जिन दंपतियों को संतान-प्राप्ति में किसी तरह की समस्याएं आ रही हैं, हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार उनके लिए पौष मास शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. गौरतलब है कि पुत्रदा एकादशी साल में दो बार पड़ती है, एक पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को और दूसरा श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को. एकादशी का यह व्रत पुत्र प्राप्ति की कामनाओं की पूर्ति तो करता ही है, साथ ही अन्य कई तरह के भी पुण्य लाभ मिलता है. इस दिन भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना करने से जातक के जीवन के कई संकटों से मुक्ति मिलती है. आइये जानते हैं इस वर्ष पुत्रदा एकादशी पर संतान प्राप्ति के योग्य बन रहे ब्रह्म योग एवं उसी के अनुरूप पूजा अनुष्ठान करने के बारे में.
पुत्रदा एकादशी 2024 शुभ मुहूर्त एवं ब्रह्म योग
पौष मास शुक्ल पक्ष एकादशी प्रारंभः 07.26 PM (20 जनवरी 2024, शनिवार)
पौष माह शुक्ल पक्ष एकादशी समाप्तः 07.26 PM (21 जनवरी 2024, रविवार)
पारण कालः सूर्योदय से प्रारंभ हो जाएगा (22 जनवरी 2024, सोमवार)
उदया तिथि के अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा.
ब्रह्म योग का निर्माण
ज्योतिषियों के अनुसार संतान प्राप्ति के लिए ब्रह्मयोग का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस योग में भगवान विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा अनुष्ठान करने से संतान प्राप्ति की संभावनाएं फलदायी साबित हो सकती हैं.
ब्रह्मयोगः 09.48 AM (21 जनवरी 2024) से 08.47 AM (22 जनवरी 2024)
इससे पूर्व शुक्ल योग का भी निर्माण हो रहा है. इस दिन भद्रा स्वर्ग में रहेंगी. भद्रा योग का निर्माण सुबह 07.23 AM से शाम 07.26 PM तक
पुत्रदा एकादशी व्रत का महात्म्य
पौराणिक ग्रंथों एवं महाभारत में पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था कि पौष माह की पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान की इच्छा रखने वालों की मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है. इसके साथ ही भगवान श्रीकृष्ण ने इस रहस्य का भी उजागर किया था कि संतान की इच्छा पूरी करने वाली यह एकादशी व्रत एवं श्रीहरि की पूजा करने वाले जातकों के लिए मोक्ष का द्वार को खोल देती है, साथ ही व्यक्ति के सारे पापों को भी नष्ट करती है.
पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान कर पीले रंग का वस्त्र धारण करें. मंदिर की साफ-सफाई करें और संपूर्ण मंदिर में गंगाजल का छिड़काव कर उसे पूजा योग्य शुद्ध करें. एक छोटी चौकी पर पीला या लाल कपड़ा बिछाकर श्रीहरी एवं देवी लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें. शुद्ध घी का दीप एवं धूप जलाएं. भगवान विष्णु को हल्दी, रोली से तिलक करें. पान, सुपारी, कमल पुष्प, पीला पुष्प, सिंदूर, तुलसी दल अर्पित करने के बाद दूध से बनी मिठाई, पंचमेवा एवं खीर का भोग लगाएं. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें, विष्णु चालीसा पढ़ने के बाद उनकी आरती उतारें. अंत में लोगों में प्रसाद का वितरण करें.
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में भद्रावती नगर में अत्यंत दानी एवं बहादुर राजा सुकेतु मान राज्य करते थे. सुकेतु मान के व्यवहार से सभी लोग प्रसन्न थे. लेकिन सुकेतु मान सदा चिंतित रहते थे, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी. एक दिन चिंतित मन से राजा जंगल की ओर निकल गए. वहां उनकी मुलाकात एक ऋषि से हुई. उन्होंने ऋषि को प्रणाम किया. ऋषि को राजा की चिंता का अहसास हो गया. राजा ने ऋषि से प्रार्थना की, - हे ऋषिवर नारायण की कृपा से मेरे पास सब कुछ है, मगर कोई संतान नहीं होने से चिंतित हूं कि मेरा पिंडदान और पितरों को तर्पण कौन देगा?
ऋषि ने कहा, - पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत-पूजा करें, आपको अवश्य संतान प्राप्ति होगी. राजा ने पत्नी के साथ पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा. शीघ्र ही सुकेतु मान को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई. इस खबर से भद्रावती नगर में खुशी दौड़ गई.