Shani Pradosh Vrat 2024: क्यों खास होता है शनि प्रदोष? जानें इस दिन का महात्म्य, मूल-तिथि, मुहूर्त एवं पूजा विधि इत्यादि!
Shani Pradosh Vrat 2024

हिंदू धर्म शास्त्रों में शनि प्रदोष तिथि का विशेष आध्यात्मिक महत्व बताया गया है. प्रदोष तिथि भगवान शिव एवं माता पार्वती को समर्पित होने के कारण इस दिन भगवान शिव-पार्वती की संयुक्त पूजा होती है, शनिवार के दिन प्रदोष होने की स्थिति में इसे शनि प्रदोष कहा जाता है, और इस दिन शनिदेव की भी पूजा का विधान है. इस वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी यानी प्रदोष तिथि 31 अगस्त 2024, शनिवार को मनायी जाएगी. आइये जानते हैं, अन्य प्रदोष व्रतों की तुलना में शनि प्रदोष व्रत का विशेष महात्म्य क्यों बताया गया है और शनि प्रदोष व्रत की पूजा की मूल तिथि, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा-विधि आदि क्या है...

क्यों खास है शनि प्रदोष?

हिंदू धर्म ग्रंथों में शेष प्रदोषों की तुलना में शनि प्रदोष को विशेष प्रदोष माना गया है. इस दिन भगवान शिव-पार्वती के अलावा शनि मंदिर में शनिदेव की भी पूजा की जाती है. शनि प्रदोष व्रत की कुछ खास बातें... यह भी पढ़ें : Shani Pradosh Vrat 2024: मासिक शिवरात्रि में बन रहा शनि प्रदोष का महासंयोग! जानें इसका महात्म्य, तिथि, मुहूर्त, महत्व एवं पूजा-विधि!

* मान्यता है कि इस दिन व्रत एवं शनिदेव की पूजा से शनि की महादशा से राहत मिलती है.

* शनि देव की कृपा से नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है.

* इस दिन पूजा करने से भय, परेशानी एवं तमाम कष्ट कटते हैं.

* सुख, शांति एवं समृद्धि प्राप्त होती है.

* निसंतानों को संतान सुख मिलता है.

* आर्थिक संकटों का समाधान होता है.

* लंबी उम्र के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.

शनि प्रदोष व्रत की मूल तिथि

भाद्रपद कृष्ण पक्ष प्रदोष तिथि प्रारंभः 02.25 AM (31 अगस्त 2024, शनिवार)

भाद्रपद कृष्ण पक्ष प्रदोष तिथि समाप्तः 03.40 AM (01 सितंबर 2024, रविवार)

प्रदोष व्रत की पूजा सायंकाल में होने के कारण 31 अगस्त को प्रदोष व्रत रखा जाएगा.

पूजा का शुभ मुहूर्तः

06.43 PM से 08.59 PM तक (31 अगस्त 2024, शनिवार)

शनि प्रदोष व्रत एवं पूजा विधि

प्रदोष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, एवं भगवान शिव एवं माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत-पूजा का संकल्प लेते हुए अपनी मनोकामना की पूर्ति की प्रार्थना करें. अब पूजा स्थल की सफाई करें. सामान्य पूजा करें. निकटतम शनि मंदिर में जाकर शनिदेव की पूजा करें. पूरे दिन उपवास रखने के पश्चात सायंकाल पूजा मुहूर्त के अनुसार पूजा स्थल पर एक स्वच्छ चौकी रखकर इस पर स्वच्छ पीला वस्त्र बिछाकर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करने के पश्चात निम्न मंत्र का निरंतर जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.

‘ॐ नम: शिवाय’

पहले पंचामृत तत्पश्चात गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करें. शिवजी को बेल-पत्र, सफेद चंदन, मदार का पुष्प, एवं भस्म अर्पित करने के पश्चात माता पार्वती को लाल गुड़हल का पुष्प, रोली अथवा सिंदूर एवं सुहाग की कुछ वस्तुएं अर्पित करें. भोग में फल एवं मिष्ठान चढ़ाएं. अंत में शिवजी की आरती उतारें.