Naraka Chaturdashi 2023 Date: कब और क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी? जानें कितने दीप जलाएं यम के नाम!
Narak Chaturdashi

पांच दिवसीय मुख्य दिवाली के एक दिन पूर्व पड़ने वाले नरक चतुर्दशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस दिन को काली चौदस, रूप चौदस एवं नरक निवारण चतुर्दशी एवं छोटी दिवाली आदि के नाम से भी मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 12 नवंबर 2023, रविवार को मनाया जाएगा. इस दिन देवी लक्ष्मी एवं नरक के देव यमराज जी की पूजा का विधान है. मान्यता है कि जिन घरों में नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीप प्रज्वलित कर उनकी पूजा की जाती है, उस घर में आकस्मिक मृत्यु नहीं होती. आइये जानते हैं, नरक चतुर्दशी के महात्म्य, मुहूर्त, परंपरा एवं पूजा-विधि के बारे में विस्तार से...

नरक चतुर्दशी की मूल तिथि एवं अभ्यंग स्नान मुहूर्त

चतुर्दशी प्रारंभः 01.57 PM (11 नवंबर 2023) से

चतुर्दशी समाप्तः 02.44 PM (12 नवंबर 2023) तक

अभ्यंग स्नान मुहूर्तः 05.28 AM से 06.41 AM (कुल अवधि 1 घंटा 13 मिनट)

नरक चतुर्दशी चंद्रोदय काल 05.28 AM

नरक चतुर्दशी पर कितने दीये जलाएं

नरक चतुर्दशी पर नरक के देव यमराज के नाम से दीया जलाने की परंपरा है. सूर्यास्त के पश्चात 05.27 PM से पूर्व यमराज जी के नाम कुल 14 दीपक दक्षिण दिशा की ओर मुख करके प्रज्वलित करते हैं. दीप प्रज्वलित करते समय हाथ जोड़कर भगवान यमराज से अपने और अपने परिजनों की दीर्घायु एवं अच्छी सेहत के लिए कामना करते हैं. इन दीयों को घर के पिछवाड़े हिस्से में रखा जाता है. यह भी पढ़ें : Karwa Chauth Special Dance: करवा चौथ पर महिलाओं ने गली में आज चांद निकला गाने पर किया डांस, देखें वीडियो

नरक चतुर्दशी अशुभ नहीं शुभ दिन है

नरक चतुर्दशी को कुछ लोग नकारात्मक नजरिये से देखते हैं, जबकि दिवाली से एक दिन पूर्व मनाया जाने वाला यह पर्व अत्यंत शुभ पर्व माना जाता है, क्योंकि यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण, उनकी पत्नी सत्यभामा ने देवी काली की मदद से अत्यंत बलशाली राक्षस नरकासुर का वध कर पृथ्वी के प्राणियों को भयमुक्त किया था, और नरकासुर द्वारा बंधक बनाई गई 16 हजार कन्याओं को मुक्त कराया था. जब उन कन्याओं ने भगवान कृष्ण से कहा कि अब उनसे कौन विवाह करेगा, तब कृष्ण जी ने उन सभी कन्याओं से विवाह रचाकर उन्हें अपनी पत्नी का दर्जा दिलाया था. ऐसी मान्यता है कि इस उपलक्ष्य में इन सभी कन्याओं ने दीपों की बारात सजाई थी. इस दिन पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में देवी काली की पूजा विधि-विधान से की जाती है.