कई मुल्कों में पारित किए जा रहे हैं महिला हत्याओं पर अलग कानून
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

दुनिया में कई मुल्क महिलाओं की हत्याओं को अपराध की अलग श्रेणी में ला रहे हैं ताकि इन घटनाओं को रोकने के लिए विशेष उपाय किए जा सकें.संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया में हर घंटे औसतन पांच महिलाओं की हत्या उनके ही परिवार के किसी व्यक्ति के हाथों की जाती है. एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2021 में 8,405 महिलाओं और लड़कियों की हत्याएं हुई थीं. इनमें से 7,739 वयस्क महिलाएं थीं.

महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को लेकर सदियों से आंदोलन चल रहे हैं लेकिन अपने ही परिजनों के हाथों मार दिया जाना एक ऐसा गुनाह है जिसे लेकर अब महिला अधिकार कार्यकर्ता अलग तरह के उपायों की मांग कर रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि ये हत्याएं अक्सर लैंगिक आधार पर होती हैं.

पिछले साल जारी एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘यूएन ऑफिस ऑफ ड्रग एंड क्राइम' ने कहा कि 2022 महिलाओं की हत्याओं के मामले में सबसे बुरा साल साबित हुआ था. रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका में सबसे ज्यादा करीब 20 हजार महिलाओं की हत्याएं हुईं. एशिया में 18,400, अमेरिकी महाद्वीपों में 7,900, यूरोप में 2,300 और ओशेनिया में200 महिलाओं की हत्याएं दर्ज की गईं.

विशेष कानूनी उपाय

संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें सरकारों से लैंगिक आधार पर होने वाली हत्याओं के खिलाफ उपाय करने को कहा गया था तब से कई देशों में ऐसे कानून पारित किए गए हैं जो महिला-हत्या को अलग अपराध की श्रेणी में रखते हैं. 2022 में साइप्रस ने फेमिसाइड यानी महिला की हत्या को अपने क्रिमिनल कोड में शामिल किया था और यह स्पष्ट किया था कि ऐसे अपराध में सजा देते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि हत्या का आधार पीड़ित का महिला होना था.

2022 में ही माल्टा ने भी ऐसा एक कानून पारित किया और अदालतों को महिला की हत्या किए जाने पर उम्रकैद यानी अधिकतम सजा देने का अधिकार दिया. हाल ही में क्रोएशिया में भी ऐसा कानून पारित किया गया है जिसके तहत महिला की हत्या करने पर दस साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान किया गया है.

दक्षिण अमेरिका और कैरेबियाई देशों को उन देशों में गिना जाता है जहां महिलाओं की हत्या की दर दुनिया में सबसे अधिक है. क्षेत्र के 33 में से 18 देशों में ऐसा कानून पारित किया गया है, जहां महिला हत्या को एक अलग श्रेणी का लैंगिक-नफरत आधारित अपराध माना गया है. इसकी शुरुआत 2007 में कोस्टा रिका में हुई थी. वहां अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी या जीवन साथी की हत्या करता है तो उसे 20 से 35 साल तक की जेल हो सकती है.

कानून कितने असरदार

हालांकि इस तरह के विशेष कानूनों का अपराध की दर पर कितना असर पड़ता है, इस बात को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं. मेक्सिको इस मामले में विशेषज्ञों के लिए अध्ययन का विषय रहा है, जहां महिलाओं की हत्या की दर बहुत ऊंची है. लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मेक्सिको को आधार बनाकर किए गए अध्ययन के बाद कहा था कि विशेष कानून बनाने से वहां महिलाओं की हत्या की दर प्रभावित नहीं हुई.

ब्रिटेन की शेफील्ड हैलम यूनिवर्सिटी में अपराध विज्ञान पढ़ाने वालीं सीनियर लेक्चरर मधुमिता पांडे कन्वर्सेशन पत्रिका के लिए लिखे एक लेख में कहती हैं, "महिलाओं की अधिकतर हत्याएं उनके मौजूदा या पूर्व जीवनसाथी द्वारा की जाती हैं, इसलिए जहरीले पुरुषत्व से निपटना और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. जाहिर है कि हमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए कानून बनाने से आगे जाने की जरूरत है. महिलाओं की हत्याएं रोकने के लिए एक स्थायी उपाय खोजने के लिए समाज की सक्रिय भागीदारी की जरूरत है.”