Pausha Vinayaka Chaturthi 2022: कब है साल का आखिरी विनायक चतुर्थी?  दो विशेष योगों में इन मंत्रों के साथ करेंगे पूजा तो होगी सारी मनोकामनाएं पूरी!
Pausha Vinayaka Chaturthi(Photo Credits: File Photo )

सनातन धर्म में गणेशजी की उपासना सभी देवी-देवताओं में सर्वोपरि मानी जाती है. किसी भी प्रकार के शुभ-मंगल कार्यों की शुरुआत गणेशजी की पूजा से होती है. हिंदी कैलेंडर में पड़ने वाली दोनों चतुर्थी ( संकष्टि एवं विनायक चतुर्थी) भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है. इन चतुर्थियों में गणेश जी का व्रत एवं पूजा करने से सारे विघ्न दूर होते हैं और घर में सुख एवं शांति के साथ समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस साल अंतिम विनायक चतुर्थी का व्रत 26 दिसंबर, 2022, सोमवार को रखा जायेगा. आइये जानें साल की यह अंतिम विनायक चतुर्थी क्यों बहुत खास मानी जा रही है.

पौष विनायक चतुर्थी का महात्म्य

हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी व्रत (Vinayaka Chaturthi) का विशेष महत्व है. विनायक को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत को करने से भगवान श्रीगणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है. साल का यह अंतिम विनायक चतुर्थी विशेष ग्रहों के कारण इसका काफी महात्म्य बताया जा रहा है. इस दिन दो बेहद शुभ योगों का निर्माण हो रहा है. ये हैं सर्वार्थ सिद्धि योग एवं रवि योग. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सर्वार्थ सिद्धि योग में किये गये सारे कार्य सफल होते हैं, जबकि रवि योग में किये गये कार्यों के रास्ते में पड़ने वाले अमंगल एवं विघ्न दूर होते हैं. जानें दोनों विशेष योगों का समय. यह भी पढ़ें : Merry Christmas & New Year Wishes: मेरी क्रिसमस के साथ कहें हैप्पी न्यू ईयर! शेयर करें ये WhatsApp Messages, GIF Images और Greetings

विनायक चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त एवं विशेष योग

पूजा का मुहूर्तः 11.20 AM से 01.24 PM तक

सर्वार्थ सिद्धि योगः 07.12 AM से 04.42 PM (26 दिसंबर) तक

रवि योगः 07.12 AM से 04.42 PM (26 दिसंबर) तक

भद्रा और पंचक का योग

विनायक चतुर्थी यानी 26 दिसंबर 2022 के दिन भद्रा एवं पंचक भी लग रहा है. भद्रा एवं पंचक काल में शुभ कार्य करने से बचना चाहिए. आइये जानें भद्रा एवं पंचक का समय क्या है.

भद्राः 03.11 PM (26 दिसंबर 2022) से 01.37 AM (27 दिसंबर 2022) तक

पंचकः 03.31 AM (27 दिसंबर 2022) से 07.12 AM तक

पौष विनायक चतुर्थी की पूजा विधि

विनायक चतुर्थी के दिन प्रातः उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजा स्थान की साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़कें. भगवान गणेश को पीला वस्त्र पहनाएं. प्रतिमा के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें और सिंदूर से गणेश जी का तिलक करें, लाल पुष्प अर्पित करें. इसके बाद विघ्नहर्ता श्री गणेश को 21 दूर्वा की गांठ अर्पित करते हुए निम्न मंत्रों का जाप करें.

* वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ: ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा ।।

* नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं ।

गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च ।।

* गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ।।

* सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।

सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

उपयुक्त मंत्रों के साथ गणेश जी की पूजा करने से सारे विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं. इसके बाद गणेश जी को शुद्ध घी के मोतीचूर के लड्डू एवं मोदक का भोग लगाएं. पूजा पूरी करने के बाद गणेश जी की आरती उतारें, अंत में पूजा में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा मांगें.