जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है महावीर जयंती. चैत्र मास की त्रयोदशी के दिन मनाये जाने वाले इस महापर्व पर लोग शांति और सद्भाव का पालन करते हुए भगवान महावीर की शिक्षाओं एवं उपदेशों का प्रचार करते हैं. इस दिन देश ही नहीं दुनिया भर में शांति जुलूस निकाला जाता है, जिसमें अधिकांश जैन परिवार शामिल होता है. जैन धर्म के अनुसार यह पर्व भगवान महावीर जयंती के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है, जो जैन धर्म के संस्थापक और 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष भगवान महावीर की 2621वीं जयंती 4 अप्रैल 2023, मंगलवार के दिन मनाई जाएगी. आइये जानते हैं भगवान महावीर के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां.
महावीर जयंती का महत्व
जैन और हिंदू धर्म में महावीर जयंती का विशेष महत्व वर्णित है. हिंदू धर्म के अनुसार राजा सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के शासनकाल में इनका जन्म हुआ था. मान्यता है कि रानी त्रिशला को इनके जन्म से पंद्रह दिन पहले ही स्वप्न में भविष्यवाणी हुई थी कि जन्म लेने वाला शिशु भविष्य में तीर्थंकर बनकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर समाज के धर्म का मार्ग प्रशस्त करेगा. गौरतलब है कि भगवान महावीर ने 12 सालों तक कठोर तप एवं कष्टों का सामना करके आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था. इस दिन कोलकाता के जैन मंदिर और पावापुरी (बिहार) स्थित मंदिर में इस दिन भव्य स्तर पर पूजा एवं प्रवचन का आयोजन किया जाता है, जिसमें जैन समाज के लोग पूरी आस्था एवं श्रद्धा से भगवान महावीर की आराधना करते हैं. इस दिन भारत के अलावा अमेरिका, यूके, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में भी अवकाश रहता है. यह भी पढ़ें : Odisha Day 2023 Wishes: ओडिशा दिवस की इन शानदार WhatsApp Stickers, GIF Greetings, HD Images, Wallpapers के जरिए दें बधाई
महावीर जयंती का मूल!
भगवान महावीर के जन्म पर तमाम किवदंतियां प्रचलित हैं. उन्हें इक्षाकु वंश का बताया जाता है. इनका जन्म वैशाली (बिहार) में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था. इनके जन्म के समय राजा का राज्य समृद्धि की चरम पर था, इसलिए उनका नाम वर्धमान रखा गया. हालांकि उनके जन्म के संदर्भ में श्वेतांबर जैन का कहना है कि उनका जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था, जबकि दिगंबर जैन के मतानुसार उनका जन्म 615 ईसा पूर्व हुआ था. वर्धमान ने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन को त्याग दिया. 12 वर्ष तक कड़ी तपस्या और तमाम कष्टों को सहते हुए 42 वर्ष की आयु में कैवल्य यानी सर्वज्ञान की प्राप्ति हुई. उन्होंने अपने शिष्यों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी ना करना), ब्रह्मचर्य और अनासक्ति का पालन करने की शिक्षा दी. 72 वर्ष की आयु में पावापुरी में वे निर्वाण को प्राप्त हुए.
महावीर जयंती सेलिब्रेशन
महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्म के अनुयायी उपवास रखते हैं. घर पर पूजा-भजन करने के पश्चात भगवान महावीर का आशीर्वाद लेने जैन मंदिर जाकर मौन प्रार्थना करते हैं. मंदिर के मुनि प्रतिमा का शुद्धिकरण एवं अभिषेक करते हैं. इसके पश्चात फूलों से सजे रथ में प्रतिमा स्थापित करते हैं. रथ के पीछे-पीछे जैन समाज जुलूस निकालते हुए शहर का भ्रमण करते हैं. इस दरम्यान वे भगवान महावीर की शिक्षाओं एवं उपदेशों पठन-पाठन करते हैं. जुलूस के मंदिर वापस आने के पश्चात यह समाज पूरे दिन ध्यान और चिंतन में लगाते हैं. गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन करवाते हैं, तथा अन्य तरीकों से उनकी मदद करते हैं.