
जर्मनी के लोगों को अब सार्वजनिक बहसें पहले से ज्यादा निरर्थक और क्रूर लगने लगी हैं. यह बात जर्मनी की योहानेस गुटेनबर्ग यूनिवर्सिटी के शोध में सामने आई है.माइंत्स शहर में स्थित विश्वविद्यालय ने 1,203 लोगों से बातचीत करने के बाद, सर्वे के नतीजे जारी किए हैं. हर दो साल में होने वाले योहानेस गुटेनबर्ग यूनिवर्सिटी के इस शोध को समाज की अहम नब्ज के तौर पर देखा जाता है. ताजा सर्वेक्षण में शामिल हुए ज्यादातर प्रतिभागियों ने माना कि उन्हें अब सार्वजनिक बहसें पहले के मुकाबले ज्यादा अपमानजनक और कई बार अतिवादी लगने लगी हैं.
सर्वे के दौरान लोगों से टेलिफोन पर यह पूछा गया कि वे राजनीतिक टॉक शोज, राजनीतिक रैलियों और सोशल मीडिया के बारे में क्या सोचते हैं. नवंबर और दिसंबर 2024 में पूछे गए सवालों में 69 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें लगता है कि राजनीति से जुड़े या सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोग, अपने नजरिए को लेकर ज्यादा जिद्दी हो रहे हैं. 2022 में हुए सर्वे के दौरान ऐसा जवाब देने वालों की संख्या 54 फीसदी थी.
बहस के नाम पर अपनी ही बड़ बड़
68 फीसदी लोगों ने माना कि सार्वजनिक बहसों में, दूसरों को अपनी बात पूरी करने का मौका ही नहीं दिया जाता है. 54 परसेंट लोगों ने माना कि बहसों में लगातार मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश की जाती है. करीब 44 फीसदी लोगों को लगता है कि ऐसी बहसों में जानबूझकर महत्वपूर्ण तथ्य छुपाए जाते हैं.
दुनिया के कई देशों में टीवी न्यूज चैनलों पर होने वाली बहसों में ड्रामेबाजी, चीखम-चिल्ली या नाटकीयता बढ़ती जा रही है. ऐसी बहसों के छोटे बड़े क्लिप सोशल मीडिया पर कई उद्देश्यों से शेयर किए जाते हैं. माइंत्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक शोध में 36 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि सार्वजनिक बहसों में बदमिजाजी या अपमानजनक व्यवहार दिखता है. 2022 में ऐसा मानने वालों की संख्या 21 फीसदी थी. वहीं 2022 में 18 फीसदी लोगों को लगता था कि सार्वजनिक बहसों में सामने वाले को शर्मिंदा किया जाता है या उस पर फब्तियां कसी जाती हैं. ताजा सर्वे में ऐसा मानने वालों की संख्या बढ़कर 31 प्रतिशत हो चुकी है.
राजनीति, समाज और मीडिया
शोध के लेखकों के मुताबिक, जर्मनी में मीडिया पर लोगों को भरोसा अब भी काफी हद तक बरकरार है. शोध में हिस्सा लेने वाले 18 साल से ज्यादा उम्र के 47 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वे स्थापित मीडिया संस्थानों पर भरोसा करते हैं. पिछले सर्वे में यह संख्या 44 परसेंट थी. हालांकि स्थापित मीडिया की आलोचना करने वाले लोगों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है. शोध के लेखकों ने इसे "मीडिया को लेकर निराशावाद" करार दिया है.
भारत: टीवी चैनल पर क्यों नहीं रुक रही भड़काऊ बयानबाजी
जर्मनी समेत दुनिया कई देशों में दक्षिणपंथी राजनीति परवान चढ़ रही है. यूरोप के दक्षिणपंथी राजनेता अकसर स्थापित मीडिया संस्थानों पर वामपंथी झुकाव का आरोप लगाते हैं. सर्वे में 20 परसेंट लोग इस बयान से सहमत थे कि, "जर्मनी में मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी को कमजोर कर रहा है."
"झूठ बोलने वाली प्रेस" यह भावना भी मजबूत हो रही है. पांच में से एक व्यक्ति (20 फीसदी) ने माना कि मीडिया व्यवस्थित तरीके से जनता से झूठ बोलता है. दो साल के शोध में पहले ऐसा सोचने वालों आंकड़ा 14 परसेंट था.