Parsuram Jayanti 2022: परशुराम को क्यों चिरंजीवी माना जाता है? जानें क्या कहता है कल्कि पुराण? परशुराम से जुड़े ऐसे ही कुछ  रोचक प्रसंग!
परशुराम जयंती (Photo Credits: File Image)

भागवत पुराण के अनुसार वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया के दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से परशुराम (Parsuram) ने जन्म लिया था. विद्वानों के अनुसार अपने आक्रामक तेवर के लिए प्रख्यात परशुराम का जन्म पृथ्वी से बुरी शक्तियों को मिटाने और पृथ्वी पर शांति स्थापित करने के लिए हुआ था. विष्णु जी के इस छठे अवतार ने पापी, हत्यारे, विनाशकारी और अधर्मी राजाओं का समूल नाश कर पृथ्वी की रक्षा की थी, और आज भी वे सशरीर पृथ्वी पर मौजूद हैं. परशुराम जयंती 3 मई दिन मंगलवार 2022 को मनाई जायेगी. आइये जानें परशुराम के संदर्भ में कुछ रोचक एवं प्रेरक प्रसंग.

कैसे पड़ा परशुराम नाम?

परशुराम दो शब्दों के परशु और राम से बना है. परशु अर्थात फरसा धारण करने वाले राम, जो आदर्श पुरुष भगवान श्रीराम से एकदम भिन्न हैं. इसके अलावा ये कुछ अन्य नामों से भी जाने जाते हैं. उदाहरण के लिए रामभद्र यानी कृपालु राम, भार्गव यानी भृगु के वंशज, भृगुपति यानी भृगु वंश के भगवान, भृगुवंशी यानी वह जो भृगु वंश से संबंधित हैं. जमदग्नि का आशय महर्षि जमदग्नि के पुत्र परशुराम

श्रीराम से क्यों छमा याचना की परशुराम ने?

रामायण के अनुसार श्रीराम ने सीता स्वयंवर में उनके गुरु शिवजी का धनुष तोड़ दिया था, इससे वे श्रीराम से अत्यंत रुष्ट थे. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि एक आम इंसान शिवजी का धनुष तोड़ सकता है. उन्होंने श्री राम की शक्ति परखने के लिए शिवजी का शारंग धनुष देकर प्रत्यंचा चढ़ाने का आदेश दिया. श्री राम ने धनुष पर आसानी से प्रत्यंचा चढ़ाकर परशुराम से पूछा कि इस घातक बाण को मैं किस पर छोड़ूं. आप श्रेष्ठजन हैं, इसलिए आप पर नहीं छोड़ सकता. परशुराम समझ गये कि यह कोई साधारण मानव नहीं है. परशुराम ने हाथ जोड़कर कहा, आप निश्चित रूप से भगवान विष्णु हैं. मैं आपका सेवक हूं. मेरी छमा याचना स्वीकार कीजिये.

आज भी पृथ्वी पर सशरीर उपस्थित हैं परशुराम!

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी की तरह भगवान परशुराम भी चिरंजीवी हैं. आज भी वे पृथ्वी पर कहीं ना कहीं मौजूद हैं. विष्णु पुराण के अनुसार, परशुराम को भगवान शिव ने प्रशिक्षित किया था और रुद्रांश (स्वयं भगवान शिव के तत्व) के साथ दीक्षा दी थी. मान्यता है कि रुद्रांश पाने वालों को केवल शिव ही मार सकते हैं. इसलिए वह अमर हैं. सतयुग और त्रेतायुग में उनकी उपस्थिति तो धर्म ग्रंथों में भी वर्णित है. कल्कि पुराण में भी उल्लेखित है कि कलयुग में विष्णुजी कल्कि के रूप में अवतार लेंगे, तब उन्हें परशुराम ही अस्त्र और शस्त्र की विद्या सिखायेंगे.

इसलिए परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का विनाश किया था!

परशुराम के पिता जमदग्नि के पास भगवान इंद्र द्वारा उपहार में दी गई एक दिव्य गाय थी, जो पल भर में असंख्य मेहमानों को स्वादिष्ट व्यंजन करवा सकती थी. तब क्षत्रिय राजा कार्तवीर्य ने वह दिव्य गाय चुरा ली. तब परशुराम ने कार्तवीर्य का वध कर गाय छुड़ा लाये. इससे क्रोधित होकर कार्तीवीर्य के पुत्र ने जमदग्नि की हत्या कर दी. उन दिनों छत्रियों का अत्याचार पूरी पृथ्वी पर बढ़ने लगा था. परशुराम अपने पिता से बहुत प्यार करते थे. उन्हें जब पिता की मृत्यु की खबर मिली तो उन्होंने हाथ में फरसा उठाकर संकल्प लिया कि वे पृथ्वी से छत्रियों को खाली कर देंगे. कहा जाता है कि इस संकल्प को पूरा करने के लिए परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का संहार करने के लिए फरसा उठाया.