धरती पर ऐसे बहुत से जीव हैं जिनमें मस्तिष्क नहीं होता. लेकिन वे सीख रहे हैं और विज्ञान की इस समझ को चुनौती दे रहे हैं कि सीखने के लिए जटिल मस्तिष्क की जरूरत होती है.जेली फिश, कोरल, फुंगी, बैक्टीरिया और चिकनी काई, ये ऐ तमाम ऐसे जीव हैं जिनके पास मस्तिष्क नहीं होता. लेकिन इस बात से इनके विकास में कोई फर्क नहीं पड़ता. इस तथ्य ने वैज्ञानिकों को सोचने पर मजबूर किया है कि क्या मस्तिष्क के बिना जीवन संभव है.
सेंसरी एंड ईवॉल्यूशनरी इकोलॉजी लैब के निदेशक डॉ. टॉम व्हाइट ने इस बारे में गहन शोध किया है. ‘कन्वर्सेशन' पत्रिका में छपे लेख में डॉ. व्हाइट कहते हैं कि मस्तिष्क जैविक विकास की यात्रा का एक अद्भुत नतीजा है. वह लिखते हैं, "इस केंद्रीय अंग के व्यवहार को नियंत्रित करके इंसान समेत सभी प्राणी अप्रत्याशित माहौल में प्रतिक्रिया करने और फलने-फूलने की क्षमता हासिल करते हैं. सीखने का गुण बेहतर जीवन का मूल मंत्र साबित हुआ है.”
कितना जरूरी है मस्तिष्क?
बहुत से वैज्ञानिक इस सवाल से जूझते रहे हैं कि जिन प्राणियों के पास सीखने की यह क्षमता नहीं है, अगर वे भी विकसित हो रहे हैं, तो जीवन में मस्तिष्क की भूमिका कितनी अहम है. जेली फिश या फुंगी जैसे जीव सीखने की यह क्षमता नहीं रखते हैं पर उनका अस्तित्व इससे ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है.
सिडनी यूनिवर्सिटी में सीनियर लेक्चरर डॉ. व्हाइट लिखते हैं, "सीखना दरअसल व्यवहार में बदलाव करना है. यह कई तरीके का हो सकता है. नॉन-एसोसिएटिव यानी बिना किसी सीधे जुड़ाव के सीखना इस पूरी प्रक्रिया के एक सिरे पर है. आपने देखा होगा कि लोग टीवी या ट्रैफिक के शोर को बंद कर देते हैं. यह बार-बार के अनुभव से सीखना है.”
इसी तरह एसोसिएटिव लर्निंग यानी जुड़ाव से सीखना है जो व्यवहार आधारित होती है. मसलन, खुश्बू आते ही खाने के लिए चले आना या दूध उबलने की आवाज आने पर ही गैस बंद कर देना इसी तरह का सीखना है. परागकणों की खुश्बू से मधुमक्खियां फूलों तक पहुंच जाती है, यह उन्होंने सीखा है.
जटिल मस्तिष्क
भाषा, संगीत या इस तरह के कौशल सीखना ज्यादा जटिल प्रक्रियाएं हैं क्योंकि उसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों का सामंजस्य बनाना सीखना होता है. यह सोचने की क्षमता का प्रतीक है. इसके लिए मस्तिष्क के भीतर एक विशेष ढांचे की जरूरत होती है. इसलिए यह कौशल कुछ विशेष प्रजातियों तक सीमित है जिनमें गणना की क्षमता है, यानी जिनका मस्तिष्क ज्यादा जटिल है.
हाल ही में प्रकाशित एक शोध में वैज्ञानिकों ने दिखाया कि मस्तिष्क रहित जीव बॉक्स जेली फिश में सीखने की क्षमता है. पिछले हफ्ते ‘जर्नल ऑफ करंट बायोलॉजी' में प्रकाशित यह शोध कहता है कि कैरेबियाई मैंग्रोव जंगलों में यह पाया जाने वाला जीव बॉक्स जेली फिश धूप और छाया में आना-जाना सीख गया है.
हालांकि बॉक्स जेली फिश अन्य जेली फिश से अलग होते हैं. इनके पास 24 आंखें होती हैं. लेकिन मस्तिष्क इनके पास भी नहीं होता और अपने शरीर को ये न्यूरॉन्स के जरिये नियंत्रित करते हैं.
मस्तिष्क के बिना सीखना
जेली फिश और कुछ अन्य समुद्री जीव प्राणियों के सबसे शुरुआती पूर्वजों में से हैं और उनके पास केंद्रीय मस्तिष्क नहीं होता. इसके बावजूद ये ऐसे कई काम करते हैं, जिनमें सीखने की क्षमता की जरूरत होती है. मसलन, बीडलेट एनेमन नामक जीव अन्य जीवों को अपने इलाके में नहीं आने देते और किसी भी घुसपैठ का हिंसक विरोध करते हैं. लेकिन जब इन्हीं की प्रजाति के जीव इलाके में आते हैं तो ये जीव धीरे-धीरे उन्हें पहचानने लगते हैं और अपना हिंसक व्यवहार बदल लेते हैं.
शोधकर्ता और पत्रकार एरिका टेनीहाउस कहती हैं कि जेली फिश, घोंघे और स्टारफिश जैसे जीवों ने यह साबित किया है कि सीखने के लिए मस्तिष्क की जरूरत नहीं होती. न्यू साइंटिस्ट पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में टेनीहाउस लिखती हैं, "ये बहुत साधारण से नजर आने वाले जीव बहुत अच्छे सीखने वाले हैं. और यह कोई बहुत हैरत की बात नहीं है क्योंकि उनमें स्नायु कोशिकाएं तो होती हैं. असल में सीखना स्नायु कोशिकाओं से जुड़ा मसला है और इनके शरीर में ये कोशिकाएं किसी एक जगह पर केंद्रित होने के बजाय कई जगहों में पसरी होती हैं.”
विज्ञान को चुनौती
लेकिन डॉ. व्हाइट कहते हैं कि ऐसे कई शोध हो चुके हैं जिन्होंने साबित किया है कि बिना स्नायु कोशिकाओं के भी सीखना संभव है. खाने के लिए रास्ता खोजना और उसे याद रखना, पहले के अनुभवों के आधार पर अपना व्यवहार बदलना और यहां तक कि किसी कड़वी चीज को एक बार चख लेने के बाद उसे दोबारा ना चखना ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं.
डॉ. व्हाइट कहते हैं कि पौधों को भी मस्तिष्क-रहित सोचने वाले जीवों में रखा जा सकता है. जैसे वीनस फ्लाईट्रैप अपने शिकार के स्पर्श को याद रखते हैं. इसी क्षमता के कारण वे सही समय पर पत्तों को बंद कर लेते हैं जिससे शिकार फंस जाता है. लेकिन वे उसे पचाने की क्रिया तभी शुरू करते हैं जब यह सुनिश्चित कर लें कि फंसा हुआ शिकार भरपूर पोषक भोजन है.
डॉ. व्हाइट कहते हैं, "सीखना सिर्फ मस्तिष्क से जुड़ी गतिविधि नहीं है. जैसे-जैसे मस्तिष्क-रहित जीवों में ज्ञान संबंधी क्षमताएं होने के सबूत मिल रहे हैं, संवेदनाएं, सोचना और आमतौर पर व्यवहार के विज्ञान को चुनौतियां मिल रही हैं.”