व्रत एवं पर्वों के संदर्भ में कार्तिक मास का विशेष महत्व है. इसी में एक है देवउठनी एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी एवं प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार चातुर्मास के लिए योग निद्रा में जाने के पश्चात कार्तिक मास शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन श्रीहरि जागृत अवस्था में आते हैं. अगले दिन कार्तिक मास की द्वाद्वशी को श्रीहरि के शालिग्राम स्वरूप से देवी तुलसी का पारंपरिक विवाह कराने की प्रथा है. लेकिन एकादशी तिथि को लेकर जो दुविधा उत्पन्न हुई है, उससे शालिग्राम-तुलसी विवाह की तिथि को लेकर भी दुविधा हो रही है. यहां ज्योतिषाचार्य श्री भागवत जी महाराज बता रहे हैं कि इस वर्ष किस तिथि और मुहूर्त में प्रबोधिनी एकादशी व्रत और तुलसी विवाह सम्पन्न होगा.
देव उठनी एकादशी व्रत की महिमा!
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीहरि की पूजा एवं व्रत की परंपरा निभाई जाती है. अन्य एकादशियों से यह एकादशी इसलिए विशेष महत्व रखती, क्योंकि जगत पालक भगवान श्रीहरि चातुर्मास के चार मास बाद इसी दिन योग निद्रा से बाहर आये थे, और भगवान शिव से सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी वापस ली थी. आचार्य भागवत के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी के दिन श्रद्धालुओं को पीले रंग के परिधान पहनकर श्रीहरि के साथ माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से मनुष्य को जीवन के सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है, और घर-परिवार का सुख भोग कर वह मोक्ष प्राप्त करता है. यह भी पढ़ें : Amla Navami 2023 Wishes: आंवला नवमी की इन हिंदी Quotes, WhatsApp Messages, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं
क्या है प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह की सही तिथि
कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी प्रारंभः 11.03 PM (22 नवंबर 2023, बुधवार) से
कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी समाप्तः 09.01 PM (23 नवंबर 2023, गुरूवार) तक
आचार्य भागवत के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी चूंकि उदयकाल में मनाई जाती है, और तुलसी विवाह प्रदोष काल में सम्पन्न की जाती है. इस तरह दोनों ही पर्व एक ही दिन यानी 23 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी.
प्रबोधिनी एकादशी पूजा विधि
प्रबोधिनी एकादशी पर व्रत-पूजा करने वालों को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान करें. तत्पश्चात विष्णुजी का ध्यान कर हाथ में तुलसी एवं जल लेकर प्रबोधिनी एकादशी के व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. जातक पीले रंग का वस्त्र धारण कर विष्णु-लक्ष्मीजी की पूजा करे. मंदिर में विष्णु जी और लक्ष्मी जी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करवाकर धूप दीप प्रज्वलित करें, अपनी मनोकामना व्यक्त करें. अब भगवान को पीला चंदन, अक्षत, रोली, सिंदूर, बताशा, पान, सुपारी के साथ दूर्वा चढ़ाएं. निम्न मंत्र का 108 जाप करें.
ॐ अच्युताय नमः
ताजे फलों एवं दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं. इसके बाद विष्णु जी की आरती उतारें. पूजा के पश्चात ब्राह्मण को भोजन के साथ दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें.