मुंबई, 2 अप्रैल: दशकों से अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में भारत की उपलब्धियां पुरुष वर्ग तक ही सीमित थीं, जिसमें दिनेश खन्ना, प्रकाश पादुकोण और पुलेला गोपीचंद जैसे शटलर हावी थे. पादुकोण और गोपीचंद क्रमश: 1980 और 2001 में प्रतिष्ठित आल-इंग्लैंड खिताब जीतने वाले एकमात्र भारतीय हैं, जबकि खन्ना ने किंग्स्टन, जमैका में 1966 के राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीता था. यह भी पढ़ें: Women Paddlers: महिला पैडलर्स ने वैश्विक मंच पर प्रभावशाली उपलब्धियां कीं हासिल
देश ने मधुमिता बिष्ट, मंजूषा कंवर और अपर्णा पोपट सहित कुछ मजबूत महिला खिलाड़ियों को तैयार किया, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में सीमित सफलता मिली थी. पादुकोण और खन्ना ओलंपिक में भाग नहीं ले सके क्योंकि इसे 1992 में खेलों के रोस्टर में शामिल किया गया था, गोपीचंद, मधुमिता बिष्ट, अपर्णा पोपट, पी.वी.वी. लक्ष्मी, दीपांकर भट्टाचार्य, ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा ने खेल तो खेला, लेकिन पदक हासिल नहीं कर सके,
यह सब 2010 के आसपास दो महिला बैडमिंटन सितारों, साइना नेहवाल और पी.वी. सिंधु, जिन्होंने पिछले एक दशक में भारतीय बैडमिंटन को दुनिया के शीर्ष पर पहुंचाया. साइना ने 2010 के संस्करण में नई दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीता - एक भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी द्वारा पहला स्वर्ण पदक और फिर आगे चलकर लंदन में 2012 के ओलंपिक में कांस्य पदक जीता.
वह उसी वर्ष अगस्त में जकार्ता में विश्व चैंपियनशिप में रजत जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनने से पहले अप्रैल 2015 में विश्व नंबर 1 बनीं. सिंधु ने ओलंपिक खेलों में कई पदक जीतकर भारतीय बैडमिंटन को एक पायदान ऊपर ले लिया - रियो डी जेनेरो में 2016 के ओलम्पिक खेलों में रजत और 2021 में आयोजित टोक्यो में अगले ओलम्पिक में कांस्य पदक. विश्व चैंपियनशिप में दो कांस्य (2013, 2014) और दो रजत (2017, 2018) और राष्ट्रमंडल खेलों में रजत (2018) और स्वर्ण (2022) जीता.
स्विट्जरलैंड के बासेल में 2019 के संस्करण में विश्व चैंपियनशिप में उनकी जीत उनके और भारतीय बैडमिंटन के लिए गौरव की बात थी. वह उन कुछ खिलाड़ियों में से एक हैं जिनके पास विश्व चैंपियनशिप में पदकों का पूरा सेट है - स्वर्ण, रजत और कांस्य और पेरिस में 2024 ओलंपिक खेलों में पदक के लिए शीर्ष दावेदारों में से एक होगी यदि वह खुद को फिट रख पाती हैं.
साइना और सिंधु दोनों की सफलता के पीछे सामान्य कड़ी गोपीचंद हैं, जिन्होंने उनके प्रारंभिक दिनों में उन्हें प्रशिक्षित किया और उनकी भविष्य की सफलता की नींव रखी. हालांकि, सिंधु और साइना दोनों ने गोपीचंद अकादमी छोड़ दी और पूर्व आल-इंग्लैंड विजेता के साथ नाता तोड़ लिया, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि गोपीचंद ही थे जिन्होंने उन्हें गौरव की राह पर खड़ा किया.
गोपीचंद बैडमिंटन कोचिंग में नए विचार और तकनीक लेकर आए और हैदराबाद में विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे की स्थापना की, भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए एक सतत प्रशिक्षण व्यवस्था को एक साथ रखा, जिसने साइना और सिंधु के अलावा लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत, प्रणय और साई प्रणीत जैसे सितारों की मदद की है. जबकि सभी की निगाहें अभी भी साइना और सिंधु पर टिकी हैं, गायत्री गोपीचंद और ट्रीसा जॉली बमिर्ंघम में 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य जीतने के बाद एक ताकत के रूप में उभर रही हैं. इन खिलाडिय़ों के दमदार प्रदर्शन से भारतीय बैडमिंटन अगले कुछ वर्षों में नई ऊंचाइयों पर पहुंच सकता है.