
इस्लामी गणतंत्र ईरान, 1979 की क्रांति के बाद से, अपने सबसे गंभीर और अस्तित्व संबंधी संकट का सामना कर रहा है. दशकों से चला आ रहा इजरायल के साथ छाया युद्ध (shadow war) अब एक सीधे और विनाशकारी सैन्य टकराव में बदल गया है. इजरायल द्वारा "राइजिंग लायन" (Rising Lion) नामक एक अभूतपूर्व सैन्य अभियान शुरू किया गया है, जिसके तहत ईरान के भीतर गहरे स्थित प्रमुख सैन्य, परमाणु और रणनीतिक ठिकानों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं . यह संघर्ष केवल सैन्य ठिकानों तक सीमित नहीं है; यह एक बहुआयामी हमला है जो ईरान के शासन की नींव को हिलाने का प्रयास कर रहा है. इजरायली हमलों ने ईरान के सर्वोच्च सैन्य अधिकारियों, परमाणु वैज्ञानिकों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया है, जिससे सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई का नेतृत्व सीधे तौर पर सवालों के घेरे में आ गया है. ईरान ने मिसाइलों से जवाबी कार्रवाई की है, लेकिन इन हमलों की घटती संख्या और प्रभावशीलता इजरायली दबाव के बढ़ते असर को दर्शाती है 3. यह टकराव ईरान को एक ऐसे चौराहे पर ले आया है जहाँ शासन का पतन, एक अनिश्चित उत्तराधिकार और देश का संभावित विखंडन अब केवल अकादमिक चर्चा का विषय नहीं, बल्कि एक वास्तविक संभावना बन गया है.
इजरायल की बहुआयामी रणनीति
इजरायल का वर्तमान अभियान केवल सैन्य लक्ष्यों को नष्ट करने तक सीमित नहीं है. यह एक व्यापक और व्यवस्थित रणनीति का हिस्सा है जिसका उद्देश्य खामेनेई शासन के अस्तित्व के हर स्तंभ को कमजोर करना है. यह रणनीति सैन्य, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक और साइबर मोर्चों पर एक साथ काम कर रही है.
मनोवैज्ञानिक युद्ध
इजरायल ने ईरानी आबादी और शासन के मनोबल पर सीधा हमला किया है. सैन्य स्थलों के पास रहने वाले नागरिकों के लिए निकासी के आदेश जारी किए गए हैं, जिससे देश के भीतर अस्थिरता और भय का माहौल पैदा हुआ है. सोशल मीडिया पर, इजरायली हमलों में मारे गए ईरानी जनरलों का मज़ाक उड़ाने वाले "बारबेक्यू इमोजी" जैसे मीम्स का प्रसार शासन के अधिकार और उसकी अजेयता की छवि को गंभीर रूप से कमजोर कर रहा है. यह मनोवैज्ञानिक अभियान जनता के बीच यह धारणा बनाने का प्रयास करता है कि शासन उनकी रक्षा करने में असमर्थ है और उसके नेता भी सुरक्षित नहीं हैं. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरानी जनता से सीधे अपील की है कि वे "दुष्ट और दमनकारी शासन" से अपनी स्वतंत्रता छीन लें, जो इस मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक स्पष्ट उदाहरण है.
आर्थिक दबाव
सैन्य रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ईरान की अर्थव्यवस्था को पंगु बनाना है. तेहरान के शाहरान तेल डिपो जैसे महत्वपूर्ण ऊर्जा बुनियादी ढांचे पर हमले किए गए हैं. इन हमलों का उद्देश्य शासन की सैन्य गतिविधियों को वित्तपोषित करने और अपने प्रॉक्सी नेटवर्क को बनाए रखने की क्षमता को कमजोर करना है. तेल और गैस ईरान की अर्थव्यवस्था और सैन्य अभियानों के लिए जीवनदायिनी हैं. इन संसाधनों को लक्षित करके, इजरायल न केवल ईरान के रणनीतिक लचीलेपन को कम कर रहा है, बल्कि सरकार पर आंतरिक दबाव भी बढ़ा रहा है, जिससे संभावित रूप से नागरिक अशांति पैदा हो सकती है. यह रणनीति वैश्विक ऊर्जा बाजारों और क्षेत्रीय भू-राजनीतिक गतिशीलता को भी प्रभावित करती है, यह संकेत देते हुए कि ईरान का कोई भी क्षेत्र, यहाँ तक कि महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा भी, हमले से सुरक्षित नहीं है.
साइबर युद्ध
सैन्य और आर्थिक हमलों के साथ-साथ, इजरायल ने एक परिष्कृत साइबर युद्ध भी छेड़ रखा है. "प्रीडेटरी स्पैरो" (Predatory Sparrow) जैसे हैकिंग समूह, जिन्हें इजरायल की सुरक्षा सेवाओं से जोड़ा जाता है, ने ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (IRGC) से जुड़े एक बैंक के डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर को अपंग करने वाले साइबर हमले की जिम्मेदारी ली है. इस तरह के हमले शासन की वित्तीय और सैन्य क्षमताओं पर एक और परत का हमला हैं, जो उनकी कमान और नियंत्रण प्रणालियों में बाधा डालते हैं और उनके आर्थिक तंत्र में अविश्वास पैदा करते हैं.
शासन परिवर्तन का लक्ष्य?
इजरायल की रणनीति की व्यापकता इस बहस को जन्म देती है कि क्या उसका अंतिम लक्ष्य केवल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना है या खामेनेई शासन को पूरी तरह से उखाड़ फेंकना है. आधिकारिक तौर पर, प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा है कि उनका लक्ष्य शासन परिवर्तन नहीं है, लेकिन उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि यह सैन्य अभियान का एक संभावित परिणाम हो सकता है. विश्लेषकों का मानना है कि ईरान के IRIB ब्रॉडकास्टर जैसे शासन के प्रतीकों पर हमले यह दर्शाते हैं कि इजरायल के लक्ष्य परमाणु और बैलिस्टिक क्षमताओं को कम करने से कहीं आगे हैं. इजरायली रक्षा मंत्री इजराइल काट्ज ने स्पष्ट रूप से सेना को तेहरान में रणनीतिक लक्ष्यों पर हमले तेज करने का निर्देश दिया है ताकि "अयातुल्ला शासन" को अस्थिर किया जा सके. यह सब एक ऐसी रणनीति की ओर इशारा करता है जो केवल रोकथाम पर नहीं, बल्कि शासन के अस्तित्व पर ही सवाल उठाने पर केंद्रित है.
इस बहुआयामी अभियान का प्रभाव यह है कि यह शासन के अस्तित्व के तंत्र पर एक प्रणालीगत हमला है. दशकों से, खामेनेई शासन ने वफादारी बनाए रखने के लिए संसाधनों (विशेषकर तेल राजस्व) के वितरण पर आधारित एक संरक्षण नेटवर्क का उपयोग किया है. सैन्य, आर्थिक, वित्तीय और मनोवैज्ञानिक स्तंभों पर एक साथ हमला करके, इजरायल केवल सैन्य शक्ति का क्षरण नहीं कर रहा है, बल्कि उस संरक्षण नेटवर्क और नियंत्रण के साधनों को भी नष्ट कर रहा है जिसने शासन को चार दशकों से अधिक समय तक सत्ता में बनाए रखा है. इसका उद्देश्य एक "संस्थागत सोपानिक विफलता" (institutional cascade failure) को जन्म देना प्रतीत होता है, जहाँ एक के बाद एक स्तंभ ढहने लगते हैं.
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और क्षेत्रीय गतिशीलता
ईरान-इजरायल संघर्ष ने वैश्विक शक्तियों और क्षेत्रीय पड़ोसियों को एक नाजुक स्थिति में डाल दिया है, जिससे कूटनीतिक और रणनीतिक प्रतिक्रियाओं का एक जटिल जाल बन गया है.
संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका
संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका इस संकट में महत्वपूर्ण लेकिन अस्पष्ट बनी हुई है. पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान से "बिना शर्त आत्मसमर्पण" करने का आह्वान किया और चेतावनी दी कि यदि अमेरिकी हितों को निशाना बनाया गया तो अमेरिका पूरी ताकत से जवाब देगा. व्हाइट हाउस ने कहा है कि वह ईरान पर हमले में शामिल होने पर अगले दो हफ्तों में फैसला करेगा, जिससे सैन्य हस्तक्षेप की संभावना बनी हुई है. हालांकि, अमेरिकी समर्थन की यह अस्पष्टता ईरान के लिए एक रणनीतिक दुविधा पैदा करती है. एक तरफ, तेहरान ने अमेरिकी समर्थन की कमी को इजरायल के खिलाफ अपनी बातचीत की स्थिति में मजबूती के रूप में व्याख्या करने की कोशिश की. दूसरी ओर, अमेरिकी हस्तक्षेप का खतरा एक निवारक के रूप में कार्य करता है, जो ईरान के विकल्पों को सीमित करता है.
खाड़ी देशों (GCC) की स्थिति
खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देश इस संघर्ष को गहरी आशंका के साथ देख रहे हैं. वे भौगोलिक और आर्थिक रूप से ईरान से जुड़े हुए हैं और संघर्ष की आग में घसीटे जाने से सबसे ज्यादा डरते हैं. सार्वजनिक रूप से, GCC ने इजरायली आक्रामकता की कड़ी निंदा की है और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है. हालांकि, विश्लेषकों का सुझाव है कि कुछ खाड़ी राजधानियाँ निजी तौर पर ईरान के कमजोर होने का स्वागत कर सकती हैं, बशर्ते कि यह एक व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष को जन्म न दे. वे एक नाजुक संतुलन साध रहे हैं, जिसमें वे सार्वजनिक रूप से निंदा करते हैं और निजी तौर पर उम्मीद करते हैं कि ईरान इस टकराव में कमजोर होकर उभरेगा. उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता अपने क्षेत्रों को युद्ध का मैदान बनने से बचाना है.
कूटनीतिक प्रयास
संघर्ष की गंभीरता ने यूरोपीय शक्तियों को कूटनीतिक समाधान खोजने के लिए प्रेरित किया है. जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के विदेश मंत्री अपने ईरानी समकक्ष से जिनेवा में मिलने वाले हैं ताकि तनाव कम करने के रास्ते तलाशे जा सकें. फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयम बरतने और बातचीत की मेज पर लौटने का आह्वान किया है. ईरान ने संकेत दिया है कि वह पीछे हटने को तैयार है, लेकिन केवल इस शर्त पर कि इजरायल भी अपने हमले बंद कर दे. हालांकि, जमीन पर जारी हमलों को देखते हुए, कूटनीति के लिए खिड़की तेजी से बंद होती दिख रही है.
इस संघर्ष का एक और महत्वपूर्ण परिणाम ईरान की क्षेत्रीय निवारण मुद्रा (regional deterrence posture) का टूटना है. वर्षों तक, ईरान की सुरक्षा सिद्धांत अपने "प्रतिरोध के अक्ष" (Axis of Resistance) - हिजबुल्लाह, हमास, हूती जैसे प्रॉक्सी समूहों - पर निर्भर था ताकि वह अपने क्षेत्र पर सीधे हमलों को रोक सके. यह रणनीति ईरान को सीधे टकराव का जोखिम उठाए बिना अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की अनुमति देती थी. ईरान के अंदर गहरे तक इजरायली हवाई हमलों का जारी रहना यह दर्शाता है कि यह निवारण विफल हो गया है. इसके अलावा, हमास और हिजबुल्लाह जैसे प्रमुख प्रॉक्सी अलग-अलग संघर्षों में गंभीर रूप से कमजोर हो गए हैं, जिससे ईरान और भी अलग-थलग पड़ गया है और उसे अपनी कमजोर घरेलू संस्थाओं पर अधिक निर्भर रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. यह तेहरान के लिए एक मौलिक रणनीतिक विफलता का प्रतिनिधित्व करता है.
भाग 2: सत्ता का भविष्य - उत्तराधिकार की पहेली और विपक्ष की स्थिति
बाहरी दबाव के साथ-साथ, खामेनेई शासन आंतरिक कमजोरियों के एक खतरनाक मिश्रण से जूझ रहा है. आर्थिक संकट, अभिजात वर्ग के भीतर दरारें और जनता का गहराता गुस्सा एक विस्फोटक स्थिति पैदा कर रहा है. यह आंतरिक उथल-पुथल उत्तराधिकार के सवाल को और भी जटिल बना देती है, जबकि एक संगठित और व्यवहार्य विपक्ष की अनुपस्थिति भविष्य को और अनिश्चित बनाती है.
शासन की आंतरिक कमजोरियाँ
अभिजात वर्ग में दरारें
इजरायली हमलों ने खामेनेई के आंतरिक सुरक्षा घेरे में गहरी सेंध लगाई है. होसैन सलामी और मोहम्मद काज़ेमी जैसे प्रमुख सैन्य जनरलों की हत्या ने सर्वोच्च नेता के सबसे करीबी सलाहकारों के समूह में "बड़े छेद" कर दिए हैं. इन हत्याओं ने न केवल शासन की कमान और नियंत्रण संरचना को बाधित किया है, बल्कि अभिजात वर्ग के भीतर वफादारी पर भी सवाल उठाए हैं. सूत्रों के अनुसार, इन नुकसानों ने रणनीतिक गलत अनुमानों के जोखिम को "अत्यंत खतरनाक" स्तर तक बढ़ा दिया है. शासन के भीतर दरारों के संकेत मिल रहे हैं, और अभिजात वर्ग का विश्वास हिल गया है, जो शासन के अस्तित्व के लिए एक गंभीर खतरा है.
आर्थिक संकट
ईरान एक गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है जो दशकों के कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का परिणाम है. हाल के महीनों में स्थिति और खराब हो गई है. मुद्रास्फीति दर 45% को पार कर गई है, ईरानी रियाल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अनौपचारिक बाजारों में 700,000 के स्तर तक गिर गया है, और युवाओं में बेरोजगारी दर 27% से अधिक है. यह आर्थिक तंगी आम नागरिकों के जीवन को दूभर बना रही है और शासन के खिलाफ असंतोष को और भड़का रही है. यह संकट शासन की उस क्षमता को भी सीमित करता है जिसके तहत वह संरक्षण और सब्सिडी के माध्यम से सामाजिक शांति खरीद सकता था.
जनता का गुस्सा और विरोध प्रदर्शन
आर्थिक कठिनाइयों और राजनीतिक दमन ने ईरानी समाज में गहरे असंतोष को जन्म दिया है. 2022 में महसा अमिनी की मौत के बाद भड़का "महिला, जीवन, स्वतंत्रता" आंदोलन हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में से एक था. हालांकि शासन ने इन विरोधों को क्रूरता से कुचल दिया, जिसमें 550 से अधिक प्रदर्शनकारी मारे गए और 20,000 से अधिक को गिरफ्तार किया गया, लेकिन अंतर्निहित गुस्सा अभी भी सुलग रहा है. ये विरोध प्रदर्शन दर्शाते हैं कि शासन की वैधता गंभीर रूप से समाप्त हो चुकी है, और जनता का एक बड़ा वर्ग सक्रिय रूप से इसके पतन की कामना करता है.
उत्तराधिकार का संकट: खामेनेई के बाद कौन?
85 वर्षीय अयातुल्ला खामेनेई के स्वास्थ्य और उम्र को देखते हुए, उत्तराधिकार का सवाल ईरान के भविष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण और अनिश्चित कारकों में से एक है. यह प्रक्रिया केवल एक नए नेता को चुनने के बारे में नहीं है, बल्कि यह इस्लामिक गणराज्य की भविष्य की दिशा और सत्ता के संतुलन को भी निर्धारित करेगी.
इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) की भूमिका
इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स, जो शासन की वैचारिक सेना और एक विशाल आर्थिक साम्राज्य है, उत्तराधिकार की प्रक्रिया में एक "किंगमेकर" की भूमिका निभाने के लिए तैयार है. कई विश्लेषकों का मानना है कि IRGC एक सैन्य तानाशाही स्थापित कर सकता है या, अधिक संभावना है, एक ऐसे लिपिक उम्मीदवार का समर्थन करेगा जो उनके विशाल आर्थिक और राजनीतिक हितों की रक्षा करेगा. IRGC शासन की रीढ़ है, और खामेनेई के बाद की शक्ति शून्यता को भरने के लिए वह अपनी स्थिति का लाभ उठाने से नहीं हिचकिचाएगा. हालांकि, IRGC एक अखंड इकाई नहीं है, और इसका प्राथमिक लक्ष्य एकमुश्त तख्तापलट के बजाय आत्म-संरक्षण और अपने प्रभाव को बनाए रखना होगा. वे एक ऐसे नेता का समर्थन करेंगे जो यथास्थिति बनाए रखे, जिससे उनके आर्थिक साम्राज्य और राजनीतिक शक्ति को कोई खतरा न हो. यह एक "सैन्यीकृत उत्तराधिकार" की ओर इशारा करता है, न कि एक क्लासिक सैन्य जुंटा की ओर.
मुजतबा खामेनेई
सर्वोच्च नेता के 55 वर्षीय बेटे, मुजतबा खामेनेई, को व्यापक रूप से एक प्रमुख संभावित उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता है. वह एक मध्य-श्रेणी के मौलवी हैं, लेकिन पर्दे के पीछे उनकी जबरदस्त शक्ति है. IRGC और सुरक्षा तंत्र के साथ उनके गहरे और लंबे समय से चले आ रहे संबंध उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाते हैं. उनकी नियुक्ति एक वंशानुगत उत्तराधिकार की तरह होगी, जो इस्लामिक गणराज्य के सिद्धांतों के खिलाफ है, लेकिन IRGC के समर्थन से यह संभव हो सकता है. कुछ सुधारवादी भी, जैसे कि फाएजेह हाशमी रफसंजानी, ने उन्हें एक संभावित विकल्प के रूप में समर्थन दिया है.
अन्य उम्मीदवार
मुजतबा के अलावा, कुछ अन्य नाम भी चर्चा में हैं. अलीरेजा अराफी, जो विशेषज्ञों की सभा के उपाध्यक्ष और संरक्षक परिषद के सदस्य हैं, खामेनेई के एक भरोसेमंद सहयोगी हैं और सत्ता संरचना में उनकी बड़ी साख है. एक और नाम अली असगर हेजाज़ी का है, जो सर्वोच्च नेता के कार्यालय में राजनीतिक सुरक्षा मामलों की देखरेख करते हैं और खुफिया तंत्र में उनकी गहरी जड़ें हैं. हालांकि, इन उम्मीदवारों के पास मुजतबा जैसा IRGC का मजबूत समर्थन नहीं हो सकता है.
विशेषज्ञों की सभा (Assembly of Experts)
ईरान के संविधान के अनुसार, 88 वरिष्ठ मौलवियों की यह सभा अगले सर्वोच्च नेता को चुनने के लिए जिम्मेदार है. हालांकि, व्यवहार में, यह संभावना है कि यह सभा IRGC द्वारा समर्थित उम्मीदवार को ही मंजूरी देगी. इसकी भूमिका औपचारिक हो सकती है, जबकि वास्तविक निर्णय पर्दे के पीछे IRGC के कमांडरों द्वारा लिया जाएगा.
विखंडित विपक्ष
खामेनेई शासन के खिलाफ व्यापक असंतोष के बावजूद, ईरानी विपक्ष गंभीर रूप से विखंडित, विभाजित और एक प्रभावी, एकजुट नेतृत्व से रहित है. यह विपक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी है और शासन के बने रहने का एक प्रमुख कारण है.
रजा पहलवी और राजशाही समर्थक
निर्वासित युवराज रजा पहलवी, अंतिम शाह के बेटे, ईरानी विपक्ष के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक हैं. वह अमेरिका से शासन परिवर्तन का आह्वान करते हैं और एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ईरान की वकालत करते हैं. उन्होंने ईरानी सेना और सुरक्षा बलों से खामेनेई शासन का साथ छोड़ने की अपील की है. हालांकि, उनकी लोकप्रियता एक जटिल मुद्दा है. प्रवासी ईरानियों के बीच उनके बहुत प्रशंसक हैं, लेकिन देश के भीतर उनकी अपील अनिश्चित है. कई ईरानी अभी भी उनके पिता के शाह के दमनकारी शासन और SAVAK (गुप्त पुलिस) की क्रूरता को याद करते हैं. इसके अलावा, इजरायल के साथ उनके कथित घनिष्ठ संबंध और इजरायली हमलों की निंदा करने से इनकार करना उन्हें एक विभाजनकारी व्यक्ति बनाता है, जिसे शासन अपने राष्ट्रवादी प्रचार के लिए आसानी से इस्तेमाल कर सकता है.
मुजाहिदीन-ए-खल्क (MEK/MKO)
मुजाहिदीन-ए-खल्क, जिसे पीपुल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइजेशन के नाम से भी जाना जाता है, कभी एक शक्तिशाली वामपंथी समूह था. हालांकि, 1980-88 के ईरान-इराक युद्ध के दौरान सद्दाम हुसैन के इराक का साथ देने के कारण, उन्हें आज भी देश के भीतर व्यापक रूप से "गद्दार" के रूप में देखा जाता है. यहां तक कि इस्लामी गणराज्य के कट्टर विरोधी भी उन्हें माफ करने को तैयार नहीं हैं. हालांकि वे निर्वासन में सक्रिय हैं और नेशनल काउंसिल ऑफ रेजिस्टेंस ऑफ ईरान (NCRI) के माध्यम से पश्चिमी देशों में लॉबिंग करते हैं, लेकिन ईरान के भीतर उनका कोई महत्वपूर्ण संगठित आधार नहीं है.
इस्लामी सुधारवादी और ग्रीन मूवमेंट
ईरान के भीतर कुछ विपक्षी समूह मौजूदा व्यवस्था के ढांचे के भीतर सुधार की वकालत करते हैं. 2009 का "ग्रीन मूवमेंट", जो चुनाव धोखाधड़ी के आरोपों के बाद उभरा था, इसका सबसे बड़ा उदाहरण था. इस आंदोलन ने लाखों लोगों को सड़कों पर उतारा, लेकिन इसका कोई स्पष्ट नेतृत्व नहीं था और अंततः इसे बेरहमी से कुचल दिया गया. इसके नेता, मीर हुसैन मुसावी और मेहदी कर्रूबी, अभी भी नजरबंद हैं, और इस आंदोलन को अब काफी हद तक निष्क्रिय माना जाता है.
ईरानी विपक्ष की सबसे बड़ी त्रासदी एक व्यवहार्य, एकजुट और आंतरिक रूप से वैध नेता की अनुपस्थिति है. कोई "नेल्सन मंडेला" या "लेक वालेसा" जैसी हस्ती नहीं है जो व्यापक सम्मान का आदेश दे सके और शासन के पतन के बाद के संक्रमण का नेतृत्व कर सके. यह नेतृत्व शून्यता एक अराजक सत्ता संघर्ष या IRGC के नेतृत्व वाली सैन्य तानाशाही को लोकतंत्र में एक सहज संक्रमण की तुलना में कहीं अधिक संभावित बनाती है.
भाग 3: ईरान के विखंडन का खतरा - जातीय और धार्मिक दरारें
ईरान, जिसे अक्सर एक अखंड फारसी और शिया राष्ट्र के रूप में देखा जाता है, वास्तव में एक जटिल और विविधतापूर्ण देश है, जिसमें कई जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यक समूह रहते हैं. ये समूह अक्सर देश के सीमांत, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और संसाधन-समृद्ध क्षेत्रों में केंद्रित हैं. शासन के प्रति उनकी ऐतिहासिक शिकायतें, भेदभाव और आर्थिक उपेक्षा, वर्तमान संकट के साथ मिलकर, देश के विखंडन के गंभीर खतरे को जन्म देती हैं. एक निर्वासित ईरानी नेता, ईमान फोरोउतान ने हाल ही में आशंका जताई है कि सत्ता परिवर्तन के बाद ईरान विभाजित हो सकता है, जिसमें कुर्द जैसे समूह इस स्थिति का लाभ उठा सकते हैं.
तालिका 1: ईरान की जातीय और धार्मिक संरचना
जातीय समूह (Ethnic Group) | अनुमानित जनसंख्या % | प्राथमिक धर्म (Primary Religion) | प्रमुख प्रांत (Key Provinces) | मुख्य शिकायतें/अलगाववादी भावना |
फारसी (Persian) | ~61% 35 | शिया इस्लाम (Shia Islam) | मध्य, दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्र (तेहरान, इस्फ़हान, शिराज) | बहुसंख्यक और शासक वर्ग; अन्य समूहों पर सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभुत्व. |
अज़ेरी (Azeri) | ~16-24% 35 | शिया इस्लाम (Shia Islam) | पश्चिमी और पूर्वी अज़रबैजान, अर्दबील, ज़नजान | बड़े पैमाने पर एकीकृत; कोई महत्वपूर्ण अलगाववादी आंदोलन नहीं. सर्वोच्च नेता खामेनेई खुद अज़ेरी हैं. |
कुर्द (Kurd) | ~10% 35 | सुन्नी (बहुसंख्यक), शिया (Sunni majority, Shia) | कुर्दिस्तान, करमानशाह, पश्चिमी अज़रबैजान, इलम | स्वायत्तता की लंबी लड़ाई; राजनीतिक और सांस्कृतिक दमन; आर्थिक उपेक्षा. मजबूत अलगाववादी आंदोलन. |
लुर (Lur) | ~6% 35 | शिया इस्लाम (Shia Islam) | लूरेस्तान, खुज़ेस्तान, बख्तियारिया | अक्सर कुर्दों का उप-समूह माना जाता है; कुछ हद तक हाशिए पर, लेकिन मजबूत अलगाववाद नहीं. |
बलूच (Baloch) | ~2% 35 | सुन्नी इस्लाम (Sunni Islam) | सिस्तान और बलूचिस्तान | गंभीर आर्थिक उपेक्षा; धार्मिक और जातीय भेदभाव; हिंसक जिहादी-अलगाववादी आंदोलन. |
अरब (Arab) | ~2% 35 | शिया (बहुसंख्यक), सुन्नी (Shia majority, Sunni) | खुज़ेस्तान (तेल समृद्ध प्रांत) | आर्थिक हाशिए पर; सांस्कृतिक दमन (अरबी भाषा पर प्रतिबंध); तेल राजस्व का लाभ न मिलना. |
तुर्कमेन (Turkmen) | ~2% 37 | सुन्नी इस्लाम (Sunni Islam) | गोलेस्तान, उत्तरी खुरासान | खानाबदोश जीवन शैली के कारण ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर; सांस्कृतिक अस्मिता का क्षरण. |
स्रोत: उपयोगकर्ता द्वारा प्रदान किया गया पाठ, CIA World Factbook, और अन्य अकादमिक स्रोत
कुर्द अलगाववाद: एक राष्ट्रहीन राष्ट्र का संघर्ष
ईरान के लगभग 10 मिलियन कुर्द, जो मुख्य रूप से देश के उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में रहते हैं, एक राज्यविहीन राष्ट्र का हिस्सा हैं जो तुर्की, इराक और सीरिया में भी फैला हुआ है. उनकी स्वायत्तता की मांग का एक लंबा और अक्सर हिंसक इतिहास रहा है.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ईरान में कुर्द संघर्ष आधुनिक काल में रजा शाह के उदय के साथ शुरू हुआ. इसका सबसे महत्वपूर्ण क्षण 1946 में आया जब सोवियत संघ के समर्थन से अल्पकालिक महाबाद गणराज्य की स्थापना हुई. हालांकि इसे जल्दी ही कुचल दिया गया, लेकिन यह कुर्द राष्ट्रवाद का एक शक्तिशाली प्रतीक बना हुआ है. 1979 की क्रांति के बाद, कुर्द समूहों ने नए इस्लामी शासन के खिलाफ विद्रोह किया, जिसे बेरहमी से दबा दिया गया, जिसमें 30,000 से अधिक कुर्द मारे गए.
प्रमुख समूह
आज, ईरान में कई प्रमुख कुर्द विपक्षी दल सक्रिय हैं.
- कुर्दिस्तान डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ ईरान (KDPI या PDKI): 1945 में स्थापित, यह सबसे पुराना और सबसे प्रभावशाली कुर्द दल है. इसका लक्ष्य ईरान के भीतर एक लोकतांत्रिक और संघीय ढांचे में कुर्द लोगों के लिए स्वायत्तता और आत्मनिर्णय का अधिकार हासिल करना है.
- कोमाला (Komala): 1969 में स्थापित, यह एक मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा वाला अधिक कट्टरपंथी समूह है. यह भी एक लोकतांत्रिक, संघीय ईरान के भीतर कुर्द अधिकारों की मांग करता है.
आंतरिक संघर्ष
कुर्द आंदोलन की एक बड़ी कमजोरी इसकी आंतरिक फूट रही है. 1980 के दशक में, KDPI और कोमाला के बीच एक हिंसक संघर्ष हुआ, क्योंकि कोमाला ने KDPI को "वर्ग शत्रु" कहना जारी रखा. इस आंतरिक युद्ध ने दोनों संगठनों को कमजोर कर दिया और ईरानी शासन के खिलाफ उनकी लड़ाई को बाधित किया.
वर्तमान स्थिति
2022 के "महिला, जीवन, स्वतंत्रता" आंदोलन में कुर्दों ने एक प्रमुख भूमिका निभाई, क्योंकि महसा अमिनी खुद एक कुर्द महिला थीं, और यह नारा ("जिन, जियान, आज़ादी") कुर्द आंदोलन से निकला था. वर्तमान इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच, कुर्द समूह सतर्क हैं. वे शासन के पतन की उम्मीद करते हैं, लेकिन एक और क्रूर दमन से बचने के लिए सीधे टकराव से बच रहे हैं. वे एक अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि अकेले कार्य करने से उन्हें अलग-थलग किया जा सकता है.
बलूच विद्रोह: हाशिए पर पड़े दक्षिण-पूर्व की आवाज
ईरान के दक्षिण-पूर्वी सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में रहने वाले लगभग 1.5 मिलियन बलूच, देश के सबसे हाशिए पर पड़े और गरीब समुदायों में से एक हैं [User's query text]. वे सुन्नी मुस्लिम हैं और दशकों से तेहरान में शिया-फारसी प्रतिष्ठान द्वारा गंभीर आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक भेदभाव का सामना कर रहे हैं.
शिकायतें और विचारधारा
बलूच अलगाववादियों की शिकायत है कि प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद, उनका क्षेत्र ईरान के सबसे अविकसित क्षेत्रों में से एक बना हुआ है. इस गहरी नाराजगी ने हिंसक अलगाववादी आंदोलनों को जन्म दिया है, जिनमें से कई सुन्नी जिहादी विचारधारा से प्रेरित हैं.
जैश अल-अदल (Jaish al-Adl)
जैश अल-अदल (न्याय की सेना) इस क्षेत्र में सक्रिय सबसे प्रमुख बलूच आतंकवादी समूह है. 2012 में जुंदल्लाह समूह के अवशेषों से गठित, यह मुख्य रूप से पड़ोसी पाकिस्तान से संचालित होता है. इस समूह ने ईरानी सीमा रक्षकों, IRGC कर्मियों और पुलिस स्टेशनों को निशाना बनाते हुए कई घातक हमले किए हैं. हाल के वर्षों में, उनके हमले अधिक जटिल और परिष्कृत हो गए हैं, जिसमें आत्मघाती हमलावर और एक साथ कई ठिकानों पर समन्वित हमले शामिल हैं. जैश अल-अदल का घोषित लक्ष्य सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की स्वतंत्रता और बलूच लोगों के लिए अधिक अधिकार हासिल करना है.
क्षेत्रीय आयाम
बलूच संघर्ष का एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय आयाम है. पाकिस्तान को डर है कि यदि ईरान में शासन अस्थिर होता है, तो यह "ग्रेटर बलूचिस्तान" आंदोलन को हवा दे सकता है, जो पाकिस्तान और ईरान दोनों के बलूच क्षेत्रों को मिलाकर एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की मांग करता है. जैश अल-अदल ने इजरायल-ईरान संघर्ष को एक "महान अवसर" के रूप में वर्णित किया है और ईरानी सशस्त्र बलों से उनके प्रतिरोध में शामिल होने का आह्वान किया है. यह स्थिति पाकिस्तान के लिए एक गंभीर सुरक्षा दुविधा पैदा करती है, क्योंकि ईरान में अस्थिरता सीधे उसकी अपनी सीमाओं पर फैल सकती है.
अरब अलगाववाद: खुज़ेस्तान का तेल-समृद्ध संघर्ष
दक्षिण-पश्चिमी ईरान का खुज़ेस्तान प्रांत, जो इराक की सीमा से लगा है, देश का आर्थिक हृदय है. यह ईरान के 80% से अधिक तटवर्ती तेल भंडार और 90% जलविद्युत ऊर्जा का घर है. यह प्रांत लगभग 2.2 मिलियन जातीय अरबों का भी घर है, जिन्हें अहवाज़ी अरब कहा जाता है.
ऐतिहासिक संदर्भ
खुज़ेस्तान, जिसे ऐतिहासिक रूप से "अरबिस्तान" के नाम से जाना जाता है, में अरब अलगाववाद का एक लंबा इतिहास है, जो 1920 के दशक में शेख खज़ल के विद्रोह से शुरू हुआ था, जब रजा शाह ने इस क्षेत्र की स्वायत्तता को समाप्त कर दिया था. ईरान-इराक युद्ध (1980-88) के दौरान, सद्दाम हुसैन ने ईरान के अरब अल्पसंख्यकों को तेहरान के खिलाफ भड़काने की कोशिश की, जिससे शासन का उनके प्रति अविश्वास और गहरा हो गया.
आर्थिक और सांस्कृतिक शिकायतें
अपने प्रांत की विशाल तेल संपदा के बावजूद, अहवाज़ी अरब गरीबी, बेरोजगारी और पर्यावरणीय गिरावट से पीड़ित हैं. वे राज्य द्वारा प्रायोजित भेदभाव और अपनी अरबी सांस्कृतिक पहचान को मिटाने के प्रयासों की शिकायत करते हैं, जिसमें स्कूलों में अरबी भाषा पर प्रतिबंध और अरबी नामों पर रोक शामिल है.
प्रमुख आतंकवादी समूह
इन शिकायतों ने कई सशस्त्र अलगाववादी समूहों को जन्म दिया है.
- अहवाज़ की मुक्ति के लिए अरब संघर्ष आंदोलन (ASMLA): यह सबसे प्रमुख समूहों में से एक है, जिसने ऊर्जा बुनियादी ढांचे, सरकारी भवनों और सुरक्षा बलों पर कई हमले किए हैं, जिनमें 2018 में अहवाज़ सैन्य परेड पर हुआ घातक हमला भी शामिल है. ASMLA का लक्ष्य एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक "अहवाज़" राज्य की स्थापना करना है जो खुज़ेस्तान से भी आगे तक फैला हो.
बाहरी समर्थन
अहवाज़ी अरब अलगाववादी समूहों पर लंबे समय से बाहरी शक्तियों, विशेष रूप से अरब राज्यों से समर्थन प्राप्त करने का आरोप लगता रहा है. सद्दाम हुसैन के इराक ने इन समूहों को सक्रिय रूप से समर्थन दिया था. हाल के वर्षों में, ईरान ने सऊदी अरब पर इन समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का आरोप लगाया है, ताकि ईरान के भीतर अस्थिरता पैदा की जा सके.
ईरान के विखंडन का खतरा एक एकीकृत अलगाववादी मोर्चे से नहीं, बल्कि इन अलग-अलग, असंगठित और कभी-कभी प्रतिस्पर्धी क्षेत्रीय विद्रोहों की एक श्रृंखला से आता है. कुर्द आंदोलन की अपनी आंतरिक ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता है. बलूच आंदोलन की सलाफी-जिहादी विचारधारा कुर्द समूहों के अधिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद से बहुत अलग है. खुज़ेस्तान में अरब अलगाववादियों की अपनी अनूठी ऐतिहासिक शिकायतें और पैन-अरबवादी झुकाव हैं. इन अल्पसंख्यक समूहों के बीच किसी "भव्य गठबंधन" का कोई सबूत नहीं है. यह फूट एक महत्वपूर्ण कमजोरी है. एक साफ-सुथरे विभाजन के बजाय, शासन का पतन कई स्थानीय, और संभावित रूप से प्रतिस्पर्धी गृह युद्धों को जन्म दे सकता है - एक "इराक 2.0" या "सीरिया 2.0" परिदृश्य, जैसा कि कुछ विश्लेषक चेतावनी देते हैं. यह अराजकता एक साधारण विभाजन से भी अधिक अस्थिर करने वाली हो सकती है.
इसके अलावा, प्रत्येक अलगाववादी आंदोलन एक सीमा-पार जातीय रिश्तेदारी वाले राज्य या आबादी से गहराई से जुड़ा हुआ है. कुर्द तुर्की, इराक और सीरिया में एक बड़ी आबादी का हिस्सा हैं. बलूच ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में फैले हुए हैं. खुज़ेस्तान के अरबों के इराक के साथ गहरे संबंध हैं. अज़ेरियों का अज़रबैजान गणराज्य से संबंध है. इसका मतलब है कि ईरान के भीतर अलगाववादी हिंसा में कोई भी महत्वपूर्ण वृद्धि एक घरेलू मुद्दा नहीं रहेगी. यह अनिवार्य रूप से पड़ोसी राज्यों (पाकिस्तान, तुर्की, इराक, अज़रबैजान) और संभावित रूप से बड़ी शक्तियों को आकर्षित करेगी, जो अपने पसंदीदा गुटों का समर्थन करने का अवसर या अपनी स्थिरता के लिए खतरा देख सकते हैं (जैसे, पाकिस्तान का "ग्रेटर बलूचिस्तान" का डर). यह आंतरिक पतन के जोखिम को एक बड़े क्षेत्रीय संघर्ष के जोखिम में बदल देता है.
भाग 4: एकता के सूत्र - विखंडन को रोकने वाले कारक
ईरान के विखंडन के शक्तिशाली केंद्रापसारक बलों के बावजूद, कई महत्वपूर्ण अभिकेन्द्रीय शक्तियाँ भी हैं जो देश को एक साथ रखने का काम करती हैं. इनमें एक गहरी जड़ें जमा चुकी राष्ट्रीय पहचान, सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह का एकीकरण, एक केंद्रीकृत अर्थव्यवस्था और एक क्रूर रूप से प्रभावी दमनकारी तंत्र शामिल है. इन कारकों को समझे बिना, ईरान के भविष्य का कोई भी विश्लेषण अधूरा होगा.
ईरानी राष्ट्रवाद की गहरी जड़ें
ईरान की पहचान केवल 1979 की इस्लामी क्रांति या शिया इस्लाम तक ही सीमित नहीं है. यह हजारों वर्षों के साझा इतिहास, एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और फारसी भाषा पर आधारित है, जिसने एक शक्तिशाली राष्ट्रीय पहचान का निर्माण किया है जो अक्सर जातीय और धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठ जाती है. प्राचीन फारसी साम्राज्यों की विरासत, जैसे कि हख़ामनी (Achaemenid) और सासानी (Sasanian) साम्राज्य, आज भी ईरानी मानस में गहराई से निहित है.
यह मजबूत राष्ट्रवाद शासन के लिए एक दोधारी तलवार है. एक ओर, विदेशी हस्तक्षेप - विशेष रूप से इजरायल या अमेरिका द्वारा - अक्सर एक "रैली-राउंड-द-फ्लैग" प्रभाव पैदा करता है. इस स्थिति में, यहां तक कि शासन के कई विरोधी भी राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा के लिए अस्थायी रूप से उसके पीछे खड़े हो सकते हैं, क्योंकि वे बाहरी ताकतों द्वारा देश के विभाजन को अस्वीकार करते हैं. दूसरी ओर, यही राष्ट्रवाद, जो अपनी जड़ों में धर्मनिरपेक्ष और पूर्व-इस्लामिक है, का उपयोग विपक्ष द्वारा भी किया जाता है. रजा पहलवी जैसे व्यक्ति अक्सर गौरवशाली फारसी अतीत की तुलना इस्लामी गणराज्य की विफलताओं से करते हैं, यह तर्क देते हुए कि वर्तमान शासन "गैर-ईरानी" है. इस प्रकार, जबकि राष्ट्रवाद बाहरी दुश्मन के खिलाफ अल्पकालिक अस्तित्व के लिए एक उपकरण हो सकता है, दीर्घावधि में यही भावना लिपिकीय व्यवस्था के खिलाफ हो सकती है.
अज़ेरी समुदाय: एकीकरण का स्तंभ
ईरान के विखंडन की चर्चा में अक्सर कुर्द, बलूच और अरबों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, लेकिन देश के सबसे बड़े जातीय अल्पसंख्यक, अज़ेरी समुदाय की अनूठी स्थिति को नजरअंदाज कर दिया जाता है. ईरान में लगभग 17.5 मिलियन अज़ेरी रहते हैं, जो आबादी का लगभग 16% से 24% हिस्सा हैं. अन्य प्रमुख अल्पसंख्यक समूहों के विपरीत, अज़ेरी कई मायनों में मुख्यधारा के ईरानी समाज में गहराई से एकीकृत हैं:
- धार्मिक एकरूपता: विशाल बहुमत में अज़ेरी शिया मुस्लिम हैं, जो उन्हें देश के फारसी बहुमत के साथ धार्मिक रूप से जोड़ता है. यह उन्हें सुन्नी-बहुल कुर्द और बलूच समुदायों से अलग करता है.
- राजनीतिक एकीकरण: अज़ेरी ईरानी सत्ता संरचना के उच्चतम स्तरों पर प्रतिनिधित्व करते हैं. सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण स्वयं सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई हैं, जो अज़ेरी मूल के हैं. यह एकीकरण उन्हें हाशिए पर पड़े अल्पसंख्यक की श्रेणी से बाहर रखता है.
- ऐतिहासिक एकीकरण: अज़ेरी सदियों से फारसी साम्राज्य के अभिन्न अंग रहे हैं और उन्होंने इतिहास के दौरान अभिजात वर्ग के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान रखा है.
अज़रबैजान गणराज्य के साथ भाषाई और सांस्कृतिक संबंधों के बावजूद, ईरानी अज़ेरियों के बीच कोई महत्वपूर्ण या व्यापक अलगाववादी आंदोलन नहीं है. वे बड़े पैमाने पर ईरानी पहचान के साथ एकीकृत महसूस करते हैं. यह एकीकरण ईरान के लिए एक शक्तिशाली "रणनीतिक गोंद" के रूप में कार्य करता है. अज़ेरी समुदाय की वफादारी या कम से कम निष्क्रियता, देश के बाल्कनीकरण (Balkanization) के खिलाफ सबसे मजबूत सुरक्षा कवच है. उनके बिना, ईरान के टूटने का कोई भी परिदृश्य अधूरा है. जब तक अज़ेरी समुदाय ईरान से अलग होने की इच्छा नहीं दिखाता, तब तक देश के पूर्ण विखंडन की संभावना बहुत कम रहती है.
आर्थिक अंतर्निर्भरता और केंद्रीकृत राज्य
ईरान की अर्थव्यवस्था अत्यधिक केंद्रीकृत है, जो विखंडन के खिलाफ एक और महत्वपूर्ण बाधा के रूप में कार्य करती है. देश का अधिकांश धन, विशेष रूप से तेल और गैस से होने वाला राजस्व, केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है और फिर विभिन्न प्रांतों में पुनर्वितरित किया जाता है.
- संसाधनों का केंद्रीकृत नियंत्रण: खुज़ेस्तान जैसे प्रांत तेल से समृद्ध हो सकते हैं, लेकिन इस राजस्व का नियंत्रण तेहरान के हाथों में है. एक स्वतंत्र खुज़ेस्तान को इस धन को निकालने, परिष्कृत करने और निर्यात करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को फिर से बनाना होगा, जो एक बहुत बड़ी चुनौती होगी.
- प्रांतों के बीच अंतर्निर्भरता: ईरान के औद्योगिक और खपत केंद्र मुख्य रूप से फारसी-बहुल केंद्रीय प्रांतों जैसे तेहरान और इस्फ़हान में स्थित हैं. तेहरान प्रांत अकेले ईरान के 45% उद्योगों की मेजबानी करता है. सीमांत प्रांत कच्चे माल और संसाधनों का उत्पादन कर सकते हैं, लेकिन वे तैयार माल, प्रौद्योगिकी और बाजारों के लिए देश के केंद्र पर निर्भर हैं. यह आर्थिक अंतर्निर्भरता प्रांतों को एक-दूसरे से बांधती है, जिससे अलगाव आर्थिक रूप से अव्यावहारिक और महंगा हो जाता है.
शासन का दमनकारी तंत्र
अंत में, इस्लामी गणराज्य के दमनकारी तंत्र की क्रूर दक्षता को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) और उसकी सहायक बासिज मिलिशिया ने पिछले चार दशकों में कई बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और विद्रोहों को सफलतापूर्वक कुचल दिया है.
यह सुरक्षा तंत्र शासन के प्रति वैचारिक रूप से वफादार है और असंतोष को दबाने के लिए अत्यधिक बल का उपयोग करने को तैयार है. जब तक यह दमनकारी तंत्र एकजुट और वफादार रहता है - और शासन अपने संरक्षण नेटवर्क के माध्यम से उनकी वफादारी सुनिश्चित करता है - यह किसी भी संगठित विद्रोह या अलगाववादी प्रयास को रोकने में एक शक्तिशाली शक्ति बना रहेगा. हाल के इजरायली हमलों ने IRGC के नेतृत्व को निशाना बनाया है, लेकिन संगठन की संरचनात्मक ताकत अभी भी काफी हद तक बरकरार है.
भाग 5: निष्कर्ष और भविष्य के परिदृश्य
ईरान आज एक ऐतिहासिक चौराहे पर खड़ा है. इजरायल के साथ अभूतपूर्व प्रत्यक्ष संघर्ष, गंभीर आंतरिक आर्थिक और सामाजिक दबाव, और जातीय तनावों के पुनरुत्थान ने मिलकर एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहां अयातुल्ला अली खामेनेई के 45 साल पुराने शासन का भविष्य अनिश्चित है. देश को तोड़ने वाली केंद्रापसारक शक्तियां (centrifugal forces) और इसे एक साथ रखने वाली अभिकेन्द्रीय शक्तियाँ (centripetal forces) के बीच एक तीव्र खींचतान चल रही है, जिसके परिणाम न केवल ईरान बल्कि पूरे मध्य पूर्व के लिए दूरगामी होंगे.
संश्लेषण: केंद्रापसारक बनाम अभिकेन्द्रीय शक्तियाँ
एक ओर, केंद्रापसारक शक्तियां ईरान को विखंडन की ओर धकेल रही हैं. इजरायल का बहुआयामी हमला शासन के सैन्य, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक स्तंभों को व्यवस्थित रूप से नष्ट कर रहा है. दशकों का आर्थिक कुप्रबंधन और प्रतिबंधों ने एक ऐसे संकट को जन्म दिया है जो जनता के गुस्से को भड़का रहा है. देश के सीमांत क्षेत्रों में, कुर्द, बलूच और अरब जैसे जातीय अल्पसंख्यक, जो लंबे समय से हाशिए पर हैं, शासन की कमजोरी को अपनी स्वायत्तता या स्वतंत्रता की मांगों को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में देख सकते हैं. ये सभी कारक मिलकर शासन के पतन और देश के टूटने का एक वास्तविक खतरा पैदा करते हैं.
दूसरी ओर, शक्तिशाली अभिकेन्द्रीय शक्तियां ईरान को एकजुट रखने का काम कर रही हैं. हजारों वर्षों का साझा इतिहास और संस्कृति पर आधारित एक मजबूत ईरानी राष्ट्रवाद, बाहरी आक्रमण के सामने एक एकीकृत शक्ति के रूप में कार्य कर सकता है. देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह, अज़ेरी, बड़े पैमाने पर शिया और ईरानी राज्य में एकीकृत हैं, जो विखंडन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कवच प्रदान करता है. एक अत्यधिक केंद्रीकृत अर्थव्यवस्था प्रांतों को एक-दूसरे पर निर्भर बनाती है, जिससे अलगाव आर्थिक रूप से मुश्किल हो जाता है. और अंत में, IRGC और बासिज का क्रूर दमनकारी तंत्र अभी भी असंतोष को कुचलने में सक्षम है.
भविष्य के चार संभावित परिदृश्य
इन प्रतिस्पर्धी ताकतों के संतुलन के आधार पर, ईरान के भविष्य के लिए चार मुख्य परिदृश्य सामने आते हैं:
- दमनकारी 'मजबूत शासक' राज्य (The Repressive 'Strongman' State): यह सबसे संभावित परिदृश्यों में से एक है. खामेनेई के बाद, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) एक उत्तराधिकारी, संभवतः मुजतबा खामेनेई, को स्थापित करता है और सत्ता पर अपनी पकड़ और मजबूत करता है. शासन जीवित रहता है, लेकिन यह और भी अधिक सैन्यीकृत, दमनकारी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग हो जाता है. जातीय विद्रोहों और नागरिक असंतोष को बेरहमी से कुचल दिया जाता है, लेकिन वे निम्न-स्तर पर सुलगते रहते हैं. ईरान एक "गैरीसन स्टेट" (garrison state) बन जाता है, जो बाहरी दुनिया से कटा हुआ और अपने ही लोगों के दमन पर केंद्रित है.
- अराजक 'विखंडित राज्य' (The Chaotic 'Fractured State'): इस परिदृश्य में, शासन का पतन एक शक्ति शून्य पैदा करता है जिसे कोई भी एक समूह भरने में विफल रहता है. एक एकीकृत विपक्ष की अनुपस्थिति में, देश एक बहु-पक्षीय गृहयुद्ध में उतर जाता है. कुर्द, बलूच और अरब क्षेत्रों में सशस्त्र समूह स्थानीय नियंत्रण के लिए आपस में और केंद्र सरकार के अवशेषों से लड़ते हैं. पड़ोसी देश - तुर्की, पाकिस्तान, इराक और खाड़ी राज्य - अपने हितों की रक्षा के लिए या अपने प्रॉक्सी का समर्थन करने के लिए हस्तक्षेप करते हैं. ईरान "इराक 2.0" या "सीरिया 2.0" बन जाता है, जो दशकों तक चलने वाली अस्थिरता और मानवीय संकट का स्रोत बन जाता है.
- समझौते पर आधारित 'संघीय लोकतांत्रिक राज्य' (The Negotiated 'Federal Democratic State'): यह सबसे आशावादी लेकिन सबसे कम संभावित परिदृश्य है. शासन के पतन के बाद, विभिन्न विपक्षी ताकतों, नागरिक समाज के नेताओं और जातीय समूहों के प्रतिनिधियों के बीच एक व्यापक-आधारित संक्रमणकालीन गठबंधन बनता है. वे एक नए, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संविधान पर बातचीत करते हैं जो एक विकेन्द्रीकृत या संघीय ढांचे के भीतर जातीय अल्पसंख्यकों को महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और राजनीतिक स्वायत्तता प्रदान करता है, जिससे ईरान की क्षेत्रीय अखंडता बनी रहती है. इस परिदृश्य के लिए ऐसे नेतृत्व और विश्वास की आवश्यकता होगी जो वर्तमान में ईरानी विपक्ष में मौजूद नहीं है.
- गतिरोध और 'जैसे-तैसे चलना' (Stagnation and 'Muddling Through'): इस परिदृश्य में, शासन पतन के कगार पर रहता है लेकिन पूरी तरह से गिरता नहीं है. यह बाहरी दबाव और आंतरिक विरोध के चक्रों से बचता है, दमन और मामूली रियायतों के संयोजन का उपयोग करके सत्ता में बना रहता है. अर्थव्यवस्था कमजोर बनी रहती है, और निम्न-स्तर के विद्रोह और विरोध प्रदर्शन जारी रहते हैं, लेकिन देश एक पूर्ण-स्तरीय गृहयुद्ध या पतन से बचता है. यह एक लंबा, धीमा क्षय है जिसमें कोई स्पष्ट संकल्प नहीं होता है, और ईरान एक अस्थिर और अप्रत्याशित क्षेत्रीय खिलाड़ी बना रहता है.
यद्यपि खामेनेई शासन निस्संदेह अपने इतिहास के सबसे कमजोर बिंदु पर है, लेकिन इसका पतन अभी भी निश्चित नहीं है. एकता की ताकतें, विशेष रूप से ईरानी राष्ट्रवाद और अज़ेरी समुदाय का एकीकरण, महत्वपूर्ण हैं. हालांकि, यदि शासन गिरता है, तो एक सहज लोकतांत्रिक परिवर्तन की संभावना बहुत कम है. एक संगठित, एकजुट और आंतरिक रूप से वैध विपक्ष की अनुपस्थिति का अर्थ है कि एक हिंसक सत्ता संघर्ष, IRGC के नेतृत्व वाली तानाशाही, या अराजक विखंडन का जोखिम कहीं अधिक है.
ईरान का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या राष्ट्रीय एकता की सदियों पुरानी ताकतें उन गहरी जातीय, धार्मिक और राजनीतिक दरारों पर काबू पा सकती हैं जिन्हें वर्तमान संकट ने उजागर कर दिया है. आने वाले महीने और साल न केवल ईरान के 87 मिलियन लोगों के लिए, बल्कि पूरे मध्य पूर्व और वैश्विक व्यवस्था के लिए भी निर्णायक होंगे. दुनिया देख रही है कि क्या यह प्राचीन राष्ट्र पतन की ओर बढ़ेगा या संकट से एक नए रूप में उभरेगा.