करीब आ रहे चीन और ऑस्ट्रेलिया, सुलझाया जौ का विवाद
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच जौ को लेकर लंबे समय से चला आ रहा विवाद सुलझ गया है. ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों देशों के बीच विवाद सुलझाने को लेकर समझौता हो गया है.चीन ऑस्ट्रेलियाई जौ पर लगाए गए करों की समीक्षा को राजी हो गया है और ऑस्ट्रेलिया विश्व व्यापार संगठन में दर्ज अपनी शिकायत वापस ले लेगा.

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग ने बताया, "चीन ऑस्ट्रेलियाई जौ पर लगाए गए करों की त्वरित समीक्षा को राजी हो गया है. इसमें तीन से चार महीने लग सकते हैं. बदले में हम डब्ल्यूटीओ में दायर अपनी याचिका को अस्थायी तौर पर निलंबित करने को सहमत हुए हैं." ऑस्ट्रेलिया तीन महीने तक अपनी याचिका को निलंबित रखेगा, जब तक कि चीन समीक्षा नहीं कर लेता.

दोनों देशों के बीच तेजी से बेहतर होते संबंधों की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है. चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है लेकिन पिछले करीब तीन साल से दोनों देशों के संबंधों में तनाव चल रहा है. मई 2020 में चीन ने ऑस्ट्रेलिया की जौ पर पांच साल के लिए 80 फीसदी ड्यूटी लगा दी थी. इससे डेढ़ अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर सालाना का व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ था.

पैसिफिक देशों के सामने सवालः चीन का प्रभाव मानें या अमेरिका का दबाव

ऑस्ट्रेलिया की पिछली लिबरल सरकार ने चीन के फैसले के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में यह कहते हुए शिकायत याचिका दायर की थी कि चीन का कर लगाना अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों के विरुद्ध है. कुछ ही दिन में डब्ल्यूटीओ इस संबंध में अपनी रिपोर्ट पेश करने वाला था लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया ने अपनी शिकायत को निलंबित कर दिया है. विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग ने कहा कि अगर चीन कर नहीं हटाता है तो ऑस्ट्रेलिया अपनी शिकायत को आगे बढ़ाएगा.

वॉन्ग ने कहा, "बेशक संबंधों को स्थिर होने में और व्यापारिक विवादों को सुलझने में वक्त लगेगा लेकिन हम खुश हैं कि रचनात्मक बातचीत शुरू हो गई है.”

सुधर रहे हैं संबंध

पिछले साल सत्ता में आने के बाद से ऑस्ट्रेलिया की लेबर सरकार ने चीन के साथ संबंध सुधारने की कोशिशें तेज की हैं. पिछले साल दिसंबर में पेनी वॉन्ग ने चीन का दौरा किया था जहां उन्होंने छठे ऑस्ट्रेलिया-चीन विदेश और रणनीतिक विमर्श में हिस्सा लिया था. तब उन्होंने चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात भी की थी. उससे पहले पिछले साल बाली में जी20 देशों की बैठक के दौरान ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग से मुलाकात भी की थी.

दोनों देशों के बीच तभी से बातचीत का दौर शुरू हुआ था, जिसका विशेषज्ञों ने स्वागत किया था. सिडनी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में ऑस्ट्रेलिया-चाइना रिलेशंस इंस्टिट्यूट में पढ़ाने वालीं डॉ कोरी ली बेल और एलिना कॉलिनसन ने एक लेख में लिखा कि 2022 को एक ऐसा वर्ष समझा जा सकता है जबकि चीन और ऑस्ट्रेलिया कूटनीति की ताकत फिर से पहचाना.

ऑस्ट्रेलिया के चीन के साथ संबंधों में खटास तब आई जब अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति थे और ऑस्ट्रेलिया में स्कॉट मॉरिसन के नेतृत्व में लिबरल पार्टी की सरकार थी. दोनों देशों ने उस दौरान कई रणनीतिक और सैन्य समझौते किए जो चीन को नागवार गुजरे. उसी दौरान ऑस्ट्रेलिया आकुस नामक संगठन का हिस्सा बना जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन शामिल हैं. तीनों देशों ने मिलकर सैन्य ताकत बढ़ाने और प्रशांत महासागर में चीन का प्रभुत्व कम करने को लेकर काम करने का ऐलान किया.

ऑस्ट्रेलिया के लिए जरूरी है चीन

लेबर पार्टी के सरकार में आने के बाद से ही चीन को लेकर ऑस्ट्रेलिया का रुख नरम हुआ है लेकिन अब भी दोनों देशों के बीच कई चुनौतियां हैं. हाल ही में आकुस के तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु शक्ति संपन्न अमेरिकी पनडुब्बियां मिलने का ऐलान हुआ है, जिसका चीन ने सख्त विरोध किया है.

ऑस्ट्रेलिया के लिए चीन से संबंधों में संतुलन और बेहतरी बड़ी जरूरत है. देश के वित्त मंत्रालय के मुताबिक चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर जो व्यापारिक प्रतिबंध लगाए हैं, उसके कारण जून 2020 से जून 2021 के बीच दोनों देशों के व्यापार में 5.4 अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर की कमी हो गई.

इस बीच ऑस्ट्रेलिया ने भारत और अन्य देशों के साथ अपना व्यापार बढ़ाने की कोशिश की लेकिन उसी अवधि में यह 4.4 अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर ही बढ़ा, यानी ऑस्ट्रेलिया को करीब एक अरब डॉलर का नुकसान हुआ. दो साल तक चीन ने ऑस्ट्रेलिया के कोयले पर प्रतिबंध लगाकर रखा जिसे पिछले साल ही हटाया गया.

ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री ने कहा कि उन्हें उम्मीद है जौ की तरह बातचीत के जरिये अन्य उत्पादों पर लगे प्रतिबंध भी हटाए जा सकेंगे. उन्होंने कहा, "अगर जौ पर लगे कर को हटाने का यह समझौता सफल होता है तो ऑस्ट्रेलिया उम्मीद करेगा कि प्रक्रिया से वाइन के व्यापार पर लगी व्यापारिक बाधाओं को भी दूर किया जा सकेगा.”

विवेक कुमार (रॉयटर्स)