Google Privacy Concern: एंड्रॉइड फोन में गुपचुप तरीकें से फोटो स्कैनिंग तकनीक से गूगल पर उठा सवाल, खतरे में 3 बिलियन यूजर की गोपनीयता
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Google Privacy Concern: गूगल एक बार फिर प्राइवेसी विवादों में घिर गया है. Forbes की रिपोर्ट के अनुसार, जब Google ने एंड्रॉइड फोन्स पर अपनी नई फोटो स्कैनिंग तकनीक पेश की थी, तो उसने भरोसा दिलाया था कि बिना यूजर्स की अनुमति के कोई भी फोटो या अन्य कंटेंट स्कैन नहीं किया जाएगा. कंपनी ने इस तकनीक को 'SafetyCore' नाम से पेश किया था, जिसे डिवाइस पर सुरक्षित और निजी तरीके से कंटेंट को वर्गीकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. Google ने अपने बयान में स्पष्ट किया था कि, "SafetyCore डिवाइस पर इन्फ्रास्ट्रक्चर को सक्षम बनाता है ताकि यूजर्स अवांछित कंटेंट का पता लगा सकें." कंपनी ने यह भी दावा किया था कि यह फीचर केवल तभी एक्टिव होगा जब किसी एप्लिकेशन द्वारा इसे एक वैकल्पिक सुविधा के तौर पर अनुरोध किया जाएगा. इसके साथ ही Google ने यह भरोसा भी दिलाया था कि इस तकनीक से स्कैन किया गया कोई भी डाटा Google के सर्वर पर नहीं भेजा जाएगा और सारी प्रक्रिया पूरी तरह डिवाइस पर ही रहेगी. यह भी पढ़ें: गूगल ने एंड्रॉयड, पिक्सल और क्रोम टीम से सैकड़ों कर्मचारियों की छंटनी की; रिपोर्ट

यूजर्स के बीच बढ़ी नाराजगी

हालांकि, नई स्कैनिंग तकनीक के पेश होने के बाद से ही कई यूजर्स ने Google पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि कंपनी ने बिना स्पष्ट अनुमति के यह नया 'निगरानी उपकरण' एंड्रॉइड डिवाइसेज पर इंस्टॉल कर दिया है. इससे उनकी निजी जानकारी और फोटोज़ पर नियंत्रण का खतरा बढ़ गया है. कई यूजर्स का मानना है कि यह कदम उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और डिजिटल अधिकारों के खिलाफ है.

प्राइवेसी को लेकर बढ़ती चिंताएं

Google के करीब 3 अरब एंड्रॉइड, ईमेल और अन्य सर्विस यूजर्स अब यह तय करने की दुविधा में हैं कि वे एआई आधारित स्कैनिंग, मॉनिटरिंग और एनालिसिस की किस सीमा तक अनुमति देना चाहते हैं. जबकि SafetyCore जैसी तकनीकें ऑन-डिवाइस काम करने का दावा करती हैं, हालिया अपडेट्स में प्राइवेसी से जुड़े पुराने सुरक्षा मानकों की कमी भी देखी गई है.

विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी तकनीकें भले ही डिवाइस पर सीमित रहें, लेकिन इनका दुरुपयोग या भविष्य में इनके उपयोग के तरीके में बदलाव यूजर्स की प्राइवेसी को गंभीर खतरे में डाल सकता है. ऐसे में, यूजर्स को अब ज्यादा सतर्क रहकर यह निर्णय लेना होगा कि वे किन सुविधाओं को अपनाते हैं और किस हद तक अपनी डिजिटल पहचान को सुरक्षित रखते हैं.

 

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