
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक पति ने अपनी पत्नी और तीन बच्चों को खुलेआम पंचायत के सामने उसके प्रेमी को सौंप दिया. यह अनोखा ‘समझौता’ गांववालों की मौजूदगी में हुआ और अब इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.
42 वर्षीय गुरनाम सिंह ने पंचायत में खुद की जान के डर से अपनी पत्नी रजेंद्र कौर (35) और उनके तीन बच्चों को उसके प्रेमी सतनाम सिंह को सौंप दिया. सतनाम कोई और नहीं बल्कि गुरनाम का ही चचेरा भाई है, जिससे रजेंद्र का बीते तीन सालों से प्रेम-प्रसंग चल रहा था.
गुरनाम ने पंचायत में कहा – “मुझे डर था कि वो और उसका प्रेमी मुझे मरवा देंगे. मैंने ऐसे कई केस देखे हैं. मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी. अब मैं अपनी जान की सलामती चाहता हूं.”
पंचायत में खड़े सतनाम सिंह ने कहा – “मैं रजेंद्र और बच्चों की जिम्मेदारी लेता हूं. अब ये मेरे साथ रहेंगे.”
भरी पंचायत मे हुआ अजब गजब समझौता...
जान जाने के डर से पत्नि व अपने 3 बच्चो को प्रेमी के हवाले कर दिया बेबस पति ने
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कही ड्रम तो कही साँप? क़ातिल पत्नियों की करतूत सुन सुन पति समाज को दहशत इतनी हो चली की पत्नि की प्रेम कहानी का पता चलते ही बेचारे पति सरेंडर की भूमिका मे आ रहे… pic.twitter.com/aezErJynAK
— TRUE STORY (@TrueStoryUP) May 28, 2025
गांववालों में चर्चा, पुलिस शांत
स्थानीय लोगों के अनुसार, यह पहला मामला नहीं है. गांवों में पतियों के मन में अपनी ही पत्नियों और उनके प्रेमियों से खतरे की भावना लगातार बढ़ रही है, जिसकी वजह से ऐसे अजीबोगरीब समझौते हो रहे हैं.
पुलिस का कहना है कि इस मामले में अब तक कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली है. अगर शिकायत मिलती है तो जांच की जाएगी.
सोशल मीडिया पर वायरल
इस घटनाक्रम का वीडियो तेजी से वायरल हो गया है. लोग इसे "मॉडर्न ससुराल ड्रामा" कहकर शेयर कर रहे हैं. कुछ लोग इसे परिवार की टूटन और रिश्तों के बदलते स्वरूप की मिसाल मान रहे हैं तो कुछ इसे कानून व्यवस्था और सामाजिक दबाव की असफलता का उदाहरण कह रहे हैं.
लखीमपुर खीरी की यह घटना एक बार फिर यह सवाल उठाती है कि क्या रिश्तों में भय और अविश्वास इतना बढ़ गया है कि इंसान सार्वजनिक मंच पर अपने जीवनसाथी और बच्चों को छोड़ने को मजबूर हो जाए? साथ ही यह भी दर्शाता है कि ग्रामीण समाज में प्रेम-प्रसंग अब किस तरह खुले आम सामने आ रहे हैं, और पंचायतें कैसे इस पर फैसले लेने लगी हैं.