
पिछले साल बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा था. इसके बाद देश में अंतरिम सरकार का गठन हुआ. और, अब यहां फिर से चुनाव कराने की तैयारी हो रही है.बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेता मुहम्मद यूनुस ने हाल ही में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता से मुलाकात की. उम्मीद जताई जा रही है कि देश में अगले साल होने वाले चुनाव में यह पार्टी सबसे आगे रह सकती है. पिछले 15 वर्षों से भी अधिक समय से ब्रिटेन में निर्वासन में रह रहे तारिक रहमान, बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. यह वही प्रमुख राजनीतिक दल है जिसका नेतृत्व उनकी मां और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया ने कई दशकों तक किया था.
ब्रिटेन की राजधानी लंदन में यह बैठक ऐसे समय में हुई है, जब बांग्लादेश में तनाव बढ़ रहा है. दरअसल, अगस्त 2024 में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद से ही बांग्लादेश एक राजनीतिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है, जहां तनाव लगातार बना हुआ है.
चुनाव से पहले सुधारों की जरूरत
बीएनपी दिसंबर 2025 तक चुनाव कराना चाहती थी, जबकि अंतरिम सरकार अप्रैल 2026 तक चुनाव कराने का लक्ष्य लेकर चल रही थी, क्योंकि उसका कहना था कि उसे कई सुधारों को लागू करने के लिए समय चाहिए. यूनुस और रहमान अब इस बात पर सहमत हो गए हैं कि अगर समय रहते जरूरी सुधार हो जाते हैं, तो अगले साल फरवरी में चुनाव कराए जा सकते हैं. इन सुधारों में, संवैधानिक सुधार, चुनावी प्रक्रिया में बदलाव, न्यायिक स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना शामिल है. अधिकारियों को पिछले साल हुए बड़े विरोध प्रदर्शनों के पीड़ितों को न्याय दिलाना भी जरूरी है, जिनमें सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा बैठे थे. इनमें से ज्यादातर लोग हसीना और उनकी अवामी लीग के प्रति वफादार सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए थे.
पिछले साल विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्र नेताओं द्वारा बनाई गई नई पार्टी, नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) की नेता तसनीम जारा का कहना है कि सरकार ने भले ही चुनाव के लिए शुरुआती कदम उठा लिए हों, लेकिन ‘चुनाव के लिए जरूरी संस्थागत ढांचा अभी भी पूरी तरह तैयार नहीं है या उसमें कमियां हैं.' उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "निष्पक्ष चुनाव आयोग, तटस्थ नागरिक प्रशासन और स्वतंत्र न्यायपालिका जैसे प्रमुख चुनावी बुनियादी ढांचे में तत्काल सुधार की जरूरत है. एक विश्वसनीय चुनाव इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या राजनीतिक दल जल्द ही सुधार प्रस्तावों पर सहमत हो सकते हैं और क्या उन प्रस्तावों को समय पर लागू किया जाता है.”
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हालांकि, बीएनपी और यूनुस के बीच हुआ समझौता बेशक कई पर्यवेक्षकों के लिए खुशी की बात है, लेकिन उनका कहना है कि विश्वसनीय और निष्पक्ष चुनाव के लिए, कानून-व्यवस्था को फिर से कायम करना अब भी सबसे महत्वपूर्ण काम है, ताकि सभी प्रमुख दल इसमें हिस्सा ले सकें. बीएनपी अध्यक्ष के विशेष सहायक सायमुम परवेज का मानना है कि ‘कानून और व्यवस्था की खराब स्थिति, अनियंत्रित बेकाबू भीड़ और गैर-राजनीतिकरण (लोगों को राजनीति से दूर करना) को बढ़ावा' मुख्य बाधाएं हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "चूंकि बांग्लादेश के आम लोग आम तौर पर चुनावी अभियानों में भाग लेने और उसमें शामिल होने के लिए उत्साहित रहते हैं, इसलिए सामुदायिक समर्थन से इन बाधाओं को दूर करना संभव है.”
वहीं, ढाका में रहने वाले राजनीतिक इतिहासकार मोहिउद्दीन अहमद इस मामले में उतने आशावादी नहीं हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "बांग्लादेशी राजनीतिक दल चुनावों के दौरान शांतिपूर्ण तरीके से व्यवहार नहीं करते हैं. मतदान केंद्रों पर नियंत्रण के लिए वे जब भी संभव हो बल का प्रयोग करते हैं. अगर प्रशासन और पुलिस बल ठीक से काम नहीं करते हैं, तो चुनावों के दौरान स्थिति को नियंत्रण में बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा.”
पूर्व सरकार और सुरक्षा अधिकारियों पर आपराधिक आरोप
इस साल संयुक्त राष्ट्र के एक जांच दल ने पाया है कि बांग्लादेश की पिछली सरकार के अधिकारियों और उसके सुरक्षा बलों ने पिछले साल गर्मियों में हुए प्रदर्शनों के दौरान योजनाबद्ध तरीके से गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन किए थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि संभवतः मानवता के खिलाफ अपराध भी हुए थे.
5 अगस्त, 2024 को भारत भाग जाने के बाद से हसीना और उनके सहयोगियों के खिलाफ सैकड़ों मामले दर्ज किए गए हैं. वहीं, उनकी अवामी लीग पार्टी का दावा है कि ये मामले राजनीति से प्रेरित हैं. पर्यवेक्षकों का कहना है कि पिछले साल की कार्रवाई के बाद से देश के सुरक्षा बलों की विश्वसनीयता खत्म हो गई है, जिसकी वजह से सुरक्षा स्थिति बिगड़ रही है.
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राजनीतिक समाजशास्त्री और लंदन के एसओएएस विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नाओमी हुसैन ने कहा कि बांग्लादेश पर शासन करना कठिन था और व्यवस्था पर ‘पकड़ बनाए रखना हमेशा मुश्किल' रहा है. हुसैन ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह भी एक कारण है कि लोगों ने शेख हसीना को इतने लंबे समय तक बर्दाश्त किया. कम से कम उनके पास व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति थी, भले ही वह उन लोगों के लिए हिंसक और दमनकारी थीं जो असहमति या विरोध जताना चाहते थे.”
उन्होंने कहा कि हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद से राजनीतिक शून्यता को देखते हुए, यह ‘कोई आश्चर्य की बात नहीं' है कि वर्तमान में कानून और व्यवस्था ‘एक समस्या' है. उन्होंने बताया, "मुझे लगता है कि सेना को पिछले साल कथित तौर पर मानवाधिकारों के उल्लंघन में शामिल होने के कारण सावधानी से काम करने की आवश्यकता महसूस हो रही है. इसका मतलब है कि वे उन भीड़ और इस्लामी गिरोहों के साथ बहुत ज्यादा सख्ती नहीं बरत रहे हैं, जिनके बारे में हमें खबरों में पढ़ने को मिल रहा है.”
अराजकता से निपटने के लिए सेना को लाया गया
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने देश में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस की मदद करने के लिए कैप्टन या उससे उच्च रैंक वाले सेना अधिकारियों को सशक्त बनाया है. हालांकि, डॉक्टर से नेता बनीं तसनीम जारा ने डीडब्ल्यू को बताया कि सेना की तैनाती से संकट का समाधान नहीं हुआ है और इससे सिर्फ ‘गहरी समस्याएं उजागर हुई हैं.'
जारा ने कहा, "पिछले 16 सालों से सरकार-प्रायोजित हिंसा और दमन ने जनता के भरोसे को बहुत कमजोर कर दिया है और शासन की नींव को अस्थिर कर दिया है. सबसे पहले इस पुरानी व्यवस्था को ठीक करने की जरूरत है. स्थायी स्थिरता सिर्फ पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों में संस्थागत सुधार के माध्यम से ही आएगी. हमें अभी ये सुधार देखने को नहीं मिले हैं.”
क्या अवामी लीग चुनाव में हिस्सा ले पाएगी?
अवामी लीग पर पिछले महीने प्रतिबंध लगा दिया गया था, क्योंकि पार्टी और उसके नेताओं पर मानवता के खिलाफ कथित अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए एक विशेष ट्रिब्यूनल द्वारा मुकदमा चलाया जाना है. हालांकि, हुसैन सहित अन्य पर्यवेक्षकों का मानना है कि बांग्लादेश की सबसे पुरानी पार्टी को आगामी चुनावों में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि अभी भी इसका बड़ा जनाधार है, भले ही इसके कई नेताओं पर ‘कई अपराधों के विश्वसनीय आरोप हैं.'
हुसैन ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह पार्टी एक बहुत बड़ा राष्ट्रीय संगठन है और पूरे देश में, खास तौर पर ग्रामीण इलाकों, अल्पसंख्यक समूहों और महिलाओं के बीच अभी भी बहुत समर्थन हासिल करती दिखती है. इस पर प्रतिबंध लगाने से कोई फायदा नहीं होगा.” उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के कदम से बीएनपी को ‘बहुत ज्यादा बहुमत' मिलने की संभावना है, ‘जिसके बाद वह ठीक वैसा ही व्यवहार करने में सक्षम हो जाएगी जैसा कि अवामी लीग ने 2008 में बहुत ज्यादा बहुमत हासिल करने के बाद किया था.'
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दूसरी ओर, जारा का मानना है कि अवामी लीग को चुनावों में भाग लेने की अनुमति देने से पहले, उसके नेताओं को उनके कथित मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जिनमें ‘जबरन गायब कराना, यातना, चुनाव में धांधली और कई लोगों की हत्याएं कराना शामिल हैं.'
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "जब तक कानून के तहत सही जांच और प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक किसी आरोपी संगठन को भाग लेने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. अगर न्याय को नजरअंदाज किया गया, तो लोगों का भरोसा खत्म हो जाएगा और देश फिर से उसी अत्याचार की ओर लौट सकता है जिसके खिलाफ जनता ने आवाज उठाई थी. हर किसी को कानून का पालन करना होगा. कोई भी पार्टी उससे ऊपर नहीं है.”