दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार, 21 नवंबर को कहा कि जो जीवनसाथी कमा सकता है लेकिन बेरोजगार रहना चाहता है, उसे अपने साथी पर भरण-पोषण का बोझ नहीं डालना चाहिए. जस्टिस वी कामेश्वर राव और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की डिविजन बेंच ने एक पारिवारिक अदालत द्वारा एक पत्नी को उसके पति द्वारा दायर तलाक की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान दिए गए गुजारा भत्ते को कम करते हुए यह टिप्पणी की. बेंच ने कहा, ''पति या पत्नी के पास कमाने की उचित क्षमता है, लेकिन जो बिना किसी पर्याप्त स्पष्टीकरण या रोजगार हासिल करने के ईमानदार प्रयासों के संकेत के बिना बेरोजगार और बेकार रहना पसंद करता है, उसे खर्चों को पूरा करने की एकतरफा जिम्मेदारी दूसरे पक्ष पर डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.'' स्टूडेंट्स के सामने पत्नी को गाली देना मानसिक क्रूरता, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने महिला को तलाक लेने की इजाजत दी.

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