World AIDS Day 2018: जानिए 1 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है विश्व एड्स दिवस और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत ?
विश्व एड्स दिवस (Photo Credits: Facebook)

World AIDS Day 2018: एचआईवी/एड्स (HIV/AIDS) एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जो पूरे विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती है और दुनिया भर में हर साल विश्व एड्स दिवस (World Aids Day) 1 दिसंबर (1st December) को मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का एकमात्र मकसद है लोगों को एचआईवी/एड्स (HIV/AIDS) जैसी जानलेवा गंभीर बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरुक बनाना, ताकि लोग इस बीमारी की चपेट में न आ आएं और इसका खात्मा जड़ से किया जा सके. साल 2018 में विश्व एड्स दिवस की थीम है 'अपनी स्थिति जानें'  यानी हर इंसान को अपने एचआईवी स्टेटस की जानकारी होनी चाहिए.

यूनिसेफ (UNICEF) की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 36.9 मिलियन लोग HIV के शिकार हो चुके हैं, जबकि भारत सरकार द्वारा जारी किए गए आकड़ों के अनुसार, भारत में एचआईवी (HIV) के रोगियों की संख्या लगभग 2.1 मिलियन है.

ऐसे हुई थी विश्व एड्स दिवस की शुरुआत

अगस्त 1987 में जेम्स डब्ल्यू बुन और थॉमस नेटर नाम के व्यक्ति ने सबसे पहले विश्व एड्स दिवस मनाया था. इन्हें जिनेवा, स्विटजरलैंड में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में एड्स पर ग्लोबल कार्यक्रम के लिए अधिकारियों के रूप में नियुक्त किया गया था. जेम्स डब्ल्यू बुन और थॉमस नेटर ने WHO के ग्लोबल प्रोग्राम ऑन एड्स के डायरेक्टर जोनाथन मान के सामने विश्व एड्स दिवस मनाने का सुझाव रखा और उन्हें यह सुझाव अच्छा लगा. जिसके बाद विश्व एड्स दिवस को मनाने के लिए 1 दिसंबर का दिन चुना गया और 1 दिसंबर 1988 से विश्व एड्स दिवस मनाने की शुरुआत हुई. यह भी पढ़ें: World AIDS Day 2018: एचआईवी/एड्स से संक्रमित होने पर दिखाई देते हैं ये सामान्य लक्षण, जानें कैसे करें बचाव ?

ऐसे में मिला इस बीमारी को नाम 

एड्स को पहले होमोसेक्सुअल लोगों की एक बीमारी समझा जाता था, जिसे GIRD यानी Gay Related Immune Deficiency नाम दिया गया. जिसका अर्थ है गे लोगों में पाई जाने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी. हालांकि इस बीमारी को एड्स का नाम साल 1982 में मिला था. अमेरिकन हेल्थ और ह्यूमन विभाग ने 29 अप्रैल 1984 को AIDS के कारण के तौर पर 'रेट्रोवायरस', जिसे बाद में HIV (Human Immunodeficiency Virus) नाम दिया गया.

गौरतलब है कि एचआईवी इंफेक्शन से होने वाली मौत का सबसे बड़ा कारण है. WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस लाइलाज बीमारी का सबसे पहला मामला साल 1981 में सामने आया था, तब से लेकर अब तक दुनियाभर में तकरीबन 39 मिलियन लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं.

दरअसल, एचआईवी/एड्स एक लाइलाज बीमारी है और इससे बचाव ही इसका एकमात्र उपचार है. हालांकि इस बीमारी का कारगर इलाज ढूंढने की वैज्ञानिक काफी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उन्हें इस बीमारी का कोई कारगर तोड़ नहीं मिल पाया है.