हिंद महासागर में अमेरिका के B-2 बॉम्बर्स की सबसे बड़ी तैनाती, क्या ईरान-चीन के खिलाफ जंग की तैयारी है?

नई दिल्ली: जब दुनिया डोनाल्ड ट्रंप की ‘टैरिफ पॉलिटिक्स’ के मायाजाल में उलझी थी, तब अमेरिका ने चुपचाप ऐसा सैन्य दांव चला, जिसकी गूंज हिंद महासागर से लेकर दक्षिण चीन सागर तक सुनाई देने लगी. यह कोई सामान्य सैन्य अभ्यास नहीं, बल्कि एक खामोश युद्ध उद्घोषणा जैसा है — और इसका पहला संकेत है डिएगो गार्सिया में B-2 बॉम्बर्स की भारीभरकम तैनाती.

हिंद महासागर बना अमेरिका का युद्ध मंच

सैटेलाइट तस्वीरों में दिखे हैं 6 B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स, जिन्हें अमेरिका का सबसे घातक और अचूक युद्धक विमान माना जाता है. ये वही बमवर्षक हैं, जिनके पास एक बार में 40,000 पाउंड विस्फोटक ले जाने की क्षमता है और जिन्हें रडार भी पहचान नहीं पाता.

खास बात ये है कि अमेरिका के पास ऐसे सिर्फ 20 बॉम्बर्स हैं, और उनमें से 30% को एक ही जगह तैनात करना... युद्ध की आहट जैसा है. सवाल उठता है – क्या अमेरिका कोई बड़ा कदम उठाने जा रहा है?

तीन Aircraft Carrier, तीन दिशाएं – लेकिन एक संदेश

पेंटागन यहीं नहीं रुका. अमेरिका अब इंडो-पैसिफिक में अपने एयरक्राफ्ट कैरियर की संख्या 1 से बढ़ाकर 3 कर रहा है.

  • USS Carl Vinson को भेजा गया है मध्य-पूर्व की ओर.
  • USS Harry S. Truman अरब सागर में सक्रिय रहेगा.
  • USS Nimitz रवाना हुआ है सीधे दक्षिण चीन सागर की ओर — बीजिंग की दहलीज तक.

इसके अलावा, "अतिरिक्त स्क्वाड्रन और एयर सपोर्ट एसेट्स" तैनात करने का भी आदेश जारी हुआ है, जिनकी पहचान फिलहाल गुप्त रखी गई है. लेकिन इतना तय है कि कुछ बड़ा पक रहा है.

क्यों हो रही है इतनी जबरदस्त तैनाती?

पेंटागन ने सफाई दी कि ये तैनाती अमेरिका की "रक्षात्मक स्थिति" को मजबूत करने के लिए है. लेकिन क्या ये सिर्फ रक्षा है? या फिर आक्रमण से पहले की तैयारी?

विशेषज्ञों की मानें तो सिर्फ यमन के हूथी विद्रोहियों के लिए B-2 बॉम्बर्स की जरूरत नहीं थी. इतना बड़ा सैन्य जमावड़ा किसी और बड़ी योजना की ओर इशारा कर रहा है.

ईरान बन सकता है अगला टारगेट?

डोनाल्ड ट्रंप का पुराना एजेंडा फिर से सिर उठा रहा है — ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना. ट्रंप ने दो टूक कहा है, "या तो समझौता करो, या सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार रहो." अमेरिका 2015 के परमाणु समझौते से पहले ही बाहर निकल चुका है, और अब ईरान ने यूरेनियम संवर्धन की सीमाएं भी पार कर दी हैं.

कयास हैं कि अगर तेहरान बातचीत के लिए तैयार नहीं हुआ, तो अमेरिका ईरान के न्यूक्लियर फैसिलिटीज पर सीधा हमला कर सकता है.

चीन और रूस को भी मिला संदेश

USS Nimitz की तैनाती सीधे बीजिंग की नाक के नीचे की गई है. ये अमेरिका की चेतावनी है — "इंडो-पैसिफिक हमारा है, पीछे हटो." वहीं, USS Carl Vinson की मध्य-पूर्व में मौजूदगी रूस को यह जताने के लिए काफी है कि अमेरिका अब ‘रीसेट बटन’ नहीं, बल्कि रिमोट मिसाइल लॉन्चर संभाल रहा है.

तो क्या कोई बड़ी जंग करीब है?

इस खामोश परंतु खतरनाक तैनाती से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अमेरिका अब सिर्फ चेतावनी देने के मूड में नहीं है, बल्कि कार्रवाई के अंतिम चरण में पहुंच चुका है.

क्या आने वाले दिनों में ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर बम गिरेंगे? क्या दक्षिण चीन सागर में अमेरिका और चीन आमने-सामने होंगे? या फिर यह महज़ एक शक्ति प्रदर्शन है?

इसका जवाब तो समय ही देगा, लेकिन एक बात तय है — हिंद महासागर अब केवल शांत पानी नहीं, बल्कि तूफान से पहले की खामोशी बन चुका है.