Savitribai Phule Death Anniversary: महिला शिक्षा की अग्रदूत सावित्रीबाई फुले का जीवन था मार्गदर्शन, जानें उनसे जुडी बड़ी बातें
Savitribai Phule Quotes 2023 (Photo Credits: File Image)

महिला शिक्षा, सशक्तिकरण एवं सामाजिक उत्थान हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाली सावित्री बाई फुले की आज पुण्यतिथि है. उन्नीसवीं सदी में भारत में सर्वप्रथम स्त्री शिक्षा की अलख जगाने का श्रेय उन्हें ही जाता है. समाज में व्याप्त विषमताओं को चुनौती देकर सावित्रीबाई फुले ने महिला शिक्षा के जो अंकुर रोपे, आज वही दिन-प्रतिदिन विशाल वृक्ष में रूपांतरित हो रहा है. सावित्री बाई फुले को देश की प्रथम महिला शिक्षक माना जाता है. वे मराठी की आदि कवयित्री के रूप में भी विख्यात हैं. आइये, इस लेख के माध्यम से नारी शिक्षा की अग्रदूत सावित्री बाई फुले की जीवन यात्रा का संक्षिप्त परिचय पाते हैं.

बचपन से ही थी पढ़ने की ललक, अल्पायु में हुआ था विवाह

महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में 3 जनवरी 1831 को जन्मी सावित्रीबाई में बाल्यकाल से ही शिक्षा को लेकर आकर्षण था. उन दिनों महिला शिक्षा का जोर नहीं था. देश परतंत्र था। महिलाओं को पढ़ने की आजादी नहीं थी. ऐसे में सावित्री का मन किताबों की ओर खींचने लगा. घरवालों के कड़े प्रतिरोध के बावजूद उनकी पढ़ने की इच्छा कम नहीं हुई. मात्र नौ वर्ष की अल्पायु में ही सावित्री का विवाह ज्योतिबा फुले के साथ हो गया. ज्योतिबा फुले के प्रोत्साहन और सहयोग से सावित्री के अध्ययन को गति मिली। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण में भाग लिया और इस तरह देश को पहली महिला शिक्षक मिली.

देश की प्रथम बालिका विद्यालय की संस्थापिका सावित्रीबाई

सावित्रीबाई फुले ने स्वयं शिक्षित हो जाने के बाद महिला शिक्षा के प्रसार हेतु उल्लेखनीय कार्य किया. बालिकाओं को बचपन से ही बुनियादी शिक्षा मिल सके इसलिए सावित्रीबाई के द्वारा पुणे में वर्ष 1848 में देश के पहले बालिका विद्यालय की शुरुआत हुई. उन्होंने बालिका शिक्षा को सपर्मित इस तरह के कुल अठारह विद्यालय देश भर में प्रारंभ किए। उन्नीसवीं सदी में सावित्रीबाई ने शिक्षा की अलख जगाने का बीड़ा उठाया था. इस मार्ग में उनके सामने विभिन्न तरह की चुनौतियां थी. वह काल जब महिलाओं के लिए घर की देहरी लांघना भी कठिन था, सावित्रीबाई महिलाओं को पढ़ाने जाती. सामान्य जन से अपने घर की बालिकाओं को विद्यालय भेजने का निवेदन करती. इस कार्य में बाधा डालने हेतु कई लोगों ने उन पर गंदगी फेंकने, डराने-धमकाने समेत तरह-तरह के कुत्सित प्रयास किए पर सावित्रीबाई का साहस कम नहीं हुआ.

वंचितों के उत्थान और नारी जागरण के लिए समर्पित रहा सावित्री बाई का जीवन

सावित्रीबाई आजीवन समाज के कमजोर वर्गों की उन्नति और महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु कार्य करती रहीं. उन्होंने 28 जनवरी 1853 को देश के बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की थी. कन्या शिशु हत्या को रोकने के लिए यह सावित्रीबाई की प्रभावी पहल थी. सामाजिक जागरण के इस कार्य में उन्हें अपने पति ज्योतिबाफुले का पर्याप्त सहयोग प्राप्त हुआ. फुले दम्पति ने 24 सितम्बर ,1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की. उनका उद्देश्य समाज में विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, और महिलाओं को शिक्षित बनाना था. उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए विधवा पुनर्विवाह की वकालत की और 25 दिसम्बर 1873 को देश का प्रथम विधवा पुनर्विवाह कराया. सावित्री बाई फुले मराठी भाषा की आदि कवियत्री के रूप में प्रतिष्ठित हैं. उनकी कविताएँ मराठी में लिखी गई थी, जिसका अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। वे मानवतावाद, स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, तर्कवाद और दूसरों के बीच शिक्षा के महत्त्व जैसे सार्वजनीन मूल्यों की प्रबल पक्षधर थी.