अक्सर शनिवार के दिन सुबह-सबेरे शनि के नाम से भिक्षा मांगने वाले भिक्षुक केवल सरसों के तेल की मांग करते हैं. यहां तक कि शनि शिग्नापुर जैसे शनि मंदिरों में भी सरसों के तेल से ही अभिषेक की परंपरा है. शनिदेव की पूजा में भी सरसों के तेल का ही दीप जलाया जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि सरसों का तेल चढ़ाने से शनि भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. आखिर न्याय के देवता शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाने का क्या औचित्य है, इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है आइये जानते हैं...
हिंदू धर्म में हर देवी देवता की अपनी विशेषता होती है. इनकी पूजा-अर्चना का भी अलग-अलग विधान है. शनि देव के बारे में कहा जाता है कि वह आपके किये हुए कर्मों के अनुरूप फल देते हैं. देवताओं में शनि अकेले ऐसे देवता हैं, जिसकी पूजा-अर्चना करते समय भक्त बहुत सतर्क रहता है, क्योंकि मान्यता है कि शनि देव की पूजा में थोड़ी-सी भी चूक हो जाये तो शनि देव नाराज हो जाते हैं. उनके क्रोध का नतीजा बहुत बुरा होता है.
महाराष्ट्र स्थित शनि शिगनापुर के पुरोहित का कहना है कि शनि के बारे में बडी गलत-गलत भ्रांतियां फैली हुई हैं. शनि भगवान न्याय के देवता हैं, जो इंसान जैसा कर्म करता है, वे उसे वैसा ही फल देते हैं. आइए इस लोकप्रिय पौराणिक कथा के माध्यम से जानें कि भगवान शनि देव को सरसों का तेल क्यों चढ़ाया जाता है?
पौराणिक कथाएं
रावण ने शनि देव को उल्टा क्यों लटकाया
प्रकाण्ड पंडित राक्षसराज रावण हमेशा अपने अहंकार में चूर रहता था. एक बार अहंकार में आकर रावण ने ब्रह्माण्ड के सारे ग्रहों को बंदी बना लिया. इस बंदीगृह में शनिदेव भी बंद थे. रावण ने शनिदेव को बंदीघर में उल्टा लटका दिया था. उसी समय हनुमान जी श्री राम का दूत बनकर लंका गये हुए थे. अपने बल के नशे में चूर रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगवा दिया. रावण की इस हरकत से क्रोधित हो हनुमान जी ने सोने की बनी पूरी लंका को जलाकर राख कर दिया.
इसके बाद सारे ग्रह स्वतंत्र हो गये, लेकिन उल्टा लटके के कारण शनि देव के पूरे शरीर में बहुत पीड़ा हो रही थी. पीड़ा से वह कराह रहे थे. हनुमान जी से शनि की पीड़ा देखी नहीं गई, उन्होंने शनिदेव के पूरे शरीर में सरसों के तेल की मालिश की. तब जाकर शनि देव को आराम मिला. शनि देव ने उसी समय कहा, जो भी व्यक्ति मुझे सच्ची आस्था एवं श्रद्धा के साथ सरसों का तेल चढ़ायेगा, उसे सारे कष्टों से छुटकारा मिलेगा.
हनुमान शनि के बीच क्यों हुआ युद्ध
एक बार शनि देव को अपने बल और पराक्रम पर घमण्ड हो गया था. उसी काल में हनुमान जी के भी बल और पराक्रम की कीर्ति संपूर्ण ब्रह्माण्ड में फैली हुई थी. जब शनि देव को हनुमान जी के बारे में पता चला तो वह अपने पराक्रम को हनुमान जी की तुलना में बेहतर बताने के लिए हनुमान जी के साथ युद्ध कर खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए निकल पड़े. एक जगह उन्हें हनुमान जी अपने प्रभु स्वामी श्रीराम की भक्ति में लीन बैठे दिखे. शनि देव ने उन्हें देखते ही युद्ध करने की चुनौती दी. हनुमान जी ने शनि देव को समझाने की कोशिश की, लेकिन शनि किसी भी कीमत पर हनुमान जी से युद्ध करना चाहते थे. अंततः हनुमान जी और शनिदेव के बीच भयंकर युद्ध हुआ.
लंबे समय तक चले इस युद्ध में शनिदेव हनुमान जी से हारकर घायल बुरी तरह से हो गये. उनके देह पर लगे तमाम जख्मों के कारण उन्हें भयंकर पीड़ा हो रही थी. तब हनुमान जी ने शनिदेव को पीड़ा से मुक्त करने के लिए सरसों का तेल लगाने के लिए दिया. बदन पर तेल लगते ही शनिदेव के बदन का दर्द गायब हो गया. तेल की इस महिमा से प्रसन्न होकर शनि जी ने कहा जो भी मनुष्य मुझे सच्चे मन से सरसों का तेल चढ़ाएगा, मैं उसकी सारी पीड़ा हर लूंगा. कहा जाता है कि इसके बाद से ही शनि देव को सरसों का तेल चढाने की परंपरा की शुरुआत हुई. शनिवार का दिन शनिदेव का दिन होता है. इस दिन शनिदेव पर तेल चढ़ाने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.