दी जाती हैं. पिछले जून में 50 लोगों की भयावह मौत सुर्खियों में रही थीः शरणार्थियों को भीषण गर्मी में एक ट्रक में बंद कर छोड़ दिया गया था.

आईओएम की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल हजारों लोग एशिया महाद्वीप में भी मारे गए थे. अधिकांश अफगानी थे या म्यांमार के रोहिंग्या. लेकिन पूर्वी अफ्रीकी शरणार्थी भी थे जो अरब प्रायद्वीप में मारे गए थे.

लोग अपने घर-मुल्क को क्यों छोड़ते हैं?

लोग कई कारणों से अपने देश या क्षेत्र को छोड़ने का फैसला कर सकते हैं. जैसे कि काम के लिए या अपने पार्टनर के पास रहने के लिए. लेकिन हर कोई अपना घर-देश अपनी इच्छा से नहीं छोड़ता है. हिंसा, कुदरती आफतें और संभावनाओं की कमी की वजह से लोग अक्सर दूसरी जगह शरण लेने की कोशिश करते हैं. शोध बताते हैं कि लोग अक्सर एक ही कारण से माइग्रेट नहीं कर रहे होते हैं. बल्कि वे अलग अलग, परस्पर जुड़े कारणों की वजह से भी ऐसा करते हैं जो उन पर एक साथ असर डालते हैं.

आईओएम ने नौ सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं और कारणों का एक विजुअल खाका तैयार किया है. माइग्रेशन पर रिसर्च करने वाले शोधकर्ताओं माथियास साइका और कोन्सटांटिन राइनप्रेख्ट के एक शोधपत्र के आधार पर ये खाका बना है.

उदाहरण के लिए, युवा व्यक्ति इसलिए आप्रवास करने का फैसला कर सकते हैं क्योंकि उनके घर-देश में उनकी उम्र के बहुत सारे लोग होते हैं (जनसांख्यिकीय पहलू) और रोजगार की संभावनाएं कमतर होती हैं (आर्थिक पहलू) जबकि बाहर यानी विदेश में बेहतर शैक्षिक अवसर उपलब्ध होते हैं (मानव विकास).

फरवरी 2022 में अपना देश या इलाका छोड़कर जाने वाले यूक्रेन के लाखों लोगों के लिए सुरक्षा सबसे अहम कारण है. वो रूस की कब्जे की लड़ाई से भाग रहे हैं.

बढ़ते तापमान ने लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर किया

पर्यावरणीय पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. गरीब देशों के निवासी पहले से गरीबी और संघर्ष से जूझते आ रहे हैं, बेतहाशा बारिश, सूखा और समुद्री तूफान जैसी अतिशय मौसमी घटनाओं से भी वे ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. उदाहरण के लिए 2022 में, पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़ ने हजारों लाखों लोगों को घरबार छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा देश, बाढ़ पीड़ितों और पुनर्निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर था.

अपने दरवाजे बंद करता यूरोप

शीत युद्ध के आखिर में, पूरी दुनिया में करीब दर्जन सीमाई दीवारें थीं. तबसे उनकी संख्या छह गुना हो चुकी हैं. मार्च 2022 में एक विशेष आलेख में ये बताया गया है. ये दीवारें, आलेख के मुताबिक, एक प्रमुख काम करती हैं- वो है अनियमित या अनुचित आप्रवासन को रोकना- जबकि ये साबित हो चुका है कि इस मामले में ये सीमाई अवरोध कुछ खासे असरदार नहीं होते हैं.

अपनी सीमाओं को बंद करने के लिए बाड़े खड़े करने में यूरोप अव्वल है. पिछले साल आये यूरोपीय संसद के एक पर्चे के मुताबिक यूरोपीय संघ और शेनगेन क्षेत्र के दायरे में अब 19 सीमाएं या बाड़ खड़ी कर दी गई हैं. उनकी मिलीजुली लंबाई 2048 किलोमीटर की है. जबकि 2014 में ये लंबाई सिर्फ 315 किलोमीटर थी.

यूरोप में सबसे लंबी बाड़ लिथुआनिया ने, गैर-ईयू देश बेलारुस से लगते अपने करीब 700 किलोमीटर के सीमा के अधिकांश हिस्से पर खड़ी की है. सरकार ने इस बाड़ की ऊंचाई और लंबाई तब और बढ़ा दी जब 2021 की ढलती गर्मियों और शरद ऋतु में हजारों लोगों ने अनियमित रूप से यूरोपीय संघ में दाखिल होने की कोशिश की थी. यूरोपीय संघ ने बेलारूस के शासक अलेक्सजांडर लुकाशेंकों पर आरोप लगाया है कि उन्होंने जानबूझकर संकटग्रस्त क्षेत्रों से प्रवासियों को यूरोपीय संघ की बाहरी सीमा तक पहुंचाया.

अब अगर कोई बेलारूस से लिथुआनिया में घुसने की कोशिश करता है तो उसका सामना चार मीटर ऊंची बाड़ और सर्विलांस कैमरों से होता है. डॉक्टर्स विद बॉर्डर्स जैसे सहायता संगठनों ने, शरणार्थियों के प्रति लिथुआनिया और दूसरे यूरोपीय देशों के कट्टर रवैये की, कई मौकों पर तीखी आलोचना की है.

अपने ही देश में विस्थापित

अपना घर छोड़ने पर विवश होने वाले सभी लोग, अपना देश नहीं छोड़ते. यूएनएचसीआर के मुताबिक, दुनिया भर में तमाम "जबरन विस्थापित लोगों" में से 60 फीसदी लोग यानी बहुमत संख्या, दरअसल आंतरिक तौर पर विस्थापित होने वालों की है.

यूएनएचसीआर का कहना है कि ये अनुपात फिलहाल सीरिया में सबसे ज्यादा है. जहां समूची आबादी का करीब एक तिहाई हिस्सा अपने ही घर में बतौर शरणार्थी है. सीरिया के बाद कोलंबिया और यमन जैसे देश हैं जहां ये संख्या करीब 13 फीसदी है, अफगानिस्तान में 9 फीसदी, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में 6 फीसदी और इथोपिया में 3 फीसदी.

हालांकि यह संख्या उन्हीं लोगों की है जो संघर्ष और हिंसा की वजह से विस्थापित हुए हैं. जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक विपदाओं के पीड़ित और प्रभावित लोग इस आंकड़े में शामिल नहीं हैं. यूएनएचसीआर उनकी गिनती अलग से करता है. उसके मुताबिक वर्ष 2021 में 2 करोड़ 37 लाख लोग पर्यावरणीय कारणों से अंदरूनी तौर पर (यानी अपने ही देश या क्षेत्र में) विस्थापित हुए थे.

सबसे ज्यादा विस्थापन की मार चीन, फिलीपींस और भारत के लोगों पर पड़ी थी. बाढ़ या सूखे की वजह से अपने ही देश में एक जगह से दूसरी जगह पलायन करने वाले लोग (हालात सामान्य होने पर) अक्सर अपने घरों की ओर अपेक्षाकृत तेजी से लौट आने में सक्षम होते हैं.