लगातार गर्म हो रही धरती, फिर इतनी ठंड क्यों?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

‘ध्रुवीय भंवर’ की वजह से अमेरिका और कनाडा के बड़े हिस्से में भारी बर्फबारी हो रही है. जबकि, दूसरी ओर धरती लगातार गर्म हो रही है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है कि गर्म होती धरती के बावजूद इतनी ज्यादा ठंड पड़ रही है.अमेरिका और कनाडा के बड़े हिस्से कड़ाके की सर्दी की चपेट में हैं. ध्रुवीय हवाओं के झोंके के कारण तापमान शून्य से नीचे चला गया है. उत्तरी अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में बर्फबारी हो रही है. अमेरिकी मौसम विभाग, यू.एस. नेशनल वेदर सर्विस ने चेतावनी दी है कि इस हफ्ते कई राज्यों में बहुत ज्यादा ठंड पड़ेगी, जिससे लोगों की जान को खतरा हो सकता है. साथ ही, देश के कई हिस्सों में भारी बर्फबारी भी हो सकती है.

द वाशिंगटन पोस्ट से जुड़े बेन नोल जैसे मौसम विज्ञानियों ने बताया है कि कनाडा के पास वाले उत्तरी राज्यों मोंटाना, नॉर्थ डकोटा और मिनेसोटा में तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे जा सकता है. ठंडी हवाओं के कारण ठंड और भी ज्यादा बढ़ेगी.

ला नीना प्रभाव के बावजूद गर्म रहा जनवरी का महीना

सर्दी के इस मौसम में अमेरिका में अत्यधिक ठंड का यह पहला दौर नहीं है. जनवरी में टेक्सस से फ्लोरिडा तक के दक्षिणी राज्यों में बर्फ, ओले और बारिश के साथ कड़ाके की ठंड पड़ी थी. जबकि, आम तौर पर इन इलाकों में इतनी ठंड नहीं पड़ती है.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन, यूरोपीय संघ की ‘कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस' और दूसरे रिसर्चरों के अनुसार, दुनिया ने अभी एक महीने पहले ही सबसे गर्म साल का रिकॉर्ड बनाया है. जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि यह गर्मी इसलिए बढ़ रही है, क्योंकि धरती के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसें बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं. ये गैसें इंसानी गतिविधियों, जैसे कि परिवहन, खेती, हीटिंग आदि से पैदा होती हैं.

ऐसे में अहम सवाल यह है कि तापमान बढ़ने के बावजूद इतनी ठंड क्यों पड़ रही है?

ध्रुवीय भंवर का असर

जलवायु परिवर्तन का क्या असर होगा, यह कहना मुश्किल है. नेचर पत्रिका में छपी 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की कुछ जगहें दूसरे हिस्सों की तुलना में ज्यादा तेजी से गर्म हो रही हैं. जैसे, उत्तरी आर्कटिक क्षेत्र बाकी दुनिया की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हो रहे हैं. कुछ रिसर्चरों का कहना है कि आर्कटिक में बहुत ज्यादा गर्मी बढ़ने से दो ध्रुवीय भंवर (पोलर वोरटेक्स) कमजोर पड़ रहे हैं. इस अत्यधिक गर्मी को आर्कटिक एम्प्लिफिकेशन कहा जाता है. एक ध्रुवीय भंवर जेट स्ट्रीम में होता है जो नीचे बहती हवा है और दूसरा ऊपर स्ट्रेटोस्फेयर (समताप मंडल) में होता है.

हवा के बवंडर जैसे ये बैंड, ठंडी उत्तरी हवा और गर्म दक्षिणी हवा के दबाव के अंतर से बनते हैं. ये पृथ्वी के चारों ओर पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमते हैं. आमतौर पर, ये तेज हवाएं कड़ाके की ठंड को उत्तरी ध्रुव के ऊपर ही बनाए रखती हैं.

हालांकि, 2022 की रिपोर्ट में यू.के. स्थित वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ने कहा कि इन भंवरों का कमजोर होना 'यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका में चरम सर्दियों के मौसम से जुड़ा हो सकता है.' संगठन के वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन और लू, बाढ़ और तूफान जैसी घटनाओं के बीच संबंध का पता लगाने के लिए वास्तविक दुनिया के डेटा और जलवायु मॉडल का इस्तेमाल करते हैं.

दो डिग्री का जलवायु लक्ष्य हासिल करना अब नामुमकिन: रिपोर्ट

इस क्षेत्र में अनुसंधान अभी भी अपेक्षाकृत हाल ही में हुआ है और यह कुछ हद तक सेटेलाइट से मिलने वाले डेटा पर निर्भर है. फिर भी, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि आर्कटिक के तेजी से गर्म होने से हवाएं ज्यादा बेतरतीब और घुमावदार हो सकती हैं. इससे ध्रुवीय भंवर ठीक से काम नहीं करेगा और अचानक ठंड बढ़ सकती है, क्योंकि ठंडी हवा भूमध्य रेखा की ओर आ जाएगी.

मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के क्लाइमेट पोर्टल पर वायुमंडलीय विज्ञान में सहायक प्रोफेसर वानिंग कांग ने लिखा, "जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म होती है, आर्कटिक और मध्य अक्षांशों के बीच तापमान का अंतर कम होता है. इससे ध्रुवीय जेट स्ट्रीम धीमा और कमजोर होता है.”

उन्होंने आगे कहा, "जेट स्ट्रीम की गति धीमी होने के कारण, इसमें पूरब की तरफ जाने की ताकत कम हो जाती है. तापमान और दबाव में थोड़ा भी बदलाव आने पर यह उत्तर या दक्षिण की तरफ मुड़ने लगती है. अगर यह काफी दूर तक मुड़ जाए, तो आर्कटिक और मध्य अक्षांश के इलाकों की हवा को रोकने वाला बैरियर टूट सकता है. ठंडी हवा मेक्सिको तक पहुंच सकती है, जिससे वहां भी आर्कटिक जैसी ठंड पड़ सकती है.”

जनवरी में जब अमेरिका में कड़ाके की ठंड पड़ी थी, तब अमेरिका की जलवायु एजेंसी ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन' ने उस घुमावदार जेट स्ट्रीम का चित्र बनाया था और दिखाया था कि जेट स्ट्रीम कैसे घूम रही थी. इस ठंड के कारण 1985 के बाद पहली बार राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह को घर के अंदर करना पड़ा.

जलवायु परिवर्तन की वजह से ज्यादा ठंड और बर्फबारी

अमेरिका स्थित निजी शोध फर्म एटमॉस्फेरिक एंड एनवायरनमेंटल रिसर्च में विंटर स्टॉर्म एक्सपर्ट जूडा कोहेन का मानना है कि इस बार की कड़ाके की ठंड की एक वजह ‘स्ट्रेच्ड पोलर वोरटेक्स' है, जो उत्तरी अमेरिका तक नीचे आ गया है. 2021 में ‘साइंस' में छपे एक अध्ययन में कोहेन भी शामिल थे. उस अध्ययन के मुताबिक, ‘जलवायु परिवर्तन और खासकर आर्कटिक में हो रहा बदलाव, ऐसे हालात पैदा करता है जिससे ऐसी भयंकर ठंड पड़ती है. '

बीते सोमवार को उन्होंने अपने साप्ताहिक ब्लॉग में लिखा कि इस सर्दी में 10वां ध्रुवीय भंवर का यह बदलाव उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया में ‘भयंकर सर्दी का मौसम' ला सकता है और पूर्वी अमेरिका में ‘रिकॉर्ड तोड़ ठंड' पड़ सकती है. मौसम विज्ञानी और अमेरिकी वैज्ञानिक एजेंसी ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन' (एनओएए) के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक रेयान माउ ने सोमवार की देर रात सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर लिखा कि ध्रुवीय भंवर से जुड़ी यह नई घटना शायद ‘इस सर्दी की सबसे तीव्र घटना' होगी.

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हालांकि, डब्ल्यूडब्ल्यूए ने चेतावनी दी है कि "जेट स्ट्रीम और समताप मंडलीय ध्रुवीय भंवर के कमजोर होने के कुछ सबूत मिले हैं, लेकिन अभी यह कहना मुश्किल है कि ये बदलाव कुदरती नहीं हैं, यानी अभी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि ये बदलाव प्राकृतिक रूप से नहीं हो रहे हैं.”डब्ल्यूडब्ल्यूए के शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि जलवायु गर्म होने के बावजूद, उत्तरी और पूर्वी एशिया, उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों, और ग्रीनलैंड में ज्यादा बर्फबारी हो सकती है. इसकी वजह यह है कि गर्म हवा में ज्यादा नमी होती है और अगर ठंड बढ़ जाए, तो यह नमी बर्फ बनकर गिरती है.

उन्होंने लिखा, "इन जगहों पर साल में कुछ ही समय के लिए बर्फबारी हो रही है और उतनी बार नहीं हो रही है, लेकिन जब हो रही है तो बहुत ज्यादा और जोरदार हो रही है.” अस्थिर ध्रुवीय भंवर का मतलब है कि अभी जो ठंड पड़ रही है वो बहुत ज्यादा होगी, पर ज्यादा दिन नहीं रहेगी. द वाशिंगटन पोस्ट से जुड़े मौसम विज्ञानी नोल के अनुसार, अगले हफ्ते से ही अमेरिका में गर्मी बढ़ने का अनुमान है.