म्यांमार: रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर आयी यह बड़ी खबर, दो पत्रकारों को 7 साल की सजा
रोहिंग्या (Photo Credit-Getty Images)

भारत में इन दिनों जहां यह बहस छिड़ी है कि भारत में इमरजेंसी का दौर वापस आ गया है और सरकार ने अप्रत्यक्ष तौर पर मीडिया पर सेंसरशिप लागू कर दी है. वहीं म्यांमार की एक घटना ने यह साफ कर दिया कि मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर चल रही यह बहस केवल भारत तक सीमित नहीं है. म्यांमार में सेना की तरफ से रोहिंग्या शरणार्थियों पर हो रही हिंसा की रिपोर्टेिंग के दौरान रॉयटर्स के दो रिपोर्टर दिसंबर से जेल में हैं. इनके नाम वा लोन और क्याव सोय हैं. इनपर आरोप है कि उन्होंने कुछ गुप्त दस्तावेज निकालने का प्रयास किया है.

पत्रकारों को दो पुलिसकर्मियों से मुलाकात के बाद 12 दिसंबर 2017 की रात को गिरफ्तार कर लिया गया था. सरकार का मानना है कि पुलिसकर्मियों ने ही इन पत्रकारों को गोपनीय दस्तावेज सौंपे थे. दोनों ही पत्रकारों को ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट (शासकीय गोपनीयता अधिनियम) के तहत दोषी पाया गया है और उन्हें सात साल जेल की सजा सुनाई गई है. यह भी पढ़े-केंद्र सरकार ने रोहिंग्याओं को बताया सबसे बड़ा खतरा, आधार कार्ड या किसी भी तरह का पहचान पत्र देने से मना किया

बीते दिसंबर से ही ये दोनों पत्रकार बिना किसी जमानत के जेल में सजा काट रहे हैं. हालांकि मामले की जांच चल रही है, लेकिन सजा काट रहे पत्रकारों में से एक वा लोन का कहना है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया इसलिए उन्हें किसी बात की डर नहीं है. न्याय, लोकतंत्र और आजादी पर वह पूरा विश्वास करते हैं.

वहीं रॉयटर्स ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रहार है. आज का दिन म्यांमार और प्रेस के लिए निराशाजनक है.

मामले में हस्तक्षेप करते हुए आज ही संयुक्त राष्ट्र ने दोनों ही पत्रकारों को जल्द से जल्द छोड़ने की मांग की है.