जर्मनी में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की पढाई असल में कितनी मुफ्त
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत में यह धारणा आम है कि जर्मन भाषा सीख कर आप जर्मनी जा सकते हैं और मुफ्त में पढ़ाई कर सकते हैं. लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है? जर्मनी में पढ़ रहे सभी भारतीय छात्र क्या बिलकुल मुफ्त पढ़ रहे हैं या उनका कुछ खर्चा भी है?राजस्थान के रहने वाले 25 वर्षीय निरंजन हाड़ा ने 2023 में जयपुर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट से अपनी ग्रैजुएशन पूरी की. इसके लिए उन्होंने बैंक से तीन लाख रुपये का लोन भी लिया था. अब पिछले दो साल से वह नौकरी कर लोन भरने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया कि उनकी शुरुआती तनख्वाह 22 हजार रुपये थी जिस से वह मुश्किल से ही लोन की किश्तें भर पाते थे.

खर्च के बाद बचने वाले कुछ पैसों से वह एक निजी संस्थान से जर्मन भाषा सीख रहे हैं. उनके दोस्तों ने उन्हें बताया है कि जर्मन भाषा सीख कर वह जर्मनी जा सकते हैं और आगे की पढ़ाई कर सकते हैं क्योंकि वहां सरकारी यूनिवर्सिटी में फीस नहीं लगती. इसलिए हाड़ा को लगता है कि जर्मन भाषा सीख कर उनके लिए आगे की राह आसान हो सकती है.

जर्मन यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाने की राह

जर्मनी में पढ़ने जाने के लिए सबसे पहले जरूरी होता है, एक यूनिवर्सिटी का चयन करना जिसमें छात्र की पसंद का कोर्स कराया जा रहा हो. इसके लिए यूनीअसिस्ट जैसी वेबसाइट का इस्तेमाल किया जा सकता है जिस पर एक यूनिवर्सिटी में आवेदन करने के लिए 70 यूरो यानी लगभग 7,000 रुपये की फीस लगती है और एक से ज्यादा यूनिवर्सिटी में अप्लाई करने के लिए 70 यूरो के बाद हर एक यूनिवर्सिटी के लिए अलग से 30 यूरो यानी लगभग 3,000 रुपये खर्च होते हैं. लेकिन आवेदन करने के लिए फीस के अलावा भी कई चीजों की जरूरत पड़ती है.

24 वर्षीय सौरभ सुमन ने दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से 2024 में अपनी ग्रैजुएशन पूरी की और अब इस साल अपनी मास्टर्स के लिए वह जर्मनी जा रहे हैं. उन्हें जर्मनी की हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में ट्रांसकल्चरल स्ट्डीज में मास्टर्स करने के लिए एडमिशन मिला है.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि आवेदन करने से लेकर दाखिला लेने की पूरी प्रक्रिया में उनका 18 से 19 लाख रुपये का खर्च हो गया है जबकि उन्होंने यूनीअसिस्ट (ऑनलाइन वेबसाइट) से अप्लाई करने के बजाय सीधे यूनिवर्सिटी अपनी एप्लिकेशन पोस्ट कर दी थी. इससे वेबसाइट में लगने वाली फीस तो बच गई थी लेकिन डाक भेजने की प्रक्रिया में लगभग 3,000 रुपये का खर्च आया.

उनका कोर्स अंग्रेजी भाषा में होने के कारण उनके लिए आईईएलटीएस का सर्टिफिकेट भी अनिवार्य था. आईईएलटीएस की परीक्षा में लगभग 18,000 रुपये लगे. इसके अलावा, भारतीय छात्रों के लिए जर्मनी की यूनिवर्सिटी में दाखिला पाने के लिए और पढ़ने जाने के वीजा, दोनों के लिए एपीएस सर्टिफिकेट अनिवार्य होता है. यानी अगर आप एक भारतीय छात्र हैं और जर्मनी का स्टूडेंट वीजा पाना चाहते हैं, तो आपको अपने सभी शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच अकादमिक इवैल्यूएशन सेंटर (एपीएस) से करानी होगी. तभी आपको एपीएस सर्टिफिकेट मिलेगा और वीजा प्रक्रिया शुरू हो सकेगी. एपीएस के लिए भी लगभग 18,000 रुपये की फीस लगती है.

भारतीयों को भरनी पड़ती है ज्यादा फीस

सौरभ ने बताया, "हमारी यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्रों को प्रति सेमेस्टर 1,500 यूरो यानी लगभग 1,50,000 रुपये की फीस देनी होती है जबकि यह फीस यूरोपीय संघ और कुछ अन्य देशों के छात्रों पर लागू नहीं होती.”

ईयू/ईईए देश वे यूरोपीय देश हैं जो या तो यूरोपीय संघ के सदस्य हैं या आर्थिक रूप से यूरोपीय संघ से जुड़े हुए हैं. इन देशों के छात्रों को जर्मनी में कई बार ट्यूशन फीस नहीं देनी पड़ती. सौरभ जैसे भारतीय छात्रों के लिए यह प्रक्रिया काफी अलग है. उन्हें ना केवल 1,500 यूरो प्रति सेमेस्टर भरने होंगे, जो कि चार सेमेस्टर के हिसाब से लगभग छह लाख रुपये हुए, बल्कि साथ में सेमेस्टर योगदान भी देना होगा, जो कि कुल लगभग 64,000 रुपये तक होगा. इसके अलावा उनके लिए ब्लॉक्ड अकाउंट भी अनिवार्य है.

जर्मन ब्लॉक्ड अकाउंट यानी ऐसा बैंक खाता, जो विदेशी छात्रों और नौकरी ढूंढने वाले वीजा आवेदकों के लिए जरूरी होता है. इस खाते को खोलने के लिए आपको 11,904 यूरो (लगभग 11.9 लाख रुपये) जमा करने होते हैं. जर्मनी पहुंचने के बाद, उसमें से हर महीने 992 यूरो (लगभग 99,000 रुपये) निकाल सकते हैं, ताकि उनके रहन-सहन और दैनिक खर्चे पूरे हो सकें. यह अकाउंट आवेदनकर्ता की वित्तीय स्थिरता को दिखाने के लिए जरूरी होता है.

सौरभ ने कहा, "इसके अलावा, अगर आपको जर्मनी में कमरा लेना है, तो वहां एक से तीन महीने तक का किराया अडवांस में जमा करना होता है. इसलिए जर्मनी जाने से पहले आपको इन सभी खर्चों के लिए भी अतिरिक्त पैसे पहले से तैयार रखने होते हैं.”

महिलाओं के लिए हेल्थ इंश्योरेंस में काफी खर्च

जर्मनी जाने वाले छात्रों के लिए मेडिकल इंश्योरेंस भी अनिवार्य होता है. सौरभ को ब्लॉक्ड अकाउंट के साथ ही इंश्योरेंस भी मिला है. उन्हें अलग से उसके लिए पैसे देने की कोई जरूरत नहीं पड़ी. लेकिन मोनिका के मामले में यह अलग है. मोनिका पिछले तीन साल से जर्मनी में हैं और लाइपसिग यूनिवर्सिटी से मेडिसिन की पढ़ाई कर रही हैं.

मोनिका ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्हें हर महीने 450 यूरो (लगभग 45,000 रुपये) का हेल्थ इंश्योरेंस लेना पड़ता है क्योंकि वह अस्पताल में काम करती हैं और यह उनके लिए एक अनिवार्य खर्च है. इसके बिना उन्हें अस्पताल में काम करने की अनुमति नहीं मिल पाएगी. अस्पताल में काम करने के योग्य होने के लिए उन्हें कई अलग-अलग तरह के इंश्योरेंस लेने पड़ते हैं, जिसमें उनका महिला होना भी एक अहम भूमिका निभाता है. ऐसे में उनका इंश्योरेंस उनके पुरुष साथियों के मुकाबले महंगा होता है.

उन्होंने बताया, "इंश्योरेंस कई तरह के होते हैं और कुछ बीमा पुरुष और महिला के लिए अलग होते हैं. अगर आप महिला हैं, तो आपके लिए कुछ खास बीमा योजनाएं होती हैं. जैसे, अगर आपको गायनाकोलॉजिस्ट (स्त्री रोग विशेषज्ञ) से चेकअप करवाना है, तो उसके लिए एक अलग इंश्योरेंस होता है. यह नॉर्मल हेल्थ इंश्योरेंस में कवर नहीं होता इसलिए इसके लिए आपको अलग से बीमा करवाना होता है.”

जर्मनी में इंश्योरेंस कंपनियां दो तरह की हैं सरकारी और प्राइवेट. सरकारी कंपनियों का छात्रों के लिए प्रीमियम तय है. निजी कंपनियों अलग-अलग फीस लेती हैं. इंश्योरेंस कंपनी बारमर के भारतीय छात्रों के लिए अकाउंट मैनेजर सेबास्टियन एयरलाइन ने डीडब्ल्यू को बताया, "सरकारी कंपनी से इंश्योरेंस लेने पर महीने का प्रीमियम 115 यूरो है." इसके अलावा बुजुर्ग होने पर मिलने वाली सेवाओं के लिए 36 यूरो का अतिरिक्त प्रीमयम भी देना होता है.

मोनिका ने आगे बताया कि प्रति सेमेस्टर उन्हें फीस के रूप में 200 यूरो (लगभग 20,000 रुपये) जमा कराने होते हैं. लेकिन उनका मुख्य खर्च घर के किराये और राशन पर होता है जिसमें हर महीने लगभग 600 यूरो (लगभग 60,000 रुपये) घर का किराया लग जाता है और राशन का कुल मिलाकर 300 यूरो (लगभग 30,000 रुपये) प्रतिमाह का खर्चा होता है. हालांकि, सर्दियों में यह खर्च कुछ हद तक बढ़ जाता है.

मोनिका ने कहा, "सर्दियों में यह खर्च बढ़ जाता है, क्योंकि इतनी ठंड की मुझे आदत नहीं है. तो मैं ज्यादा हीटिंग (कमरा गर्म रखना) करती हूं. इसलिए सर्दियों में महीने का किराया बढ़कर 650 यूरो (लगभग 65,000 रुपये) तक पहुंच जाता है.”

स्कॉलरशिप से हो सकती है मुफ्त पढ़ाई

केवल पैसे खर्च कर के आना ही जर्मनी में पढ़ने का एकमात्र तरीका नहीं है. कई तरह की स्कॉलरशिप भी छात्रों को आगे पढ़ने और बढ़ने का मौका देती है. जैसे कि एरास्मस मुंडस जॉइंट मास्टर्स स्कॉलरशिप. यह एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय स्कॉलरशिप है जिसके तहत छात्र तीन अलग-अलग यूरोपीय देशों और तीन यूनिवर्सिटियों में मास्टर्स डिग्री कर सकते हैं, वह भी बिलकुल मुफ्त. यह प्रोग्राम 33 यूरोपीय देशों में लागू है. इसके तहत छात्र तीन से बारह महीनों तक यूरोप में पढ़ाई कर सकते हैं. इस दौरान छात्रों को कोई ट्यूशन फीस नहीं देनी पड़ती बल्कि कुछ छात्रों को रहने और यात्रा खर्चों के लिए पैसे भी मिलते हैं.

आदित्य पटेल को यह स्कॉलरशिप मिली है. वह अभी अपने दूसरे सेमेस्टर में हैं और लग्जमबर्ग यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई कर रहे हैं. इसके साथ-साथ जर्मनी की माइंत्स यूनिवर्सिटी में उनका दाखिला हो गया है जहां वह सितंबर 2025 से लेकर फरवरी 2026 तक के बीच पढ़ेंगे.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "केवल तभी आपको इस प्रोग्राम में पूरी स्कॉलरशिप मिलती है, जब आप इंटरव्यू पास करते हैं और टॉप 17 छात्रों में आते हैं. अगर आपकी रैंक 18 से 22 के बीच आती है, तो आपको आंशिक स्कॉलरशिप मिल सकती है. मुझे फुल स्कॉलरशिप मिली है, इसलिए मैं चारों यूनिवर्सिटियों में ट्यूशन फीस और सेमेस्टर फीस से पूरी तरह मुक्त हूं और मुझे हर महीने 1,400 यूरो (लगभग 1,40,000 रुपये) का भत्ता भी मिलता है. इससे मेरे रहने और जरूरतों का खर्च निकल जाता है.”

उन्होंने बताया कि इस स्कॉलरशिप का मुख्य हिस्सा उनके किराये में जाता है जो कि हर महीने लगभग 400 यूरो (लगभग 40,000 रुपये) के आस-पास होता है. इसके अलावा राशन के लिए 300 से 400 यूरो (लगभग 30,000 से 40,000 रुपये) तक का खर्च आ जाता है. सरकारी चीजों जैसे अलग-अलग देशों में रेजिडेंस परमिट वगैरह लेने में भी कुछ खर्च आता है, जो उन्हें इस भत्ते में से ही खर्च करना पड़ता है.

पार्ट-टाइम नौकरी खर्चे के लिए काफी नहीं

आंशिक स्कॉलरशिप पाने वालों के पास स्टूडेंट जॉब करने का विकल्प होता है जिससे वे अपने खर्च का कुछ हिस्सा कमा सकते हैं. लेकिन उन्हें महीने में निश्चित घंटे ही काम करने की अनुमति होती है, जिसकी सीमा अलग-अलग देशों में अलग-अलग होती है. जैसे लग्जबर्ग में महीने में केवल 40 घंटे ही काम किया जा सकता है. इससे छात्र केवल 750 यूरो (लगभग 75,000 रुपये) के आसपास ही कमा सकते हैं.

आदित्य ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि मैं स्कॉलरशिप के बिना जर्मनी में पढ़ाई कर पाता क्योंकि भले ही ट्यूशन फीस, सेमेस्टर फीस या अन्य फीस माफ हो जाएं लेकिन यहां सिर्फ रहने का खर्च ही करीब 950 यूरो (लगभग 9,50,000 रुपये) प्रति माह तक है. चूंकि मैं एक साधारण परिवार से आता हूं, तो हर महीने 90,000 से 1,00,000 रुपये का खर्च उठाना मुश्किल है. इसलिए, बिना स्कॉलरशिप के मेरे लिए यहां पढ़ पाना संभव नहीं था.”

आदित्य की तरह ही खुशबू साहू भी एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती हैं. उन्हें 2024 में यूरोप के लिथुआनिया में पढ़ने के लिए आने का मौका मिला था. विंटर कोर्स के दौरान उन्हें तीन महीने के लिए वीतौतस मैगनस यूनिवर्सिटी में आने का मौका मिला था. इसके साथ-साथ उन्हें 850 यूरो (लगभग 85,000 रुपये) की स्कॉलरशिप भी मिली.

लेकिन खुशबू ने डीडब्ल्यू को बताया कि इतना पैसा उनके खर्चे के लिए काफी नहीं था. बल्कि उन्हें 15,000 से 20,000 रुपये के करीब खुद खर्च करने पड़ गए थे. वह भी तब जब उन्हें रहने के लिए अलग से कोई खर्च नहीं करना था और ना ही यूनिवर्सिटी की फीस भरनी थी. सिर्फ खाने-पीने और इधर-उधर आने-जाने में ही उनका इतना खर्च हो गया था.

ऐसे में जर्मनी में पढ़ रहे और पढ़ने जाने वाले छात्रों के खर्चे और कमाई का सटीक अनुमान लगाना तो संभव नहीं है क्योंकि यह पढाई के विषय और रहन-सहन के अनुसार बदल सकता है. इसके अलावा उनके जाने का जरिया भी तय करता है कि कितना खर्च होगा. जैसे कि वह स्कॉलरशिप लेकर गए हैं, सरकारी यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है या किसी निजी संस्थान में पढ़ रहे हैं. ऐसे कई कारण भी खर्चे और बचत में मुख्य भूमिका निभाते हैं. हालांकि, विकल्प सब तरह के मौजूद हैं और छात्र अपनी सहूलियत और काबिलियत के अनुसार अपने लिए सटीक विकल्प चुन सकते हैं.