हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है. आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को दूसरा प्रदोष व्रत है. यह प्रदोष गुरूवार को होने के कारण इसे गुरु प्रदोष कहते हैं. गुरु प्रदोष व्रत जुलाई माह का अंतिम प्रदोष व्रत है. प्रदोष व्रत पर भगवान शिव की पूजा का विधान है. प्रदोष व्रत की पूजा सूर्यास्त के बाद शुरू होती है. बहुत से लोग इस दिन रुद्राभिषेक भी करवा सकते हैं.
प्रदोष व्रत का महत्व
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की पूजा-उपासना से जातक को आरोग्यता, गुण, ऐश्वर्य, धन, समृद्धि आदि का आशीर्वाद प्राप्त होता है, एवं कुंडली में उत्पन्न सारे ग्रह-दोष दूर हो जाते हैं, जीवन में खुशहाली आती है. प्रदोष व्रत के जातकों को इस दिन दान-पुण्य भी करना चाहिए. भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, परिणाम स्वरूप जातक को अक्षय पुण्य प्राप्त होता है. गुरु प्रदोष व्रत रखनेवाले जातकों से शत्रु पराजित होते हैं. जिनके विवाह में कोई बाधा आ रही है, तो शिवजी की कृपा सारी बाधाएं कट जाती हैं. यह भी पढ़ें : Guru Pradosh Vrat 2024: साल के पहले गुरु प्रदोष पर बनेंगे इतने शुभ योग! जानें हर योग का क्या है पुण्य-फल!
गुरू प्रदोष की मूल तिथि एवं शुभ मुहूर्त?
आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी प्रारंभः 08.44 PM (18 जुलाई 2024)
आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी समाप्तः 07.41 PM (19 जुलाई 2024)
प्रदोष काल की पूजा संध्याकाल में होती है, इसलिए यह व्रत 18 जुलाई 2024 को रखा जाएगा.
शिव पूजा का शुभ मुहूर्त 08.44 PM से 09.23 PM तक
गुरु प्रदोष की पूजा-विधि
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करें. अब हाथ में गंगाजल, पुष्प एवं अक्षत लेकर लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें. इसके बाद संध्याकाल में शुभ मुहूर्त पर मंदिर में गोधूलि बेला में धूप-दीप प्रज्वलित करें. इसके पश्चात शिव मंदिर या घर में भगवान शिव का दूध, दही, शहद, शुद्ध घी एवं शक्कर निर्मित पंचामृत से अभिषेक करें. साथ ही निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा जारी रखें.
‘ॐ नमः शिवाय’
इसके पश्चात शिवलिंग पर बिल्व पत्र, भांग पुष्प, एवं चंदन से शिवलिंग को श्रृंगार करें. इसके पश्चात शिवजी एवं देवी पार्वती की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें. पूजा पूरी होने के पश्चात गुरू प्रदोष व्रत की कथा अवश्य सुनें. पूजा का समापन भगवान शिव एवं देवी पार्वती की आरती उतारें.
गुरु प्रदोष व्रत कथा
एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में घमासान संग्राम हुआ. देवताओं ने दैत्यों का समूल नाश कर दिया. वृत्रासुर ने आसुरी माया से विकराल रूप धरकर देवताओं पर आक्रमण कर दिया. सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति के पास पहुंचे. बृहस्पति ने कहा, वृत्रासुर पूर्व जन्म में चित्ररथ नामक राजा था. एक बार उसने कैलाश पर्वत पर शिवजी एवं देवी पार्वती को देख उपहास उड़ाते हुए कहा, मोह-माया में फंसे होने से हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं. शिवजी बोले, मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम मेरा उपहास उड़ाते हो! देवी पार्वती ने क्रोधित होकर कहा, तूने महेश्वर के साथ मेरा भी उपहास उड़ाया है. मेरे श्राप से तू राक्षस बनेगा. चित्ररथ तुरंत राक्षस बन गया. मगर शिवजी की तपस्या कर उनसे वरदान हासिल कर वह त्वष्टा ऋषि के घर वृत्रासुर के नाम से जन्म लिया. गुरू वृहस्पति बोले, हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर भगवान शिव को प्रसन्न करो. देवराज ने बृहस्पति प्रदोष व्रत किया. व्रत के प्रताप से इन्द्र ने वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर, स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया.