अक्सर सवाल किये जाते हैं कि चातुर्मास काल में जब भगवान विष्णु योग-निद्रा में लीन होते हैं, तो ऐसी स्थिति में क्या उनकी पूजा एवं व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है? इस संदर्भ में ज्योतिष शास्त्री पंडित सुनील दवे का कहना था कि चातुर्मास काल में भगवान विष्णु, सूर्यदेव, मंगलदेव, माँ दुर्गा एवं हनुमानजी की पूजा करने से दुगना पुण्य प्राप्त होता है. मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन विष्णुजी के वामन अवतार की पूजा करने से घर में खुशहाली आती है, तनाव से मिटता है, तथा सारे पाप नष्ट हो जाते है. भाद्रपद शुक्लपक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 6 अगस्त 2022. मंगलवार को परिवर्तिनी एकादशी मनाई जायेगी.
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व
पद्म पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत मोक्ष प्रदान करता है. भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से इस व्रत का महात्म्य बताया था, कि परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखनेवालों के सारे पाप भगवान विष्णु की कृपा से समाप्त हो जाते हैं. बहुत सी जगहों पर इसे जल झूलन एकादशी अथवा पद्म एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. व्रती को पूजा के अंत में परिवर्तिनी एकादशी की कथा अवश्य सुननी चाहिए.
परिवर्तिनी एकादशी (6 सितंबर 2022) शुभ मुहूर्त
भाद्रपद एकादशी प्रारंभः 05.54 A.M. (06 सितंबर 2022)
भाद्रपद एकादशी समाप्तः सुबह 03.04 A.M. (07 सितंबर 2022)
पारण का समयः सुबह 08.19 A.M. से 08.33 A.M. (07 सितंबर 2022) तक
परिवर्तिनी एकादशी पर बन रहे हैं ये चार शुभ योग
इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी पर कई शुभ योगों के बनने से इस एकादशी का महत्व कई गुना ज्यादा बताया जा रहा है. ये चार योग हैं आयुष्मान योग, रवि योग, त्रिपुष्कर योग एवं सौभाग्य योग. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार इन योगों के संयोंग में भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना शुभ फलों की प्राप्ति होती है. आपका हर कार्य संपूर्णता एवं सफलता के साथ सम्पन्न होता है.
आयुष्मान योग 11.28 A.M. (5 सितंबर 2022) से 08.16 A.M.(6 सितंबर 2022) तक
सौभाग्य योगः 08:16 A.M. (6 सितंबर 2022) से 04.50 A.M.(7 सितंबर 2022) तक
रवि योगः 06.08 A.M. से 06.09 PM (6 सितंबर 2022) तक
त्रिपुष्कर योगः 03.04 A.M. से 06.09 A.M. (7 सितंबर 2022) तक
व्रत एवं पूजा के नियम
एकादशी व्रत वस्तुतः दशमी की शाम से शुरू हो जाता है. अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि के पश्चात सूर्य को जल अर्पित करें, स्वच्छ वस्त्र धारण कर विष्णुजी का ध्यान करें और व्रत तथा पूजा का संकल्प लें, मनोकामनाएं व्यक्त करें. शुभ मुहूर्त के अनुरूप पूजाघर के सामने पूर्व अथवा पश्चिम दिशा में मुंह कर बैठें, एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं. इस पर विष्णुजी की प्रतिमा विराजित करें और धूप दीप प्रज्वलित कर विष्णुजी का आह्वान मंत्र पढ़ें.
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।
अब विष्णुजी को रोली अक्षत का तिलक लगाएं. फूलों का हार एवं फूल अर्पित करें. मौसमी फल एवं दूध से बना मिष्ठान अर्पित करें. अंत में विष्णुजी की आरती उतारें और लोगों को प्रसाद का वितरण करें. अगले दिन स्नानादि से निवृत्त होकर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर विदा करें और व्रत का पारण करें.
व्रत कथा
त्रेतायुग में बलि नामक असुर था. वह सदा धर्म-कर्म एवं दान में लीन रहता, लोगों की सेवा-मदद करता था. अपने कठोर तप से वह इंद्र के समकक्ष पहुंच गया. यह देख इंद्र समेत सभी देवता चिंतित होकर विष्णुजी के पास पहुंचे. उन्हें अपनी व्यथा बताई. विष्णुजी ने वामन रूप में अवतार लेकर बलि के पास पहुंचे. बलि ने वामन का आदर-सत्कार के बाद विदा करते समय कुछ मांगने के लिए कहा. वामन ने तीन पग जमीन मांगी. बलि के हां कहने पर वामनजी ने एक पग में पृथ्वी, दूसरे से स्वर्ग और जब तीसरा पग उठाया तो बलि ने अपना सिर आगे कर दिया. बलि की दान भावना से प्रभावित होकर विष्णुजी ने उसे पाताललोक का राजा बना दिया. इस तरह इंद्र के भय को दूर किया.