चीन की अनूठी पांडा कूटनीति से इन संरक्षित वन्यजीवों को बहुत फायदा हो रहा है. विदेशी वैज्ञानिकों और चिड़ियाघरों के सहयोग से पांडाओं की आबादी बढ़ रही है.शायद आपने भी पांडा के ऐसे वीडियो देखे हों, जिनमें कभी तो वे उंघते-उंघते ही अचानक लुढ़क जाते हैं, कभी चिड़ियाघर में केअरटेकर के पैरों से चिपककर उन्हें काम नहीं करने देते, कभी टायर के झूले पर बैठने की दसियों कोशिशों में हर बार गिरते-पड़ते हैं, तो कभी बस बस चुपचाप हरी बांस चबा रहे होते हैं. पांडा सोशल मीडिया के सबसे चहेते सितारों में से एक है.
पांडा की पहचान चीन से जुड़ी है. केवल चीन में ही पांडा प्राकृतिक बसाहट में पाए जाते हैं. चीन उनका कुदरती घर है. जायंट पांडा दशकों से चीन का एक प्रतीक रहा है. दूसरे देशों के साथ दोस्ताना ताल्लुकात बढ़ाने, रिश्ते बेहतर करने और व्यापारिक संबंध मजबूत करने के लिए चीन अपने यहां पाए जाने वाले इस प्यारे जीव की मदद लेता आया है.
बतौर लोन दूसरे देशों को पांडा देता है चीन
दूसरे देशों को कूटनीतिक उपहार के तौर पर पांडा भेंट करना चीन की पुरानी शैली रही है. बीते कई दशकों से चीन पांडा को बतौर उधार भी दूसरे देशों को देता आया है. इसे चीन की पांडा डिप्लोमसी कहते हैं. अमूमन यह लोन 10 साल के लिए होता है, जिसे आगे भी बढ़ाया जाता है. बदले में मेजबान देश चीन को प्रति पांडा एक तय रकम देता है.
लोन की अवधि के दौरान पांडा के बच्चे हुए, तो वे भी चीन भेजे जाते हैं. मसलन, दिसंबर 2023 में बर्लिन चिड़ियाघर ने अपने यहां जन्मे पिट और पाउल नाम के पांडा के बच्चों को चीन भेजा. ये दोनों चार साल के हो चुके थे और कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक इसे पहले ही चीन को लौटाया जाना था, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसमें देरी हुई.
पांडाओं के संरक्षण में मदद मिली
इस अनूठी कूटनीति से पांडाओं को काफी फायदा हुआ है. समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, वन्यजीवन में पांडा की संख्या बढ़कर 1,900 हो गई है. 1980 के दशक में यह संख्या करीब 1,100 थी. आबादी बढ़ने की यह रफ्तार आपको धीमी लग सकती है, लेकिन असल में यह उल्लेखनीय है. इसके कारण अब पांडा पर विलुप्त होने का जोखिम नहीं रहा, बल्कि उन्हें अपेक्षाकृत बेहतर श्रेणी 'वलनरेबल' में रखा गया है.
चीन के चिड़ियाघर ने कहा, इंसान नहीं है हमारा भालू
इस उपलब्धि में अमेरिकी वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने अहम भूमिका निभाई है. दक्षिणपश्चिमी चीन के यान झांग शहर में चाइना कंजर्वेशन एंड रिसर्च सेंटर के मुख्य विशेषज्ञ झांग हेमिन इन प्रयासों पर रोशनी डालते हैं. उन्होंने एपी से बातचीत में कहा, "हमारा सैन डिएगो चिड़ियाघर और वॉशिंगटन चिड़ियाघर के साथ वैज्ञानिक और शोध स्तर पर सहयोग है. साथ ही, यूरोप के देश भी सहयोग देते हैं. वे जानवरों की दवाओं और टीकों जैसे मामलों में ज्यादा विकसित हैं और हम उनसे सीखते हैं."
पांच दशक में दुनिया के दो तिहाई जंगली जीव खत्म
कूटनीतिक रिश्तों में तनाव का भी असर पड़ता है
चीन ने पहली बार 1972 में अमेरिका को पांडा भेंट किया था. इस साल तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की ऐतिहासिक चीन यात्रा के बाद बीजिंग ने दो पांडा अमेरिका भेजे. अगले एक दशक में उसने जापान, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी समेत कई देशों को पांडा दिए. 1980 के दशक में जब पांडाओं की आबादी और गिरने लगी, तो चीन ने तोहफे में पांडा देना बंद कर दिया. इसकी जगह वह चिड़ियाघरों को बतौर लोन पांडा देने लगा.
अमेरिकी चिड़ियाघरों में चीन से भेजे गए कई पांडा हैं. अभी जून में भी पांडा का एक जोड़ा सैन डिएगो चिड़ियाघर भेजा गया. इसी साल सैन फ्रांसिस्को चिड़ियाघर और स्मिथसोनियन नेशनल जू में भी पांडा भेजे जाएंगे.
बीते कुछ समय से दोनों देशों के बीच बने आ रहे तनाव के कारण यह आशंका थी कि अमेरिकी चिड़ियाघरों में भेजे गए पांडाओं की लोन अवधि खत्म होने के बाद बीजिंग कॉन्ट्रैक्ट नहीं बढ़ाएगा. पिछले साल ही वॉशिंगटन डीसी के चिड़ियाघरों से भी पांडा वापस चीन भेजे जाने की नौबत आ गई थी.
दिसंबर 2023 में लोन की समयसीमा खत्म हो रही थी और चीन की ओर से एक्सटेंशन नहीं दिया गया था. ऐसे में आशंका थी कि वॉशिंगटन और अटलांटा, दोनों जगहों के चिड़ियाघरों से पांडाओं को चीन वापस भेजना पड़ सकता है. लेकिन फिर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान इन चिंताओं पर विराम लगा दिया.
पांडा के बहाने छवि बनाने की कोशिश
चीन में अमेरिका की राजदूत रहीं बारबरा के. बोडिन बताती हैं कि यह अमेरिकियों के बीच चीन की नर्म छवि बनाने के लिहाज से बड़ा सटीक कदम भले हो, लेकिन इससे यूएस फॉरेन पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं आने वाला है.
बोडिन ने समाचार एजेंसी एपी से बातचीत में चीन की पांडा कूटनीति का मकसद रेखांकित करते हुए कहा, "अगर वे दिखाना चाहते हैं कि चीन खतरा पहुंचाने वाला देश नहीं है, तो वे मखमली खिलौनों के कई जोड़े भेज देते हैं. पांडा प्यारे और गोल-मटोल होते हैं. वे पूरा दिन बस बैठे रहते हैं और बांस खाते हैं. इससे दिखाया जाता है कि चीन भी ऐसा ही मुलायम देश है. यह बेहतरीन संकेत है."
बोडिन आगे कहती हैं, "लेकिन इससे राजनीतिक विमर्श रत्तीभर भी नहीं बदलता है. सार्वजनिक कूटनीति बस थोड़ा ही हासिल कर सकती है. यह भूराजनीतिक और आर्थिक गणनाओं को नहीं बदल सकती. लोग चिड़ियाघर से लौटकर जब घर जाते हैं, तो इस बात से सहमत नहीं हो जाते हैं कि अमेरिका में पांडा लैंड की बनी सस्ती इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बाढ़ आ जाए."
पांडाओं पर ज्यादा शोध की जरूरत
भूराजनीति के स्तर पर भले ही अमेरिका और चीन एक तरह से ना सोचते हों, लेकिन पांडा संरक्षण की कोशिशों में वे साथ हैं. झांग बताते हैं कि पांडाओं को चीन से बाहर भेजने के कई फायदे हैं. प्रकृति और पर्यावरण के लिए इसकी अहमियत रेखांकित करते हुए वह कहते हैं, "अस्थायी तौर पर विदेश में रह रहे पांडा लोगों में संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाते हैं, हमारी पृथ्वी की देखरेख को बढ़ावा देते हैं और जैव विविधता को सहेजने की भावना जगाते हैं. यह क्या अच्छा नहीं है?"
विदेशी चिड़ियाघरों के साथ रिसर्च और ब्रीडिंग में सहयोग से जुड़े प्रयासों के क्रम में पांडा पर ज्यादा शोध हो रहा है. मसलन, अमेरिका के रिसर्च इंस्टिट्यूट स्मिथसोनियन के वैज्ञानिक पांडा के जीवविज्ञान और व्यवहार पर शोध कर रहे हैं. वे पांडा की पोषण संबंधी जरूरतों, प्रजनन से जुड़ी आदतों और आनुवांशिक विविधताओं पर अहम जानकारियां हासिल कर इन जीवों के संरक्षण प्रयासों में योगदान दे रहे हैं. स्मिथसोनियन चिड़ियाघर चीन के सहयोगियों के साथ मिलकर इस वन्यजीव के कुदरती आवास को बहाल करने की दिशा में भी काम कर रहा है.
एसएम/आरपी (एपी)