Pitru Paksha 2018: पितरों को अंगूठे से जलांजलि अर्पित करने की परंपरा से जुड़ी है यह मान्यता

मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों को संतुष्ट करने के लिए पिंडदान और तर्पण में जो जल व दूध अर्पित किया जाता है उसे हथेली पर रखकर अंगूठे के द्वारा दिया जाता है. इसके साथ ही श्राद्धकर्म के दौरान कुशा से बनी अंगूठी (पवित्री) अनामिका उंगली में धारण करने की परंपरा भी है.

श्राद्धकर्म (Photo Credits: Facebook)

साल के बारह महीने में 16 दिन ऐसे होते हैं जिसे पितृपक्ष,श्राद्धपक्ष या महालय के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, साल के इन्हीं 16 दिनों के लिए पितरों की आत्मा अपने परिजनों से मिलने के लिए धरती पर आती है. इस दौरान पितरों की प्रसन्नता और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए पिंडदान और तर्पण जैसे श्राद्धकर्म किए जाते हैं. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों को संतुष्ट करने के लिए पिंडदान और तर्पण में जो जल व दूध अर्पित किया जाता है उसे हथेली पर रखकर अंगूठे के द्वारा दिया जाता है. इसके साथ ही श्राद्धकर्म के दौरान कुशा से बनी अंगूठी (पवित्री) अनामिका उंगली में धारण करने की परंपरा भी है.

श्राद्धकर्म के दौरान अंगूठे से जल अर्पित करने और अनामिका उंगली में कुशा की अंगूठी धारण करने की इस परंपरा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है, चलिए जानते हैं.

अंगूठे से दी जाती है जलांजलि

श्राद्धकर्म करते समय पिंडदान और तर्पण में पितरों को संतुष्ट करने के लिए जो जल और दूध दिया जाता है उसे हथेली में रखकर अंगूठे के द्वारा दिया जाता है, जिसका धार्मिक महत्व बताया जाता है.

महाभारत और अग्निपुराण के अनुसार, अंगूठे से पितरों को जल अर्पित करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इन ग्रंथों में बताई गई परंपरा के मुताबिक हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है. मान्यता है कि जब अंगूठे से पितरों को जल अर्पित किया जाता है तो वह जल पितृ तीर्थ से होते हुए पिंडों तक पहुंचता है और पितरों को तृप्ति मिलती है. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2018: सर्वपितृ अमावस्या को बन रहा है यह महासंयोग, ऐसे करेंअपने पितरों की विदाई

कुशा से जुड़ी है यह मान्यता

अंगूठे से पितरों को जलांजलि अर्पित करने के अलावा हिंदू धर्म में कुशा के उपयोग को भी बहुत पवित्र माना गया है. कुशा एक खास किस्म की घास है जिसका इस्तेमाल कई कामों में किया जाता है. पितृपक्ष में श्राद्धकर्म करते समय कुशा से बनी अंगूठी को अनामिका उंगली में पहनने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और मूल भाग में भगवान शिव निवास करते हैं.

महाभारत की एक कथा के मुताबिक, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने उस कलश को थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया था, जिसके बाद से कुशा को पवित्र माना जाने लगा. इसलिए श्राद्धकर्म में कुशा की अंगूठी धारण करने का अर्थ यह माना जाता है कि हमने पवित्र होकर अपने पितरों की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण किया है.  यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2018: भारत के इस तीर्थ स्थल पर माता सीता ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान

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