
कंक्रीट में दरारें, टूटी-फूटी सड़कें और गिरते पुल जर्मनी की सिर्फ कुशलता वाली छवि को नुकसान बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी जोखिम पैदा कर रहे हैं. भावी सरकार ने सुधार के लिए पैसे तो जुटा लिए लेकिन क्या जल्दी सुधार होंगे.बुनियादी ढांचे से मजबूत रहा जर्मनी आज उनकी खस्ताहाल स्थिति से परेशान है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था खराब बुनियादी ढांचे की समस्या से छुटकारा पाना चाहती है. हालांकि इसके लिए 4,000 से ज्यादा पुलों को अगले दशक में आधुनिक बनाना या फिर बदलना होगा.
फिलहाल तो स्थिति यह है कि आए दिन अचानक से सड़कें और पुल बंद करने पड़ रहे हैं और कई बार यह बड़ी परेशाना लेकर आता है. इन मुश्किलों से स्थानीय लोगों की झुंझलाहट बढ़ रही है.
सड़कों में दरारें और पुलों का ढहना
ड्रेसडेन में 1971 में बने पुल का एक हिस्सा जंगल लगने के कारण बीते साल सितंबर में अचानक आधी रात को ढह गया. किसी को चोट नहीं आई लेकिन उसकी वजह से ट्रैफिक जाम हो गया और एल्बे नदी से जहाजों की आवाजाही रुक गई. इस पुल के नदी में गिरे हिस्सों को अब तक निकाला नहीं गया है.
इस घटना के बाद इसी तरह की डिजाइन वाले दूसरे पुलों की जांच शुरू कर दी गई.
इन पुलों में बाड शांडाऊ का भी है. चेक गणराज्य की सीमा पर यह टाउन एल्बे नदी के किनारे ही है. नवंबर में एक दिन अचानक इसे बंद कर दिया गया. इसकी वजह से स्थानीय लोगों को 20 किलोमीटर का चक्कर लगा कर जाना पड़ा. कुछ दिन बाद यह खुल तो गया लेकिन 7.5 टन वजन की सीमा के साथ.
सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर ने इस ब्रिज का टेस्ट किया. समाचार एजेंसी एपी से उन्होंने कहा, "बाड शंडाऊ के लोगों के लिए पुल का बंद होना किसी आपदा जैसा था. घेराबंदी का पक्का उदाहरण...नदी पर 50 किलोमीटर के दायरे में सिर्फ यही एक पुल है."
बाड शंडाऊ में स्थिति थोड़ी संभली तो बर्लिन में व्यस्त हाईवे पर पिछले महीने एक पुल में दरार दिखने के बाद उसे बंद करना पड़ा. अब इस पुल को जल्दी ही गिरा दिया जाएगा. इसके नतीजे में जर्मन राजधानी के एक बड़े हिस्से में ट्रैफिक रेंगने पर मजबूर हो गया. इतना ही नहीं एक हफ्ते तक इसके पास की एक रेललाइन भी बंद रही और सरकार को पुल दोबारा बनाने के लिए 15 करोड़ यूरो तुरंत निकाल कर देने पड़े.
जर्मनीः स्कूली शौचालयों की हालत सुधारने के लिए एक पहल
बचत और दिखावा
जर्मन सरकार को आर्थिक मसलों पर सलाह देने वाले पैनल की प्रमुख मोनिका श्नित्सर ने समाचार एजेंसी एपी से कहा, "जर्मन बहुत अच्छे इंजीनियर हैं. आप सोचेंगे कि सबकुछ काम करता है. हालांकि उसी समय आपको यह भी दिखेगा कि वो बचत करने में भी अच्छे हैं और उन्होंने लंबे समय तक बचत की है खासतौर से बुनियादी ढांचे और पुलों पर."
जर्मनी की भावी सरकार ने देश की कमान संभालने के पहले ही इस मुद्दे का हल ढूंढने की कोशिश की है. नई गठबंधन सरकार के मुखिया बनने जा रहे फ्रीडरिष मैर्त्स ने संसद में 500 अरब यूरो के एक फंड को मंजूरी दिलवाई जो कर्ज से हासिल होगा. यह पैसा अगले 12 वर्षों में बुनियादी ढांचे पर खर्च किया जाएगा. देश के नेता इसे ठहरे हुए आर्थिक विकास को गति देने का भी जरिया मान रहे हैं.
समस्या सिर्फ पुलों की नहीं है. स्कूलों और राष्ट्रीय रेल की दशा भी खराब है. कई वर्षों तक कम निवेश से जूझने के बाद रेलवे ने प्रमुख रूटों की मरम्मत और उन्हें आधुनिक बनाने का काम शुरू किया है. ट्रेनों के देरी से चलने और रद्द होने की रोजमर्रा की शिकायतों के बाद यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है.
बुधवार को पेश हुए गठबंधन दस्तावेजों में भी कहा गया है, "कारगर बुनियादी ढांचा हमारे देश की समृद्धि, सामाजिक सद्भाव और सतत विकास का आधार है. तो जर्मनी को बुनियादी ढांचे में जोश भरने की जरूरत है, जो अस्पतालों, स्कूलों के साथ ही पुलों और रेलवे पर लागू होता है."
सड़कों के मामले में इस दस्तावेज में वादा किया गया है कि यह "पुलों और सुरंगों का जो पिछला काम लंबित है उसकी समस्या सुलझाएगा." निवर्तमान सरकार का कहना है कि 2022 में शुरू हुए एक कार्यक्रम के तहत बड़ी संख्या में पुलों को पहले ही आधुनिक बनाया जा रहा है, हालांकि बहुत कुछ करना अभी बाकी है.
सिर्फ पैसे की बात नहीं है
फंड पास होने के बाद जाहिर है कि पैसे की दिक्कत नहीं होगी लेकिन समस्या यह है कि काम कितनी जल्दी शुरू होगा यह कहना मुश्किल है. श्नित्सर का कहना है, "अब पैसा है और विकास की धारा वास्तव में बहुत जल्द शुरू की जा सकती है. वास्तव में अब सचमुच यह जरूरी है कि पैसा कितनी जल्दी खर्च होगा. इसके लिए जरूरी है कि हम तेजी से योजना बनाएं और जो योजनाएं हैं उनकी मंजूरी की प्रक्रिया पूरी करें."
उन्होंने ध्यान दिलाया कि जर्मनी ने यह साबित किया है कि वह योजना बनाने वाली नौकरशाही को तेज कर सकती है. 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो गैस की सप्लाई बनाए रखने के लिए कुछ ही महीनों के भीतर जर्मनी ने एलएनजी के टर्मनिल खड़े कर लिए. इसकी मदद से देश में गैस की कीमतें घटाने में मदद मिली.
हालांकि यह सच है कि बड़ी परियोजनाओं में दिखी तेजी को जमीनी स्तर पर लागू करना इतना आसान नहीं होगा. देश में कुशल कामगारों की कमी है और इसे हर स्तर पर साफ महसूस किया जा सकता है. लोगों को घरों की छोटी-मोटी मरम्मत कराने के लिए महीनों और सालों इंतजार करना पड़ रहा है. दूसरी तरफ कंपनियां भी लगातार शिकायत कर रही हैं कि उन्हें काम के लिए काबिल लोग नहीं मिल रहे हैं.
ऐसे में बुनियादी ढांचे की इन परियोजनाओं के लिए लोग कहां से आएंगे यह कहना कठिन है. खासतौर से ऐसे दौर में जब नई सरकार के लिए गठबंधन के दस्तावेजों में आप्रवासियों को यहां से भेजने की बात हो रही है और विदेशियों का जर्मनी में आना मुश्किल बनाया जा रहा है. पैसे के बाद अगर जर्मनी ने नौकरशाही की बाधाएं पार कर लीं तो भी क्या जल्द निर्माण संभव होगा.