क्या अफगानिस्तान में सचमुच विजेता है पाकिस्तान?

पाकिस्तान (Pakistan) में इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद (Faiz Hameed) सितंबर की शुरुआत में कुछ समय के लिए काबुल (Kabul) में थे, ताकि अंतरिम सरकार गठन पर तालिबान (Taliban) के सभी गुटों के बीच सहमति बन सके. स्पष्ट है कि पाकिस्तान राजनीति के अलावा, अफगानिस्तान के भविष्य के सभी पहलुओं पर हाथ रखना चाहता है.

प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits: IANS)

नई दिल्ली, 14 सितंबर: पाकिस्तान (Pakistan) में इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद (Faiz Hameed) सितंबर की शुरुआत में कुछ समय के लिए काबुल (Kabul) में थे, ताकि अंतरिम सरकार गठन पर तालिबान (Taliban) के सभी गुटों के बीच सहमति बन सके. स्पष्ट है कि पाकिस्तान राजनीति के अलावा, अफगानिस्तान के भविष्य के सभी पहलुओं पर हाथ रखना चाहता है. आईएसआई अफगानिस्तान में सरकार के गठन को गहरी नजर से देखता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसके चुने हुए उम्मीदवार को वाजिब पद मिले. इतना ही नहीं, इमरान खान (Imran Khan) सरकार ने अफगानिस्तान के लिए अपनी आर्थिक योजनाओं की घोषणा भी की है. पहला और सबसे महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन यह है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार अब पाकिस्तानी रुपये में होगा. इस तरह पाकिस्तान अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश कर रहा है. यह भी पढ़े: पाकिस्तान की तालिबान को मजबूत करने में भूमिका, कट्टरपंथियों की जीत: अमेरिकी सांसद

अफगानिस्तान में इस्तेमाल होगी पाकिस्तानी मुद्रा :

दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार पहले अमेरिकी डॉलर का उपयोग करके होता था, अब यह पाकिस्तानी रुपये में होगा। इस कदम के बाद अफगानिस्तान में व्यापारियों और व्यापारिक समुदाय पर पाकिस्तान की मुद्रा का कब्जा हो जाएगा. पाकिस्तान की मुद्रा की शुरुआत से अफगान मुद्रा का और अधिक अवमूल्यन होने की संभावना है, जिसके बाद सभी व्यापार और व्यवसाय पाकिस्तान पर निर्भर होंगे. मौजूदा चुनौती यह है कि अफगानिस्तान आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है और तालिबान के पास देश पर शासन करने के लिए वित्तीय साधन नहीं हैं. गौरतलब है कि अफगानिस्तान के बजट का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अनुदान और सहायता राशि के रूप में आता है. तालिबान ने एक सर्व-पुरुष अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की है. हालांकि, उन्होंने 11 सितंबर को अपने नियोजित उद्घाटन समारोह को स्थगित कर दिया, जिसने अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमलों की 20वीं वर्षगांठ को चिह्न्ति किया. घरेलू स्तर पर, अफगानिस्तान के भीतर विश्वविद्यालय के छात्रों सहित पत्रकारों, महिलाओं और कार्यकर्ताओं का लोकप्रिय प्रतिरोध है. तालिबान के खिलाफ उठ रही आवाजों पर अंकुश लगाने के लिए प्रतिबंध लगाने वाली 'नई सरकार' के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं. साथ ही, अब तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान की अंतरिम सरकार को मान्यता देने के लिए कोई झुकाव नहीं दिखाया है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अफगानिस्तान के लोगों ने महसूस किया है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में दोहरा खेल खेल रहा है और लंबे समय में उसकी हरकतें हानिकारक होंगी. इसलिए, पाकिस्तान के खिलाफ काबुल और अन्य प्रांतीय राजधानियों में सीमित, लेकिन कई महत्वपूर्ण विरोध प्रदर्शन हुए हैं.

पाकिस्तान के खिलाफ लोकप्रिय विरोध :

अभी हाल ही में, एक घटना की सूचना मिली थी, जहां तालिबान बंदूकधारियों ने काबुल में पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए हवा में गोलीबारी की थी. वीडियो क्लिप में लोगों को गोलियों की आवाज सुनते ही भागते हुए दिखाया गया. चोटों की तत्काल कोई रिपोर्ट नहीं थी. लोगों ने अफगानिस्तान के मामलों में तालिबान और पाकिस्तान के हस्तक्षेप के खिलाफ (8 सितंबर को) विरोध किया, इस्लामी संगठन ने पड़ोसी देश को अपना 'दूसरा घर' कहा. मार्च करने वालों ने 'प्रतिरोध को जिंदा रखें' और 'पाकिस्तान के लिए मौत' जैसे नारे लगाए. बड़ी संख्या में पुरुष और महिलाएं काबुल की सड़कों पर उतरकर पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगा रहे थे. उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तानी वायुसेना के जेट विमानों ने पंजशीर प्रांत में हवाई हमले किए थे. इस संदर्भ में ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस बात की जांच की मांग की है कि उन्होंने विदेशी जेट विमानों को हस्तक्षेप करने के लिए क्यों कहा. यह भी पढ़े:तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में पड़े खाने के लाले, अमेरिका ने दिया 470 करोड़ रुपये के राहत पैकेज का भरोसा

रिपोर्टों से पता चलता है कि पाकिस्तान वायुसेना ने उत्तरी प्रतिरोध मोर्चा के लड़ाकों पर बम गिराने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया था, जो पंजशीर में तालिबान के अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे. काबुल में प्रदर्शनकारी पाकिस्तान दूतावास के गेट पर जमा हो गए थे और कहा था कि वे अफगानिस्तान में कठपुतली सरकार नहीं चाहते. प्रदर्शनकारियों ने 'पाकिस्तान को मौत' के नारे लगाए और पाकिस्तान दूतावास से अफगानिस्तान छोड़ने को कहा. प्रदर्शनकारियों द्वारा लगाए गए अन्य नारों में से थे- 'आजादी', 'अल्लाह अकबर', 'हम कैद नहीं चाहते'. इस बीच, बल्ख और दाइकुंडी प्रांतों में भी लोगों ने सड़कों पर उतरकर पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाए. तालिबान के तहत अफगानिस्तान में पत्रकार भी कमजोर हुए हैं। हाल ही में, काबुल में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन को कवर करने वाले अफगानिस्तान के दो पत्रकारों को तालिबान ने कथित तौर पर हिरासत में लिया और बुरी तरह पीटा. काबुल स्थित मीडिया हाउस एतिलात-ए-रोज के तकी दरयाबी और नेमत नकदी को हिरासत में लिया गया और उन पर हमला किया गया.

मानवीय संकट करीब है?

संयुक्त राष्ट्र के एक मानवीय संगठन ने हाल ही में चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में बुनियादी सेवाएं चरमराने के कगार पर हैं और तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा के बाद भोजन और अन्य सहायता खत्म होने लगी है. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ द रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज के अनुसार, इस समय 1.8 लाख से अधिक लोगों को सहायता की जरूरत है. मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने दानदाताओं से अफगानिस्तान के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सहायता सम्मेलन से पहले और अधिक देने का आग्रह किया है. एजेंसी ने शेष वर्ष के लिए 1.1 करोड़ लोगों की मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए लगभग 60 करोड़ डॉलर की अपील जारी की है. इस तरह, अफगानिस्तान में स्थिति विकट है और तालिबान की अंतरिम सरकार के साथ चीजों को आगे बढ़ाने के पाकिस्तान के प्रयास सफल नहीं हो रहे हैं. यह आंशिक रूप से आर्थिक स्थिति और शासन करने के लिए संसाधनों की कमी के कारण है. दूसरा कारण यह है कि स्वयं अफगान, जिन्होंने वर्षो से परिवर्तन देखा है, विशेषकर महिलाओं के बीच, तालिबान के अधीन अंधकार युग में वापस नहीं जाना चाहते हैं. यही कारण है कि काबुल में महिलाओं को विरोध प्रदर्शन करते देखा गया है। वे तालिबान द्वारा दबाया जाना नहीं चाहती हैं. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह जानना और महसूस करना चाहिए कि लंबे समय में तालिबान को मान्यता देना व्यावहारिक हो सकता है, पर तभी जब तालिबान अफगान लोगों को लोकतंत्र और एक संविधान प्रदान करे जो उनके अधिकारों की गारंटी देगा.

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