भारत के प्रति पाकिस्तान की दुर्भावना का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बंटवारे के बाद उसने भारत पर योजनाबद्ध तरीके से चार बड़े हमले (1948, 1965, 1971,1999) किये और सभी हमलों में उसे ना केवल बुरी हार का सामना करना पड़ा, बल्कि ऐसे अवसर भी आये, जब भारतीय सेना लाहौर तक घुस गई. अगर भारत चाह लेता तो आज आधा पाकिस्तान भारत के नक्शे में होता. यहां हम 16 दिसंबर 1971 के युद्ध के बारे में बात करेंगे, क्योंकि इस अवसर को भारत में ‘विजय दिवस’ रूप में मनाया जाता है. आइये जानें 16 दिसंबर 1971 को समाप्त हुए इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल नियाजी के 93 हजार सैनिकों को भारतीय शूरवीरों ने कैसे आत्मसमर्पण करवाया.
शुरुआत पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच से हुई
साल 1970 खत्म हो रहा था, दुनिया भर में नये वर्ष 1971 के स्वागत की तैयारियां चल रही थी. उधर पाकिस्तान में आम चुनाव शुरू हुए, इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर्रहमान ने भारी सीटों के साथ जीत दर्ज की, और अपनी सरकार बनाने का दावा किया. पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो को यह बात पसंद नहीं थी कि पूर्वी पाकिस्तान के लोग पश्चिमी पाकिस्तान पर दखलअंदाजी करें. यहीं से पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच विवाद और तनाव शुरू हो गया था. यह भी पढ़ें : Kharmas 2023: शुरू हो रहा है खरमास! जब थमेगी शहनाइयों की धुनें! जानें क्यों अशुभ है खरमास? तथा इस मास क्या करें क्या न करें!
भुट्टो ने पूर्वी पाकिस्तान पर तानाशाही रवैया
भुट्टो की अलोकतांत्रिक रवैये के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान की अवामी लीग ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया तो मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया. इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोग आंदोलित हो उठे. इस आंदोलन को रोकने के लिए भुट्टो ने पूर्वी पाकिस्तान में अपनी सेना भेजा. सेना ने आम जनता पर अत्याचार शुरू किया, लड़कियों से बलात्कार कर उनकी हत्या करने लगे. पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से बिगड़ती स्थिति के कारण पूर्वी पाकिस्तान के लोग भारत में शरणार्थी के तौर पर पलायन करने लगे. सूत्रों के अनुसार थोड़े ही समय में दस लाख से ज्यादा शरणार्थी भारत में प्रवेश कर चुके थे. उस समय भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का शासन चल रहा था.
पाकिस्तानी सेना पर भारत का जवाबी हमला
03 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने घात लगाकर भारत के 11 स्टेशनों पर बमबारी किया. श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को मुंहतोड़ हमले का आदेश दिया. भारतीय सेना ने 4 दिसंबर को बंगाल की खाड़ी में पाकिस्तानी नौसेना पर जमकर बमबारी करके पाकिस्तानी नौसेना के मुख्यालय को ध्वस्त कर दिया. इस हमले से पाकिस्तानी सेना के हौसले पस्त हो गये. भारतीय सेना ने सर्वप्रथम जेसो और खुलना पर कब्जा किया. इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने मिग-21 का प्रयोग किया था. यह युद्ध 13 दिनों तक चलता रहा.
16 दिसंबर 1971 का वह ऐतिहासिक दिन
16 दिसंबर की सुबह-सवेरे जनरल जैकब को भारतीय सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण के लिए तत्काल ढाका आएं. उस समय नियाजी के पास ढाका में 26,400 सैनिक थे. भारतीय सेना ढाका से 30 किमी की दूरी पर थी. युद्ध पर उसकी मजबूत पकड़ बन चुकी थी. ले. जनरल जेआर जैकब अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़े. वह जब नियाजी के कक्ष में पहुंचे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था. एक टेबल पर आत्मसमर्पण के दस्तावेज पड़े हुए थे. उधर शाम चार बजे ले. जनरल जगदीश सिंह अरोड़ा ढाका हवाई अड्डे से नियाजी के कक्ष पहुंचे. यहीं पर जनरल अरोड़ा और नियाजी ने आत्मसमर्पण वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किये. नियाजी ने अपने बैज उतारकर टेबल पर रखे और अपनी रिवाल्वर जनरल अरोड़ा के सुपुर्द किया. इसके पश्चात सभी पाकिस्तानी सैनिकों ने अपनी बंदूकें जमीन पर रखीं और घुटने टेक कर बैठ गये.
विश्व की यह पहली घटना थी, जब दुश्मनों के 93 हजार सैनिकों को बिना खून बहाए आत्मसमर्पण करवाया गया. इसलिए भारत में यह दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.