‘पवन पुत्र’ हनुमान जी की महिमा अपरंपार है. अमरत्व का वरदान प्राप्त करने के पश्चात महाबलशाली हनुमान जी के बारे में कहा जाता है कि वे आज भी पृथ्वी के किसी हिस्से में सशरीर रह रहे हैं, और जहां भी रामभक्ति की गूंज होती है, वहां उनकी उपस्थिति रहती है. यह बात किसी रहस्य और रोमांच से कम नहीं है. हनुमान जितने बलशाली थे, उतने ही मायावी भी थे. प्रभु श्रीराम के प्रति उनकी गहरी एवं सच्ची निष्ठा और अकाट्य सेवा भाव किसी और व्यक्ति में देखने या सुनने को नहीं मिलता.
रामकथा प्रसंग में सीता जी की खोज में निकले हनुमान जी को तमाम बाधाओं का सामना करना पड़ा. विशालकाय समुद्र को पार कर लंका पहुंचना, धर्म का मान रखते हुए राक्षसी सुरसा का बिना वध किये उसके मुख से निकलकर लंका में प्रवेश करना, लंकिनी द्वारा बाधा पहुंचाने पर उसका वध करना, और इसके जरिये लंका में अपने प्रवेश की खबर रावण तक पहुंचवाना, फिर अशोकवाटिका में कैद सीता जी तक पहुंचना, किसी आम व्यक्ति के लिए बहुत दुरूह कार्य था, लेकिन प्रभु राम की विजय और प्रसन्नता के लिए वह हर असंभव कार्य करने के लिए तैयार रहते थे.
हनुमान जी के लंका प्रवेश के बाद जब लंकावासियों को परेशान करते हैं तो समस्त लंका में त्राहिमाम! त्राहिमाम! मच जाता है. हनुमान जी को मारने के लिए मेघनाद के पुत्र अक्षय कुमार को भेजा जाता है. हनुमान जी उसका भी वध कर देते हैं, तब स्वयं मेघनाद उन्हें पकड़ने आता है. मगर हनुमान जी अपने पराक्रम से मेघनाद के सारे अस्त्र-शस्त्र बेकार कर देते हैं. हार कर मेघनाद हनुमान जी को जीवित बांधने के लिए ब्रह्मास्र का प्रयोग करता है. हनुमान जी ब्रह्मास्त्र को भी ध्वस्त करने का सामर्थ्य रखते थे, लेकिन उन्होंने सोचा कि ब्रम्हास्त्र को ध्वस्त करने से उस ब्रह्मास्त्र की महिमा मिट जायेगी. ब्रह्मास्त्र फेंके जाने के साथ ही, वह जानबूझकर एक वृक्ष से गिर पड़ते हैं. मेघनाद उन्हें नागपाश में बांधकर रावण के दरबार में प्रस्तुत होता है. अपने पराक्रम से हनुमान जी को विधि के विधान का अहसास रहता है, इसलिए बिना विचलित हुए वह रावण के दरबार में पहुंचकर ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष करते हैं.
इसके बाद हनुमान रावण से श्रीराम से संधि कर सीता को ससम्मान उनके पास पहुंचाने की प्रार्थना करते हैं. रावण क्रोध में आकर हनुमान जी की पूंछ में आग लगाकर उन्हें बिन पूंछवाला बंदर बनाकर उनका मजाक उडाना चाहता है, लेकिन होता उल्टा है, हनुमान जी उसी जलती पूंछ से रावण के सोने के महल को जलाकर राख कर देते हैं. यूं तो विष्णु पुराण में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि विष्णु ने अत्याचारी रावण का वध करने के लिए श्रीराम के रूप में अवतार लिया था. लिहाजा चक्रवर्ती सम्राट दशरथ का पुत्र होने के बावजूद पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन गमन, आतताई राक्षसों का संहार, रावण द्वारा सीता हरण, फिर हनुमान जी एवं उनकी वानर सेना के सहयोग से श्रीराम का लंका पहुंच रावण का वध कर विभीषण का राज्याभिषेक करना तथा सीताजी के साथ अयोध्या वापसी यह सारे प्रसंग विधि के विधान के अनुसार ही हुआ था. मान्यता है कि रावण के सोने की लंका को जलाना भी विधि के विधान में था.
प्रचलित कथा
विष्णु पुराण के अनुसार हनुमान जी भगवान शिव के ही अवतार थे. एक बार माता पार्वती की मांग पर शिव जी ने विश्वकर्मा जी को सोने का एक खूबसूरत महल के निर्माण का आदेश दिया. महल देखकर पार्वती जी बहुत खुश हुईं. पार्वती जी के सोने के महल की खूबसूरती देख रावण मन में लालच आ गया. उसने तुरंत एक ब्राह्मण के वेष में शिव जी के पास पहुंचा. रावण ने ही शिव-पार्वती के उस सोने के महल की पूजा करवाई. जब शिवजी ने ब्राह्मण रूपी रावण से दक्षिणा की बात की तो रावण ने सोने के उस पूरे महल की मांग कर ली. शिवजी ने भक्त को पहचान तो लिया था, मगर मुस्कुराते हुए उन्हें वह सोने का महल दान कर दिया.
बाद में रावण को ध्यान आया कि यह महल तो माता पार्वती का है, लिहाजा उनके बिना यह महल अशुभ साबित हो सकता है. रावण ने शिवजी से सोने के भवन के साथ माता पार्वती को भी मांगा. शिवजी ने रावण की यह मांग भी मान ली. रावण जब महल के साथ माता पार्वती को भी ले जाने लगा तो माता पार्वती जी को दुःख भी हुआ और क्रोध भी आया.
शिवजी ने पार्वती जी के समक्ष माना कि उनसे गलती हुई है. उन्होंने पार्वती जी से बताया कि त्रेता युग में मैं वानर के रूप में हनुमान का अवतार लूंगा. तुम मेरी पूंछ बन जाना मैं हनुमान के रूप में सीता जी की खोज में इसी सोने के महल में जाऊंगा. तब तुम पूंछ बनकर इस सोने की लंका को जलाकर राख कर देना, इससे रावण को भी अपने किये की सजा मिल जायेगी. इस प्रसंग से यह साबित होता है कि शिवजी के हनुमान के रूप में अवतार लेने का कारण रावण को दंडित करना भी था.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.