अनंत चौदस को गणपति बप्पा की विदाई के पश्चात आश्विन मास कृष्ण पक्ष की गणेश संकष्टि चतुर्थी पर पुनः गणेशजी की पूजा-अर्चना शुरू होती है. सनातन धर्म में भगवान गणेश को शुभता का प्रतीक माना जाता है. संकष्टि चतुर्थी पर प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी की पूजा एवं व्रत रखने वाले जातक पर भगवान श्रीगणेश का आशीर्वाद बरसता है, उसके सारे कार्य निर्विघ्न पूरे होते हैं, तथा घर में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है. इस वर्ष अश्विन संकष्टी की पूजा एवं व्रत 21 सितंबर 2024, शनिवार को रखा जाएगा. इस दिन चंद्र दर्शन एवं अर्घ्य देने के बाद ही पूजा को पूर्णता प्राप्त होती है. आइये जानते हैं इस व्रत-पूजा का महत्व, मुहूर्त, मंत्र एवं नियम आदि के बारे में...
आश्विन संकष्टी चतुर्थी का महत्व
आश्विन मास की संकष्टी चतुर्थी पर व्रत एवं पूजा करने वाले जातक को चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य एवं पूजा करने के पश्चात ही पूजा पूर्ण मानी जाती है. मान्यता है कि अश्विन संकष्टी चतुर्थी की पूरी विधि-विधान से पूजा एवं ब्राह्मण को दान देने से जातक के सारे कष्ट नष्ट होते हैं, तथा घर-परिवार में बरकत आती है. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार आश्विन संकष्टी चतुर्थी पर पूजा के साथ आज का व्रत कथा अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए. यह भी पढ़ें : Pitru Paksha 2024: पितृपक्ष के दूसरे दिन गंगा नदी में लोगों ने लगाई आस्था की डुबकी, पितरों का किया तर्पण
अश्विन संकष्टी चतुर्थी मूल तिथि एवं मुहूर्त
आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 09.15 PM (20 सितंबर 2024, शुक्रवार)
आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी समाप्तः 06.13 PM (21 सितंबर 2024, शनिवार)
उदया तिथि के नियमों के अनुसार अश्विन संकष्टी चतुर्थी का व्रत एवं पूजा 21 अगस्त को सम्पन्न होगा.
सुबह की पूजा का मुहूर्तः 07.40 AM से 09.11 AM
संध्याकालीन पूजा का मुहूर्तः 06.19 PM से 09.11 PM
चंद्रोदयः 08.29 PM (21 सितंबर 2024)
संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं पूजा के नियम
सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र स्नान करें. घर पर पूजा कक्ष की अच्छी तरह सफाई करें. मंदिर के सामने एक स्वच्छ चौकी. इस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं. इस पर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें, एवं धूप दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा प्रारंभ करें. सर्वप्रथम गणेश जी के मस्तक पर रोली अक्षत का तिलक लगाएं. दूर्वा के साथ लाल या पीला पुष्प अर्पित करें. भोग में मोदक, फल इत्याति अर्पित करें. संकष्टि कथा का वाचन करें अथवा सुनें. इसके पश्चात गणेश जी की आरती उतारें
गणेशजी की यह पूजा संध्या काल पर मुहूर्त के अनुरूप करें. इसके पश्चात चंद्रमा का दर्शन एवं अर्घ करके पूजा पूरी करें. फलाहार करके सुबह व्रत का पारण करें.