Shivaji Maharaj Jayanti 2024: शिवाजी महाराज की शौर्य गाथा! जानें कैसे शिवाजी ने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ मुगल सेना को बार-बार नेस्तनाबूद किया!
Chhatrapati Shivaji (Photo Credit: Wikimedia Commons)

भारत आदिकाल से ‘वीरों की भूमि’ रहा है. इस देश की धरती ने अनगिनत शूरवीर पैदा किये, जिसने पूरी जिंदगी रणभूमि में गुजारी और बिना हारे दुश्मनों को पस्त और परास्त करते रहे. ऐसे ही एक अत्यंत, चतुर, साहसी और कूटनीतिज्ञ योद्धा थे, छत्रपति शिवाजी महाराज. इतिहास साक्षी है कि मराठा विरासत को कायम रखते हुए, शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ लड़ाई के दौरान अपने उल्लेखनीय प्रशासनिक और युद्ध कौशल से इतिहास में एक अलग पहचान बनाई. उनकी युद्ध शैली से दुश्मन खौफ खाते थे, कि मात्र कुछ सौ सैनिकों के साथ वह मुगलों के हजारों सैनिकों पर कैसे भारी पड़ते थे. वीर शिवाजी जयंती (19 फरवरी) पर यहां उनके कुछ युद्धों के बारे में बात करेंगे, जिसे उन्होंने अपने चतुर रणकौशल के सहारे जीता था.

रायगढ़ युद्ध (1646)

रायगढ़ युद्ध साल 1646 में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी और आदिलशाही सल्तनत के जनरल मुल्ला अली के बीच लड़ा गया. दरअसल रायगढ़ किला शिवाजी के महत्वपूर्ण ठिकानों में से एक था, जिसे मुगल सैनिक अपने कब्जे में करके शिवाजी को आसानी से हराने के सपने देखते थे. अंततः अपने रणकौशल के सहारे अपने मुट्ठी भर सैनिकों के दम पर जनरल मुल्ला अली को पराजित कर युद्ध जीता और रायगढ़ पर दुबारा कब्जा कर उसे अपनी राजधानी बनाई. इस जीत ने शिवाजी महाराज को एक शक्तिशाली आधार दिलाया था. यह भी पढ़ें : Devnarayan Jayanti 2024 Wishes: देवनारायण जयंती की इन हिंदी WhatsApp Stickers, GIF Greetings, HD Images, Wallpapers के जरिए दें शुभकामनाएं

तोरणा युद्ध (1647)

साल 1647 में छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिल शाही सेना के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ था. बीजापुर के अधीन तोरणा पर शिवाजी किसी भी कीमत पर अपना अधिकार जमाना चाहते थे. आदिल शाही सेना के खिलाफ शिवाजी ने गुरिल्ला लड़ाई लड़ी. उन्होंने अपनी सेना को तोरणा किले के चारों ओर छिपा दिया था, आदिलशाही सेना शिवाजी की इस कूटनीति को नहीं समझी और तोरणा किले पर कब्जा के इरादे से आगे बढ़ रही थी, तभी शिवाजी की छिपी हुई सेना ने मुगल सेना पर अचानक आक्रमण कर दिया. इससे पहले कि मुगल सेना कुछ समझ पाती मराठा सैनिक उन पर काल बनकर टूट पड़ी. तोरणा किले पर कब्जा करने के साथ ही शिवाजी की ताकत कई गुना बढ़ गई. यह विजय छत्रपति की बढ़ती शक्ति और महत्वाकांक्षा का प्रतीक थी.

तंजावुर युद्ध (1656)

तंजावुर युद्ध मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी और मदुरै के नाइक राजा के बीच लड़ी गई थी. दरअसल तंजावुर शहर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था, शिवाजी इसे जीतकर अपनी आर्थिक स्थिति को और मजबूत करना चाहते थे, ताकि मुगल सैनिकों को देश से खदेड़ने के अपने मंसूबे को वह पूरा कर सकें. इस युद्ध में भी शिवाजी ने अपनी गुरिल्ला युद्ध को दोहराया. उन्होंने तंजावुर में अपनी सेना की छोटी सी टुकड़ी को इधर-उधर छिपा दिया और उचित मौके देखकर तंजावुर की सेना पर हमला बोल दिया. तंजावुर शहर पर मराठा साम्राज्य स्थापित करने के साथ ही शिवाजी की ताकत कई गुना बढ़ गई.

कल्याण युद्ध (1657)

साल 1657 में एक बार पुनः शिवाजी की मुट्ठी भर सेना मुगलों की हजारों की सेना से टकराई. इस बार शिवाजी ने अपनी साहसी सेना के साथ रात के वक्त कल्याण शहर पर अचानक हमला बोल दिया. मुगल सेना इस आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी, लिहाजा उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा. मुगल सेना के खिलाफ शिवाजी महाराज ने यह युद्ध जीतकर अपने स्वतंत्रता संग्राम को और विस्तार दिया, जिसने मुगल सैनिकों की नींद उड़ा दिया.

प्रतापगढ़ युद्ध (1659)

यह युद्ध भी शिवाजी महाराज ने साल 1659 में आदिलशाही सेनापति अफजल खान के मध्य लड़ा था. शिवाजी यह युद्ध जीतकर दक्कन यानी दक्षिणी हिस्से पर भी अपना वर्चस्व बनाना चाहते थे, इस युद्ध में शिवाजी के वीर सैनिकों ने जहां 5 हजार से ज्यादा मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतारा था, वहीं अफजल खान द्वारा शिवाजी की षड़यंत्र रचकर हत्या करने के मकसद को धता बताते हुए शिवाजी ने बघनख से अफजल खान के सीने को फाड़कर मार डाला था.