Kharmas 2019: कल से शुरू होगा खरमास! एक महीने बाद शुरु होंगे शुभ- कार्य! जानें क्यों होती है इन दिनों सूर्य की शक्ति क्षीण!

सनातन धर्म में किसी भी प्रकार का मंगल कार्य करने से पहले शुभ लग्न, शुभ मुहूर्त एवं ग्रह-नक्षत्रों की चाल देखी जाती है, मान्यता है कि अनुकूल परिस्थितियों में शुभ कार्य करने से कार्य सिद्धि की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन साल में कुछ समय ऐसे भी आते हैं, जब किसी भी प्रकार के शुभ-मंगल कार्य निष्पादित नहीं किए जाते है.

प्रतीकात्मक तस्वीर(Photo Credit: फाइल फोटो)

13 दिसंबर को पौष मास के प्रारंभ होते ही खरमास शुरू हो जाएगा. खरमास (Kharmas 2019) के पूरे माह शादी, सगाई, तिलक, मुंडन, वधु प्रवेश, गृहप्रवेश, गृह निर्माण अथवा कोई भी शुभ कार्य के लिए अपशगुन माना जाता है. अब विवाह एवं अन्य शुभ-मंगल कार्य 14 जनवरी 2020 से शुरू होंगे.

सनातन धर्म में किसी भी प्रकार का मंगल कार्य करने से पहले शुभ लग्न, शुभ मुहूर्त एवं ग्रह-नक्षत्रों की चाल देखी जाती है, मान्यता है कि अनुकूल परिस्थितियों में शुभ कार्य करने से कार्य सिद्धि की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन साल में कुछ समय ऐसे भी आते हैं, जब किसी भी प्रकार के शुभ-मंगल कार्य निष्पादित नहीं किए जाते है, ऐसा ही एक महीना होता है पौष मास से शुरू होनेवाले मलमास का जो पौष कृष्णपक्ष की पहली तिथि से शुरू होकर 14 जनवरी 2020 तक चलेगा. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार गुरु अस्त और धनु संक्रांति खरमास के कारण शुभ मुहूर्त का अभाव रहेगा. इस एक माह की अवधि में समस्त शुभ-मंगल कार्य जैसे विवाह, मुंडन, उद्यापन, गृह निर्माण का प्रारंभ एवं गृह प्रवेश वर्जित रहेंगे.

कैसे लगता है खरमास

ज्योतिषियों के अनुसार शादी-विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे बहुत सारे शुभ कार्यो के लिए सूर्य का प्रबल होना आवश्यक होता है. लेकिन जब सूर्य गुरु की राशि में प्रवेश करता है तो इसकी स्थिति बहुत कमजोर हो जाती है. सूर्य के धनु राशि में गोचर करने से खरमास शुरू हो जाता है. इस पूरे मास लोग भगवद्गीता, रामायण, रामचरित मानस, जैसे आध्यात्मिक ग्रंथ लोगों को दान करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से अभीष्ठ पुण्य की प्राप्ति होती है. खरमास के दरम्यान बहुत से लोग दूर-दराज के तीर्थ यात्राओं पर निकलते हैं.

सूर्य उपासना से मिलता है पुण्य-प्रताप

पूरे खरमास के दौरान जहां शुभ कार्य करने की मनाही होती है, वहीं गंगा अथवा किसी पवित्र नदियों में स्नान ध्यान तथा घरों में अथवा मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान कराये जाते हैं तथा गरीबों एवं ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दिया जाता है. किंतु ऐसे समय में मंगल शहनाई अथवा मंगल गान इत्यादि नहीं किया जाता. इस माह में सभी राशि वालों को सूर्यदेव की उपासना करनी चाहिए.

वैदिक मान्यता

खरमास के संदर्भ में ज्योतिषियों का मानना है कि खरमास के दरम्यान जो भी व्यक्ति दिन में एक समय भोजन करता है, प्रतिदिन मंदिरों में भगवान के दर्शन एवं पूजन करता है, उसे हर जन्म में यश एवं कीर्ति की प्राप्ति होती है तथा कामदेव भांति सुंदर आकर्षण व्यक्तित्व प्राप्त करता है. वामन पुराण में उल्लेखित है कि पौष माह में अन्न आदि का दान करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं.

जानें भिन्न-भिन्न अवधि में क्यों होते हैं शुभ कार्य निषेध

1. पौष मास आरंभ- 13 दिसंबर 2019 से 10 जनवरी 2020 तक

2. गुरु तारा अस्त- 14 दिसंबर 2019 से 9 जनवरी 2020 तक

3. खरमास- 16 दिसंबर 2019 से 14 जनवरी 20202 तक

(उपर्युक्त अवधि अर्थात् 13 दिसंबर 2019 से 14 जनवरी 2020 तक मुहूर्ताभाव रहेगा. अत: इस अवधि में समस्त शुभ कार्य वर्जित रहेंगे.)

खरमास के पीछे की किंवदंती

खर मास को बुरा मास मानने के पीछे भी एक पौराणिक किंवदंती है. खर गधे को कहते हैं. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकलते हैं. इस दौरान सूर्यदेव को कहीं भी एक पल के लिए भी रुकने की इजाजत नहीं होती, लेकिन सूर्य के सातों घोड़े सालों-साल निरंतर दौड़ते रहने से प्यास से व्याकुल हो जाते हैं. उनकी इस स्थिति से निपटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने के लिए रुकते हैं. तभी उन्हें वह प्रतिज्ञा याद आ जाती है कि भले ही घोड़े प्यासे रह जाएं लेकिन यात्रा को कहीं भी रुकने नहीं देना है. वरना सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा. सूर्य भगवान ने इधर-उधर देखा. एक पानी के कुण्ड के आगे उन्होंने दो गधों को देखा, जो अपनी प्यास बुझा रहे थे. उन्हें तुरंत एक उपाय सूझा, दोनों गधों को अपने रथ पर जोत कर सातों घोड़ों को प्यास बुझाने के लिए खोल कर आगे बढ़ गए.

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सूर्य के रथ में जुते दोनों गधे अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे. इससे सूर्य का तेज भी गधों की गति के साथ मद्धिम हो गया. शायद यही वजह है कि पूरे पौष मास के दरम्यान पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है.

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