विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट बताती है कि कोविड महामारी के दौरान लोगों को अत्यधिक मात्रा में एंटिबायोटिक्स दिए गए, जिस कारण सुपरबग का खतरा बढ़ गया है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा अध्ययन में इस बात के सबूत मिले हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान दिए गए एंटिबायोटिक्स ने सुपरबग यानी एंटिबाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) को और ज्यादा फैला दिया है.
एएमआर एक तरह की रोधि क्षमता है जो अत्यधिक एंटिबायोटिक्स शरीर में जाने से पैदा हो जाती है. इस कारण शरीर पर दवाओं खासकर एंटिबायोटिक्स का असर कम हो जाता है.
डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि दुनियाभर में कोविड महामारी के कारण जितने लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे, उनमें से सिर्फ आठ फीसदी ऐसे थे जिन्हें बैक्टीरियल संक्रमण हुआ था और एंटिबायोटिक्स की जरूरत थी. लेकिन अतिरिक्त सावधानी के नाम पर करीब 75 फीसदी मरीजों को एंटिबायोटिक दवाएं दे दी गईं.
पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में सबसे कम लगभग 33 फीसदी मरीजों को एंटिबायोटिक दिए गए जबकि पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र और अफ्रीका में 83 फीसदी तक मरीजों को ये दवाएं दी गईं. 2020 से 2022 के बीच यूरोप और अमेरिका में डॉक्टरों ने मरीजों के लिए कम एंटिबायोटिक दवाएं लिखीं जबकि अफ्रीका में यह दर बढ़ गई.
सबसे ज्यादा एंटिबायोटिक उन मरीजों को दिए गए जिनमें कोविड के लक्षण बहुत तीव्र थे. इनकी संख्या लगभग 81 फीसदी रही. मध्यम से कम तीव्रता वाले कोविड लक्षणों के मरीजों को भी अफ्रीका में 79 फीसदी तक एंटिबायोटिक दिए गए. अन्य क्षेत्रों में यह दर कमोबेश कम थी.
गैरजरूरी दवाओं के खतरे
यूएन के स्वास्थ्य संगठन के एएमआर प्रभाग के सर्विलांस, एविडेंस एंड लैबोरेट्री यूनिट के प्रमुख डॉ. सिल्विया बरटैग्नोलियो ने कहा, "अगर किसी मरीज को एंटिबायोटिक्स की जरूरत होती है तो उसके फायदे, खतरों या साइड इफेक्ट्स के मुकाबले ज्यादा होते हैं. लेकिन जरूरत ना होने पर अगर एंटिबायोटिक्स दिए जाएं तो उनका लाभ कोई नहीं होता लेकिन खतरे ज्यादा होते हैं. और उनका इस्तेमाल एएमआर के प्रसार को भी बढ़ाता है.”
संगठन की ओर से जारी एक बयान में डॉ. बरटैग्नोलियो कहते हैं कि ताजा अध्ययन के आंकड़े एंटिबायोटिक्स के समझदारी से इस्तेमाल पर जोर देते हैं ताकि मरीजों और बाकी लोगों में गैरजरूरी खतरों को कम किया जा सके.
अध्ययन कहता है कि कोविड-19 के मरीजों के इलाज में तो एंटिबायोटिक्स ने कोई फायदा नहीं पहुंचाया, उलटे जिन लोगों में बैक्टीरियल इंफेक्शन नहीं था, उनमें नुकसान का खतरा जरूर बढ़ा. इस अध्ययन के आधार पर दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं जो कोविड-19 के मरीजों को एंटिबायोटिक्स देने के बारे में डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी किए जाएंगे.
डब्ल्यूएचओ की यह रिपोर्ट जनवरी 2020 से मार्च 2023 के बीच 65 देशों में कोविड के कारण भर्ती हुए लगभग साढ़े चार लाख मरीजों के आंकड़ों पर आधारित है.
खतरनाक होता सुपरबग
डब्ल्यूएचओ में एएमआर प्रभाग के सह-महानिदेशक डॉ. यूकियो नाकातानी ने कहा, "यह अध्ययन दिखाता है कि दुनियाभर में एंटिबायोटिक देने के बारे में व्यवस्थागत सुधार के लिए जरूरी कोशिशों को और ज्यादा संसाधनों की जरूरत है.”
सुपरबग यानी एंटिबायोटिक दवाओं का इंसानी शरीर पर असर खत्म हो जाना वैश्विक स्तर पर सेहत के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक माना जाता है. एक अनुमान के मुताबिक 2019 में इस वजह से 12.7 लाख लोगों की जान गई थी. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक यह खतरा इतना बड़ा हो जाएगा हर साल लगभग एक करोड़ लोगों की जानें सिर्फ इसलिए जा रही होंगी क्योंकि उन पर एंटिबायोटिक दवाएं असर नहीं कर रही होंगी.
यह खतरा इतना बड़ा है इसलिए वैज्ञानिक इससे निपटने के लिए कई तरह की कोशिशें कर रहे हैं. इनमें नई तरह की एंटिबायोटिक दवाओं के विकास से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद लेने तक तमाम प्रयास शामिल हैं.