
डॉ. नायला कादरी बलूच (Naela Quadri Baloch) आज दुनिया भर में बलूचिस्तान (Balochistan) की आजादी की आवाज़ बनी हुई हैं. वह खुद को बलूचिस्तान की निर्वासित सरकार की प्रधानमंत्री मानती हैं, जिसकी स्थापना उन्होंने 21 मार्च 2022 को यूरोप में की थी. सुरक्षा कारणों से इस सरकार के ठिकाने का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन वर्तमान में वह कनाडा में रहकर अपने मिशन को आगे बढ़ा रही हैं.
बलूचिस्तान: एक खोया हुआ देश
डॉ. नायला का कहना है कि बलूचिस्तान कभी एक स्वतंत्र राष्ट्र था, लेकिन अब वह पाकिस्तान के "अवैध कब्जे" में है. वह पाकिस्तान सरकार पर बलूचों के मानवाधिकारों के उल्लंघन, प्राकृतिक संसाधनों की लूट और समुदाय के नरसंहार का आरोप लगाती हैं. उन्होंने भारत सहित दुनिया के कई देशों से बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए समर्थन मांगा है. खासतौर पर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि वे संयुक्त राष्ट्र में बलूचिस्तान का मुद्दा उठाएं.
अगवा किए जा रहे हैं युवा, हो रही है अंगों की तस्करी
डॉ. नायला के मुताबिक बलूचिस्तान में हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं. उनका आरोप है कि पाकिस्तानी सेना बलूच लोगों के घरों को जला रही है, खेतों को नष्ट कर रही है और युवाओं को अगवा कर रही है. इन अगवा युवाओं के शरीर के अंग—आंखें, दिल, लिवर, किडनी—बाजार में बेचे जा रहे हैं. नायला इसे "नस्ली सफाया" करार देती हैं.
CPEC: आर्थिक नहीं, सैन्य परियोजना
चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पर डॉ. नायला की राय स्पष्ट है. वह इसे आर्थिक नहीं, बल्कि सैन्य परियोजना बताती हैं, जिसका उद्देश्य बलूचों को उनकी जमीन से बेदखल करना है. उनका कहना है कि यह परियोजना बलूचिस्तान के लिए "मौत की सजा" जैसी है, जहां चीन और पाकिस्तान मिलकर बलूच क्षेत्र को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं. वह दो टूक कहती हैं कि किसी भी देश को बलूचिस्तान के बंदरगाह बेचने का अधिकार नहीं है.
बलूच महिलाओं की सशक्त आवाज
बलूच महिलाओं के अधिकारों के लिए भी डॉ. नायला ने कई संघर्ष किए हैं. उन्होंने बलूच संस्कृति, भाषा और परंपराओं को बचाए रखने पर ज़ोर दिया है. उनका मानना है कि यदि आने वाली पीढ़ियों को अपनी पहचान से जोड़े रखना है, तो बलूच विरासत को संरक्षित करना अनिवार्य है. उन्होंने महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में बराबरी दिलाने के लिए कई अभियान भी चलाए.
भारत से विशेष लगाव
डॉ. नायला को भारत से खास जुड़ाव है. वह 2016, 2023 और 2024 में भारत का दौरा कर चुकी हैं. 2016 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से बलूचिस्तान का ज़िक्र किया था, तब नायला ने भारत का दौरा कर समर्थन मांगा. उनका मानना है कि भारत यदि बलूचिस्तान की आवाज़ बने, तो एक दिन स्वतंत्र बलूचिस्तान भारत का मित्र राष्ट्र बन सकता है. हालांकि, भारत सरकार ने अभी तक उनकी निर्वासित सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है.
डॉ. नायला कादरी बलूच सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि बलूचिस्तान की आजादी की प्रतीक बन चुकी हैं. उनके संघर्ष की कहानी उन लाखों लोगों की आवाज है, जो दशकों से आजादी और अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं. चाहे दुनिया उनकी निर्वासित सरकार को मान्यता दे या नहीं, नायला का जज्बा और उनका मिशन अब एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है.