भाद्रपद माह की अमावस्या को पिथौरी अमावस्या के नाम से मनाया जाता है. इस दिन मुख्य रूप से माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. इस अवसर पर विवाहित महिलाएं अपने बच्चों एवं पति की अच्छी सेहत और दीर्घायु के लिए व्रत एवं पूजा करती हैं. उत्तर भारत में इसे कुशाग्रहणी अमावस्या कहते हैं, आंध्र प्रदेश, ओडिशा,कर्नाटक और तमिलनाडु में इसे पोला के नाम से मनाया जाता है. दक्षिण भारत में इस दिन देवी पोलेराम्मा की पूजा होती है, जो वस्तुतः माँ पार्वती का स्वरूप हैं. पिथौरी अमावस्या पर पितरों को तर्पण एवं पिंडदान का भी विधान है. इस वर्ष पिठोरी अमावस्या 26 अगस्त 2022, शुक्रवार के दिन मनाया जायेगा. आइये जानें क्या है पिठोरी अमावस्या के बारे में विस्तार से...
कौन हैं पिथौरी देवी?
पिथौरी अमावस्या के दिन विशेष रूप से गर्भवती स्त्रियां अपने गर्भस्थ शिशु की रक्षा के लिए व्रत एवं पूजा करती हैं. इस दिन निसंतान दंपत्ति भी संतान के लिए पिथौरी देवी की पूजा करते हैं. पिथौरी देवी वस्तुतः माता पार्वती का ही स्वरूप हैं. इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं माता पार्वती की पूजा के समय नये वस्त्र, सुहाग की वस्तुएं माँ को अर्पित करती हैं. पूजा स्थल को लाल फूलों से सजाया जाता है. मान्यता है कि सच्ची श्रद्धा एवं विधि-विधान से पूजा-व्रत करने से मां पार्वती प्रसन्न होकर जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं.
अमावस्या तिथि एवं पूजा का शुभ मुहूर्त
अमावस्या प्रारम्भ: 12.23 P.M. (26 अगस्त 2022)
अमावस्या समाप्त: 01.46 PM (27 अगस्त 2022)
पिथौरी पूजा का शुभ मुहूर्त: 06.50 P.M. से 09.03 PM तक
व्रत एवं पूजा विधि
यह व्रत एवं पूजा संतान की अच्छी सेहत एवं दीर्घायु के लिए रखा जाता है. इस व्रत को रखने वाली मांओं को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर सूर्य को जल अर्पित करते हुए संतान की दीर्घायु की प्रार्थना करें. इसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार गीले आटे की 64 पिण्ड को मूर्ति का स्वरूप दिया जाता है, इन पिण्ड को माँ पार्वती का स्वरूप मानकर उनकी विधिवत तरीके से पूजा करते हैं. देवी को प्रसाद में नारियल एवं घर में बने सात्विक भोजन का भोग लगाएं. पूजा सम्पन्न होने के पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन कर व्रत का पारण करें.
पितरों को पिंडदान एवं तर्पण का दिन
पिथौरी अमावस्या के दिन पितृ दोष से पीड़ित लोग पिंडदान एवं तर्पण करते हैं. पितरों के नाम पर दान करना चाहिए. इस दिन सूर्योदय के साथ ही स्नान-ध्यान कर पूरी एवं हलवा बनाकर गरीबों को बांटना चाहिए. परिवार की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. बहुत से लोग इस दिन योगिनी पूजा भी करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से आपके किसी भी कार्य में आ रही बाधाएं समाप्त होती हैं, मानसिक शांति मिलती है और अशुभ ग्रहों के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है. इस दिन ब्राह्मण को भोजन कराना पुण्यदायी होता है.
पिठोरी अमावस्या व्रत कथा
प्राचीन काल में सात भाई अपने-अपने बच्चों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे थे. एक दिन किसी के कहने पर सातों बहुओं ने अपनी संतान की सुरक्षा हेतु पिथौरी अमावस्या पर व्रत की योजना बनाई. लेकिन भाद्रपद के दिन पूजा-व्रत के बाद बड़ी बहु के पुत्र का देहांत हो गया. सात साल तक ऐसा ही चलता रहा. मगर बड़ी बहु पुत्रों के शवों को अज्ञात जगह छिपाकर रखी थी. कहते हैं कि उस गांव की पहरेदारी पोलेराम्मा करती थीं. एक रात पोलेराम्मा ने बड़ी बहु को विलाप करते देखा, तो उसका कष्ट पूछा. बहु ने सारी बातें बताई. पोलेराम्मा ने कहा, अपने पुत्रों के शव पर हल्दी छिड़क दे. बहु ने ऐसा करके घर पहुंची तो यह देखकर उसके हर्ष का ठिकाना नहीं रहा कि उसके सातों बेटे माँ का इंतजार कर रहे हैं. तभी से दक्षिण भारत पिठोरी अमावस्या को देवी पोलेराम्मा की पूजा की जाती है.