भोपाल से 50 किमी दूरी पर स्थित इस किले में आज भी मौजूद है पारस पत्थर, जिसके स्पर्श से लोहा भी बन जाता है सोना

कहा जाता है कि लोहे को अपने स्पर्श से सोना बना देने वाला यह पारस पत्थर भोपाल से महज 50 किलोमीटर दूर स्थित रायसेन के किले में मौजूद है.

रायसेन किला, भोपाल (Photo Credits: Facebook)

विविधताओं के देश भारत में कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें (Historical Heritage) मौजूद हैं जो आज भी अपने गौरवशाली इतिहास को बयान करती हैं. कई ऐसी चीजें भी मौजूद हैं जिनका जिक्र हमने सिर्फ किस्से-कहानियों में ही सुना होगा. इन्हीं किस्से-कहानियों में से एक है लोहे को भी सोना बना देने वाला चमत्कारी पारस पत्थर (Paras Patthar). जी हां. आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के भोपाल (Bhopal) से कुछ दूर स्थित एक किले में चमत्कारी पारस पत्थर के होने का दावा किया जाता है. कहा जाता है कि लोहे को अपने स्पर्श से सोना बना देने वाला यह पारस पत्थर भोपाल से महज 50 किलोमीटर दूर स्थित रायसेन के किले (Raisen Fort) में मौजूद है.

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि इस किले के राजा के पास पारस पत्थर था और इस पत्थर को पाने के लिए कई राजाओं ने इस किले पर आक्रमण भी किया और कई बार युद्ध भी हुए. आखिर में जब राजा को लगा कि वो युद्ध में हार जाएंगे तो उन्होंने पारस पत्थर को किले के भीतर मौजूद एक तालाब में फेंक दिया.

कहा जाता है कि राजा ने पारस पत्थर के इस राज को किसी के सामने जाहिर नहीं किया और एक युद्ध के दौरान उनकी मौत हो गई. राजा की मौत के बाद यह किला भी वीरान सा हो गया. हालांकि बाद में कई राजाओं ने किले को खुदवाकर पारस पत्थर को तलाशने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. यह भी पढ़ें: अहमदाबाद: भीषण गर्मी से बचने के लिए शख्स ने निकाला नायाब तरीका, ठंडक पाने के लिए गोबर से लीप दी अपनी कार, देखें वायरल तस्वीरें

यहां की स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस किले में चमत्कारी पारस पत्थर को ढूंढने के लिए कई लोग पहुंचे, लेकिन वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठे. कहा जाता है कि पारस पत्थर की रक्षा खुद एक जिन्न करता है, इसलिए जो भी इसे पाने की कोशिश करता है उसे न सिर्फ नाकामी हाथ लगती है, बल्कि उसका मानसिक संतुलन भी बिगड़ जाता है.

बहरहाल, भले ही इस किले में मौजूद तालाब में पारस पत्थर के होने के तमाम दावे किए जाते रहे हैं, लेकिन पुरातत्व विभाग को अब तक कोई ऐसा सुराग नहीं मिला है जिससे इस बात की पुष्टि हो सके कि इस किले में पारस पत्थर आज भी मौजूद है.

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