Ekadasi 2019: मानव जीवन की सफलता के लिए करें श्रीहरि का ध्यान, जानें व्रत-पूजा एवं पौराणिक कथा
हैप्पी उत्पन्ना एकादशी, (फोटो क्रेडिट्स: फाइल फोटो )

Ekadasi 2019: पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी (Ekadashi) का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. साल का अंतिम एकादशी होने के कारण भी इसका महत्व बढ़ जाता है. पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि जो भी व्यक्ति इस एकादशी व्रत और रात्रि जागरण को विधिवत रूप से संपन्न करता है, उसे वर्षों तक तपस्या करने का पुण्य प्राप्त होता है. यह व्रत करने से मानव जीवन सफल होता है. इसीलिए इसे सफला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष सफला एकादशी 22 दिसंबर को मनाया जायेगा. आइये जानें सफला एकादशी के व्रत का महात्म्य, पूजा-विधान एवं इससे संबंधित पौराणिक कथा...

सफला एकादशी का महात्म्य

भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने जनकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया है. गीता में श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने इस तिथि को अपने ही समान बलशाली बताया है. पद्म पुराण में सफला एकादशी व्रत के महात्म्य का विस्तृत वर्णन है. भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार सफला एकादशी व्रत के देवता श्री नारायण हैं.

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जो भी स्त्री अथवा पुरुष सफला एकादशी का व्रत एवं श्रीहरि की पूजा-अर्चना करता है, और रात्रि जागरण करते हुए श्रीहरि की कथा-कीर्तन करता है, उसका व्रत अवश्य सफल होता है. श्रीहरि उस पर प्रसन्न होते हैं. इनकी पूजा-आराधना करने वाले को किसी और पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि ये अपने भक्तों के सभी मनोरथों की पूर्ति कर उन्हें विष्णुलोक पहुंचाती हैं.

पूजा-अर्चना

सफला एकादशी के दिन स्नान-ध्यान के पश्चात दीपदान विशेष महत्त्व बताया गया है. इस दिन व्रत रखने वाले को श्रीहरि की प्रतिमा को 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मन्त्र के जाप का उच्चारण करते हुए पुष्प, रोली, गंध, अक्षत, जनेऊ, नारियल, धूप-दीप, फल एवं मिष्ठान चढ़ाते हुए वस्त्र अर्पित करके कपूर से आरती उतारें.

जो लोग किसी कारणवश यह व्रत करने में असमर्थ महसूस करते हैं, उन्हें इस दिन स्नान करके भगवान श्रीहरि की पूजा जरूर करनी चाहिए. संध्याकाल में श्रीहरि की आरती उतारें. इस दिन चावल से बने व्यंजन, लहसुन, प्याज, मांस एवं मदिरा का सेवन कत्तई नहीं करनी चाहिए.

पौराणिक कथा

प्राचीनकाल में राजा माहिष्मत का ज्येष्ठ पुत्र सदैव पाप कार्यों में लिप्त रहते हुए देवी-देवताओं की निंदा करता था. पुत्र के पापाचार को देखकर राजा ने उसका नाम 'लुम्भक' रख दिया और उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया. पापी लुम्भक वन में प्रतिदिन मांस तथा फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा. उसने पीपल के वृक्ष के नीचे अपना आवास बनाया हुआ था. पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह अति ठंड के कारण मृतप्राय-सा हो गया. अगले दिन सफला एकादशी को दोपहर में सूर्य देव के ताप से उसे होश आया.

भूख से अति दुर्बल होने के बाद लुम्भक जब तक अपने खाने के लिए फल एकत्र करके लाता, सूर्यदेव अस्तांचल की ओर प्रयाण कर चुके थे. अति कमजोर हो चुके लुंम्भक ने पीपल के वृक्ष की जड़ के समीप बैठकर श्री हरि से निवेदन किया कि वे इन फलों का सेवन करने की इजाजत दें. इस तरह जानें-अनजाने लुम्बक ने सफला एकादशी का व्रत भी कर लिया और श्रीहरि का ध्यान भी. इसका सुपरिणाम उसे यह मिला कि भगवान श्रीहरि उस पर प्रसन्न हो गये, उसे दिव्य स्वरूप, राज्य, पुत्र आदि सब कुछ प्राप्त हो गया.