स्टेम सेल डोनरों की कमी से जूझ रहा जर्मनी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी की बूढ़ी होती आबादी, ल्यूकेमिया के मरीजों के लिए भी चुनौती बन गई है. ल्यूकेमिया के पीड़ितों के लिए स्टेम सेल दान करने वालों का डेटाबेस तैयार करने वाली जर्मनी की एक संस्था ने इस बात की जानकारी दी है.जनसांख्यिकी में हो रहे बदलावों के कारण जर्मनी में स्टेम सेल दान करने वालों की संख्या में कम होती जा रही है. इस कमी के कारण ल्यूकेमिया जैसी गंभीर बीमारी का इलाज बेहद मुश्किल होता जा रहा है. जर्मनी में स्टेम सेल दान करने वालों की उम्र 18 से 61 के बीच होनी जरूरी है. चूंकि अब बड़ी जनसंख्या ऐसे लोगों की है जो इस उम्र के दायरे में नहीं आते हैं, इसलिए नए दानकर्ताओं को खोजने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

जर्मनी की गैर सरकारी संस्था 'बोन मैरो डोनर फाइल' के ताजा आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी में हर बारह मिनट पर एक व्यक्ति ल्यूकेमिया का शिकार हो जाता है. संस्था के अध्यक्ष स्टेफान शूमाकर ने समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि ल्यूकेमिया के मरीजों के लिए स्टेम सेल उम्मीद की एकमात्र किरण होती है. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि जर्मनी में हर दस में से एक मरीज को खुद के लिए स्टेम सेल मैच नहीं मिलता.

लगातार घट रही है स्टेम सेल दान करने वालों की संख्या

वक्त के साथ नए स्टेम सेल दानकर्ताओं की संख्या घटती जा रही है. 2019 में जहां संस्था के दानकर्ताओं के डेटाबेस से 66,000 लोग कम हुए थे. वहीं, आज 2025 में यह संख्या 1,50,000 तक पहुंच गई है. कोरोना महामारी से पहले संस्था ने 2019 में 6,88,000 नए दानकर्ताओं को रजिस्टर किया था. 2024 में ऐसे लोगों की संख्या घटकर 3,44,000 पर पहुंच गई.

स्टेम सेल दान करने वालों में 30 साल की उम्र के लोगों की मांग सबसे ज्यादा होती है लेकिन संस्था नए युवा दानकर्ताओं की कमी से भी जूझ रही है. युवाओं तक पहुंचने के लिए डीकेएमएस ने स्कूलों का सहारा लिया है. अब संस्था स्कूल पाठ्यक्रम के जरिए युवाओं को जागरूक कर रही है. इसके साथ ही सोशल मीडिया, स्पोर्ट्स क्लब और म्यूजिक फेस्टिवल की भी मदद ली जा रही है, जहां अमूमन युवाओं की संख्या अधिक होती है. शूमाकर का मानना है कि इन उपायों की मदद से ही वह स्टेम सेल दान करने वालों की घटती संख्या की भरपाई कर सकते हैं.

कोरोनो महामारी के बाद बदली स्थिति

यह समस्या सिर्फ जर्मनी ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी देखने को मिल रही है. यूके में भी स्टेम सेल दान करने वालों की संख्या में गिरावट देखी गई है. इसके साथ ही जरूरत पड़ने पर अगर डेटाबेस में मौजूद लोगों से संपर्क किया जाता है तो कई बार वे स्टेम सेल दान करने से इनकार कर देते हैं. इससे मरीज के लिए मैच खोजना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

संस्था के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद स्थिति तेजी से बदली है. लोग स्टेम सेल दान करने को लेकर अधिक असहज हुए हैं. फिलहाल डीकेएमएस के डेटाबेस में करीब 1.25 करोड़ लोग मौजूद हैं. इनमें से 78 लाख लोग जर्मनी के हैं. संस्था ना केवल जर्मनी बल्कि भारत, यूके, अमेरिका, चिली, पोलैंड और दक्षिण अफ्रीका में भी ल्यूकेमिया के मरीजों की मदद कर रही है.