Tulsidas Jayanti 2022: राम-कथा लिखने वाले तुलसीदास क्या अमंगलकारी थे? जानें उनके अद्भुत एवं दिव्य जीवन के कुछ रोचक तथ्य!
Tulsidas Jayanti

तुलसीदास जी का जन्म संवत 1558 श्रावण शुक्लपक्ष की सप्तमी को अभुक्त मूल नक्षत्र में प्रयागराज के पास बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था. उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माँ हुलसी थीं. उनके जन्म के समय कुछ अद्भुत एवं असामान्य बातें देखी गई, मसलन वे अपनी माँ के गर्भ में 12 माह तक थे. पैदा होने पर उनके मुंह में 32 दांत थे, वह आम शिशु की तरह रोये नहीं थे, बल्कि पैदा होते ही उनके मुख से 'राम' शब्द प्रस्फुटित हुए थे. कहते हैं कि एक शिशु के इस अप्राकृतिक स्वरूप से माता-पिता अमंगल की आशंका से भयभीत होकर उन्हें अपनी दासी चुनिया को देकर उसके गांव हरिपुर भेज दिया. अगले ही दिन मां की मृत्यु हो गई. पांच साल तक चुनिया ने उनका पालन-पोषण किया, इसके बाद वह भी चल बसी. आइये जानें रामचरित मानस के रचयिता, महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन की कुछ अद्भुत बातें!

श्री राम ‘आराध्य’ और शिवजी एवं मां पार्वती ‘गुरु’ थे!

तुलसीदास जी के आराध्य देव श्री राम हैं. वह श्रीराम के परम भक्त थे. पैदा होने के बाद उनके मुंह से पहला शब्द 'राम' ही निकला था. कम लोगों को जानकारी होगी कि तुलसीदास भगवान शिव एवं मां पार्वती को ही माता-पिता, एवं गुरु मानते थे. ऐसी भी मान्यता है, कि जब वह अनाथ थे तो मां पार्वती एक ब्राह्मणी के वेष में उन्हें खाना खिलाने आती थी.

विवाह और वैराग्य!

तुलसीदास का विवाह अत्यंत रूपवती कन्या रत्नावली से हुआ था. उनके पहले पुत्र तारक की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी. मान्यता है कि वह रत्नावली से बहुत प्यार करते थे. प्राप्त कथाओं के अनुसार एक बार जब पत्नी मायके गई थीं, वह पत्नी से मिलने वह एक मृत शरीर के सहारे नदी पार कर देर रात ससुराल पहुंचे. दरवाजा बंद देख वह सांप को रस्सी समझ कर दीवार फांद कर पत्नी के पास पहुंचे. इतनी रात इस तरह ससुराल आने पर रत्नावली ने उन्हें धिक्कारा कि इतनी आशक्ति आप श्रीराम में लगाते तो आपका बेड़ा पार हो जाता. पत्नी की बात उनके दिल को लग गई. उन्होंने उसी समय घर-परिवार त्याग कर वैराग्य धारण कर लिया.

ऐसे हुआ हनुमान जी एवं श्री राम के दर्शन

ससुराल छोड़ संन्यासी तुलसीदास प्रयागराज आ गये. एक बार काशी में रामकथा करते समय एक बार एक प्रेत ने उन्हें बताया कि वह हनुमान जी से मिलें, तो श्री राम दर्शन की इच्छा अवश्य पूरी होगी. तुलसीदास हनुमान जी से मिले. हनुमानजी ने उन्हें चित्रकूट जाकर श्रीराम के दर्शन की बात कही. एक दिन मौनी अमावस्या को तुलसीदास चंदन घिस रहे थे, एक बालक ने तुलसीदास से कहा. बाबा मुझे भी चंदन लगाओ. तुलसीदास ने बालक को देखा तो देखते रह गये. पास में तोता के रूप में बैठे हनुमानजी ने सोचा तुलसीदास प्रभु श्रीराम को न पहचान सके तो? तब तोतारूपी हनुमान यह दोहा सुनाया.

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर

तुलसीदास तोते का पाकर समझ गये कि साक्षात श्री राम उपस्थित हैं. वह तुरंत अपने इष्टदेव के सामने साष्टांग लेट गये.

बंदरों ने अकबर की कैद से तुलसीदास को आजाद कराया

रामचरित मानस से चर्चित हुए तुलसीदास को एक बार सम्राट अकबर ने दरबार में बुलाया. अपने बारे में एक ग्रंथ लिखने का आदेश दिया. तुलसीदास जी ने मना कर दिया. तुलसीदास का इंकार सुन अकबर क्रोधित हो उठा, उसने तुलसीदास को कैद में डाल दिया. कहते हैं कि तुलसीदास ने अकबर के कारागार में ही हनुमान चालीसा की रचना की. कहते हैं कि तुलसीदास को कारागार में देख बन्दरों ने अकबर के पूरे राजमहल को घेर लिया. तब अकबर के सलाहकारों के सुझाव पर उसने तुलसीदास जी को आजाद कर दिया. तुलसीदास के आजाद होते ही सारे बंदर लुप्त हो गये.

भगवान शिव का सपने में रामकथा लिखने का सुझाव देना

कहते हैं कि तुलसीदास जी को जब काव्य लेखन की क्षमता प्राप्त हुई, उन्होंने पहली रचना संस्कृत भाषा में लिखी, लेकिन वे जो भी पद रात में लिखते थे, सुबह होते ही वे पद लुप्त हो जाते थे. एक रात शिवजी ने तुलसीदास को सपने में संस्कृत की बजाय मूल भाषा में पद लिखने का सुझाव दिया. भगवान शिव ने कहा अयोध्या जाकर रामकथा पर काव्य रचना करोगे तो तुम्हारी रचना सामवेद और ऋग्वेद की तरह तुम्हें लाभान्वित कराने वाली साबित होगी. तुम्हारी इस रामकथा से लोग पुण्य अर्जित करेंगे. लोगों को मोक्ष दिलाएगी.

अपने अंतिम समय में तुलसीदास काशी आकर असी घाट पर रहने लगे. मान्यता है कि संवत 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया को असी घाट पर ही ‘राम-राम’ कहते हुए उन्होंने देह त्याग दिया.