जनवरी 2024 की शुरुआत में ही जर्मनी में तीन दिन की रेल हड़ताल हुई. अब एक और अभूतपूर्व हड़ताल से देश में परिवहन और आर्थिक सेवाएं चरमरा गई हैं. रेल ड्राइवरों की छह दिन लंबी इस हड़ताल का असल नतीजा क्या होगा?जर्मनी में सरकार नियंत्रित रेलवे सेवा डॉयचे बान (डीबी) और ट्रेन ड्राइवरों की यूनियन 'जीडीएल' के बीच वेतन को लेकर विवाद जारी है. 22 जनवरी को जीडीएल ने छह दिन लंबी हड़ताल की घोषणा कर दी. इससे पहले जनवरी में ही तीन दिन की एक और हड़ताल हुई थी, जिससे कई रेल सेवाएं चरमरा गई थीं.
ताजा हड़ताल 24 जनवरी की सुबह से शुरू होकर 29 जनवरी की शाम तक चलेगी. यह जर्मनी के रेल इतिहास की सबसे लंबी हड़ताल है. मालगाड़ियों की हड़ताल और भी लंबी है. यह 23 जनवरी की शाम से अगले सोमवार शाम छह बजे तक चलेगी, यानी कुल 144 घंटे. इस हड़ताल की मार न सिर्फ जर्मन रेलपर पड़ रही है, बल्कि उन कंपनियों पर भी गहरा असर पड़ रहा है, जिनका कच्चा माल और बाकी सामान रेल में आता-जाता है.
इसके अलावा पड़ोसी देशों पर भी इस हड़ताव का असर महसूस होगा. डॉयचे बान की करीब 60 फीसदी मालगाड़ियां पूरे यूरोप में चलती हैं. डिजिटल और परिवहन मंत्रालय के मुताबिक, यूरोप में मालगाड़ियों के 11 कॉरिडोर में से छह जर्मनी से होकर गुजरते हैं. जर्मन आर्थिक संस्थान के थोमास पुल्स कहते हैं: "जर्मनी यूरोप की लॉजिस्टिक सेवाओं का केंद्र है."
कीमत की मात्रा तय करना कठिन
ऐसी हड़तालों की कीमत का आकलन मुश्किल होता है. पुल्स के मुताबिक, उत्पादन के वास्तविक नुकसान के बिना किसी भी आंकड़े से कीमत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकेगा. पिछली हड़तालों के विश्लेषण दिखाते हैं कि उनसे रोजाना 10 करोड़ यूरो तक का नुकसान हो सकता है. जर्मन आर्थिक संस्थान में आर्थिक शोध के प्रमुख मिषाएल ग्रूमलिंग बताते हैं कि छह दिन की हड़ताल की लागत में रैखिक वृद्धि तो नहीं होगी, लेकिन कुछ मामलों में लागत बढ़ेगी. वह कहते हैं, "मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि एक अरब यूरो का नुकसान होगा."
इसके अलावा, मालवाहक रेलों की हड़ताल, ट्रैफिक बाधाओं के रूप में बाद तक भी महसूस की जाएगी. पिछली मालढुलाई हड़ताल के बाद ट्रैफिक जाम हटाने में कई दिन लग गए थे. डॉयचे बान का अंदाजा है कि उसे रोजाना करीब ढाई करोड़ यूरो का नुकसान होगा.
कॉमर्स बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री योर्ग क्रेमर का आकलन है कि हड़ताल से सिर्फ परिवहन सेक्टर में ही मूल्य निर्माण में रोजाना तीन करोड़ यूरो की कटौती होगी. ये दैनिक सकल घरेलू उत्पाद का 0.3 फीसदी हिस्सा है. क्रेमर ने आगाह किया, "आपूर्ति समस्याओं की वजह से अगर फैक्ट्रियों को अपना उत्पादन बंद करना पड़े, तो ज्यादा बड़ा आर्थिक नुकसान होगा. उसके अलावा रेल हड़ताल से लोगों पर भी दबाव बढ़ गया है और बिजनेस ठिकाने के रूप में जर्मनी की पहले से खराब छवि ज्यादा खराब हो रही है."
जर्मन फ्रेट फॉर्वर्डिंग एंड लॉजिस्टिक्स एसोसिएशन के प्रबंध निदेशक फांक हस्टर कहते हैं कि हड़तालों से रेल मालढुलाई पर लॉजिस्टिक कंपनियों का विश्वास खत्म हो सकता है. बार-बार की तकनीकी नाकामियों, बुरी तरह से जर्जर रेलवे नेटवर्क और बुनियादी ढांचे की समस्याओं के चलते उसकी साख पहले ही काफी गिर चुकी थी. रेल से मालढुलाई के लक्ष्य के लिए ये एक अच्छा शुरुआती बिंदु नहीं है. 2021 में जर्मन सरकार के गठबंधन समझौते के मुताबिक, मालढुलाई में रेल का बाजार हिस्सा 2030 तक 25 फीसदी बढ़ना है. मौजूदा मार्केट शेयर 19 फीसदी है.
रेल से माल की ढुलाई बहुत जरूरी है
जर्मनी में करीब दो तिहाई माल सड़कों से भिजवाया जाता है. सिर्फ 20 फीसदी माल की ढुलाई रेल से होती है. परिवहन विशेषज्ञ पुल्स ने डीडब्ल्यू को बताया कि कम हिस्सेदारी होने के बावजूद यह बहुत महत्वपूर्ण थी. वह बताते हैं, "मार्केट शेयर के लिहाज से देखें, तो ये अभी भी उतना स्पष्ट नहीं है. रेल से होने वाली बहुत सी ढुलाई दूसरे ढंग से प्रोसेस नहीं हो सकती या फिर उसमें बड़ी मुश्किलें आती हैं."
उदाहरण के लिए, इस्पात जैसे विशाल उद्योग और कैमिकल इंडस्ट्री रेल परिवहन पर निर्भर हैं. रेल से कोयले की ढुलाई के बिना ना तो इस्पात उद्योग की भट्ठीयां जलेंगी, ना ही वो पावर स्टेशन जहां बिजली उत्पादन हो रहा है. रही बात रासायनिक उद्योग में इस्तेमाल होने वाले बहुत से खतरनाक माल की, तो कानूनन उसकी ढुलाई के लिए रेल ही चाहिए क्योंकि उससे दुर्घटना का खतरा कम रहता है.
कार उद्योग में इस्तेमाल होने वाले उत्पाद या तैयार वाहन भी रेलों से ही भेजे जाते हैं. पुल्स कहते हैं, "निर्यात वाले सभी वाहनों की ब्रेमरहाफेन के अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह तक ढुलाई रेल से ही होती है. वहां से उन्हें जहाजों में रखा जाता है. लेकिन अगर ट्रेनें रद्द हो गईं, तो क्या होगा?" पुल्स के मुताबिक, सड़कों से उतने सारे वाहनों को लादकर ले जाने के लिए पर्याप्त ट्रक भी नहीं हैं.|
मालढुलाई की दूसरी सेवाओं को फायदा
वैसे तो 40 फीसदी मार्केट शेयर के साथ डीबी मालढुलाई की सबसे बड़ी सेवा है, लेकिन बाकी माल की ढुलाई के लिए बहुत सारी निजी कंपनियां भी हैं. हड़तालों का उन पर सीधा असर नहीं पड़ेगा.
डीबी कार्गो की प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के संगठन डी ग्युटरबानेन के प्रबंध निदेशक पीटर वेस्टनबर्गर कहते हैं, "60 फीसदी रेल मालढुलाई सामान्य ढंग से ही चल रही है और कम रेल यातायात होने से अपने गंतव्यों पर सही ढंग से पहुंच भी रही है." निजी कंपनियां उस माल को भी उठा लेती हैं, जो डीबी कार्गो हड़ताल की वजह से नहीं ले जा पा रहा है.
लेकिन अगर रेलमार्ग के सिग्नलकर्मी भी हड़ताल पर चले गए, तो सब ठप हो जाएगा. पुल्स के मुताबिक आपातकालीन सेवाएं भी नहीं चलेंगी. वह कहते हैं, "केंद्रीय ट्रैफिक कंट्रोल के बिना कोई ट्रेन नहीं चलेगी."
आर्थिक मंदी ने भी बिगाड़ा खेल
आर्थिक गतिविधि की मौजूदा सुस्त रफ्तार ने भी हड़ताल के दुष्प्रभावों को बढ़ाया है. पुल्स कहते हैं कि औद्योगिक उत्पादन अपनी क्षमता से कहीं नीचे चल रहा है, ऐसे में अगर माल समय पर डिलीवर न हुआ तो उत्पादन को स्थगित करना ज्यादा आसान होता है. फिर भी उत्पादन और लॉजिस्टिक चेन की रीशेड्युलिंग से लागत तो जाहिर तौर पर बढ़ ही जाती है.
और तो और, ऐसा भी नहीं है कि बड़ी कंपनियां बिल्कुल भी तैयार न हों. इससे भी हड़ताल के नकारात्मक प्रभावों को बल मिलेगा. कुल मिलाकर, हस्टर कहते हैं कि सप्लाई चेन कोविड-19 महामारी के बाद ज्यादा लचीली हो चुकी है. हड़ताल न भी हो, तब भी मालढुलाई करने वाली रेल का एक दिन देर से पहुंचना असामान्य बात नहीं. इसलिए इंडस्ट्री के पास कुछ खास उपाय रहते हैं और आपात स्थितियों के लिए कंपनियों ने गोदाम बनाए हुए हैं.
आर्थिक स्थितियों की वजह से बंदरगाहों में पैदा हुए हालात बहुत तेजी से गंभीर स्तरों पर पहुंचने की आशंका नहीं है. पुल्स कहते हैं, "ट्रेनें न चलने की सूरत में एक बेहतर आर्थिक माहौल के बीच हम लगभग पांच दिन बाद आखिरी हद पर पहुंचेंगे."