भारत 2014 में पोलियो मुक्त हो चुका है. लेकिन पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अभी भी इसका खतरा बरकरार है. इसकी रोकथाम के लिए पोलियो ड्रॉप्स पिलाई जाती हैं, लेकिन उनके भी अपने खतरे हैं.पोलिया बेहद तेजी से फैलने वाली वायरल बीमारी है. यह बीमारी पोलियो वायरस के चलते होती है. इससे स्थायी विकलांगता और गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है, खासकर पांच साल से कम उम्र के बच्चों में.
आज दुनिया में दो तरह के पोलियो वायरस मौजूद हैं. पहला- जंगली पोलियो वायरस और दूसरा ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) से उत्पन्न होने वाला पोलियो वायरस.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान को छोड़कर, ज्यादातर सभी देशों में जंगली पोलियो वायरस पूरी तरह खत्म हो गया है. वैक्सीन से उत्पन्न होने वाला पोलिया वायरस यमन और मध्य अफ्रीका में पाया गया है.
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पोलियो के अलग अलग प्रकार
दोनों ही तरह के पोलियो वायरस के तीन प्रकार होते हैं- टाइप एक, टाइप दो और टाइप तीन. वैक्सीन से उत्पन्न होने वाला वायरस, इनमें से किसी भी प्रकार का हो सकता है. वहीं, जंगली पोलियो का केवल ‘टाइप एक' ही बचा है. टाइप दो को 2015 में और टाइप तीन को 2019 में समाप्त घोषित किया चुका है.
जंगली पोलिया वायरस के सभी प्रकारों में लक्षण एक जैसे हो सकते हैं. लेकिन उनसे हो सकने वाले नुकसान अलग-अलग होते हैं. एक प्रकार के वायरस के खिलाफ मौजूद इम्युनिटी दूसरे प्रकार से वायरस से रक्षा नहीं कर पाती है.
पोलियो के लक्षण क्या हैं?
पोलियो से संक्रमित होने वाले ज्यादातर लोगों में लक्षण नजर नहीं आते हैं. हर चार में से एक व्यक्ति में बुखार, सिरदर्द, गले में खराश और पेट दर्द जैसे लक्षण सामने आते हैं. आमतौर पर ये लक्षण दो से पांच दिन बाद अपने आप चले जाते हैं.
संक्रमित लोगों में एक फीसदी से भी कम में स्थायी लकवे जैसे खतरनाक लक्षण सामने आते हैं. इनके चलते स्थायी विकलांगता हो सकती है. इसके अलावा जब वायरस सांस लेने के लिए जरूरी मांसपेशियों को प्रभावित करता है तो मौत तक हो सकती है.
कई बार जो बच्चे पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, उनमें बड़े होने पर पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम विकसित हो सकता है. इसमें मांसपेशियों में दर्द होता है, कमजोरी महसूस होती है और लकवा भी मार सकता है.
पोलियो कैसे फैलता है?
यह वायरस व्यक्ति के गले और आंतों को संक्रमित करता है. यह वहां कई हफ्तों तक जीवित रह सकता है. यह संक्रमित व्यक्ति की सांस के साथ बाहर आने वाली छोटी बूंदों और मल के संपर्क में आने से फैलता है.
कम साफ-सफाई वाली जगहों पर यह वायरस भोजन और पीने के पानी को भी दूषित कर सकता है. संक्रमित लोग लक्षण नजर आने से ठीक पहले और दो हफ्ते बाद तक वायरस को दूसरों में फैला सकते हैं.
किन देशों में हैं पोलियो के मामले
पोलियो को अभी दुनियाभर से खत्म नहीं किया जा सका है. जंगली पोलियो अभी भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान में मौजूद है. वहीं, अफ्रीका को अगस्त 2020 में जंगली पोलियो से मुक्त घोषित कर दिया गया. लेकिन उसके बाद मलावी और मोजांबिक में बाहर से आए कुछ लोगों में पोलियो के मामले मिल चुके हैं.
जुलाई 2022 में अमेरिका में वैक्सीन से उत्पन्न होने वाला पोलियो वायरस मिला था.यह अमेरिका में सामने आया दशक का पहला मामला था. वैक्सीन से पैदा होने वाला वायरस ब्रिटेन और इजरायल के सीवेज नमूनों में भी पाया गया था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेड्रोस एडनोम घेब्रेयेसस ने तब इस पर बयान दिया था. उन्होंने कहा था, "यह याद दिलाता है कि अगर हम हर जगह से पोलियो को समाप्त करने के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं करते हैं, तो यह विश्व स्तर पर फिर से उभर सकता है.”
बीसवीं सदी के मध्य में पोलियो वैक्सीन विकसित की गई थी. उसके बाद दुनियाभर में टीकाकरण अभियान चलाए गए. जिसके चलते आज सौ से ज्यादा देश पोलियो मुक्त घोषित किए जा चुके हैं. भारत को मार्च 2014 में पोलिया मुक्त घोषित किया गया था.
पोलियो वैक्सीन कितने प्रकार की होती हैं?
पोलिया का कोई इलाज नहीं होता है. लेकिन इसकी रोकथाम के लिए वैक्सीन मौजूद हैं. यह दो तरह की होती हैं. पहली- ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) और दूसरी- निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (आईपीवी).
ओरल वैक्सीन को तरल पदार्थ के रूप में दिया जाता है. इसकी बूंदों को मुंह में डाला जाता है. दुनियाभर में पोलियो के खात्मे में इसकी अहम भूमिका रही है क्योंकि यह वैक्सीन व्यक्ति की रक्षा करती है और वायरस को फैलने से रोकती है.
ओपीवी में जीवित लेकिन कमजोर पोलियोवायरस का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें इस तरह संशोधित किया जाता है कि ये वैक्सीन लेने वाले व्यक्ति को बीमार ना करें.
लेकिन अगर ओपीवी में मौजूद कमजोर वायरस जिंदा रह जाता है और कम साफ-सफाई वाली जगहों तक फैल जाता है. जहां बड़ी संख्या में बिना टीकाकरण वाले लोग रहते हैं तो यह पोलियो फैलाने वाले वायरस के रूप में परिवर्तित हो सकता है.
दूसरी तरफ, निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन इंजेक्शन के जरिए दी जाती है. यह लोगों को पोलियो से बचाने में बेहद प्रभावी है. इसमें निष्क्रिय वायरस होता है, जिससे दोबारा वायरस के पनपने का खतरा नहीं होता. हालांकि, अगर व्यक्ति पहले से संक्रमित हो तो यह वायरस को फैलने से नहीं रोक पाती है. इसके उलट, ओरल वैक्सीन ऐसा बखूबी कर लेती है.
आईपीवी की तुलना में ओपीवी ज्यादा सस्ती होती है. इसे देने के लिए किसी स्वास्थ्यकर्मी की जरूरत नहीं होती. लेकिन अब ज्यादा से ज्यादा देश आईपीवी का इस्तेमाल कर रहे हैं, क्योंकि इससे पोलियो वायरस के उत्पन्न होने का खतरा नहीं होता.
पोलियो के लक्षण नजर आने पर कुछ उपाय मदद कर सकते हैं. जैसे- आराम करना और दर्दनिवारक दवा लेना. फिजिकल थेरेपी और ब्रीदिंग असिस्टेंस की मदद भी ली जा सकती है.