‘लोहड़ी' ऋतु-परिवर्तन, कृषि उत्पादन के साथ-साथ धार्मिक आस्थाओं से भी जुड़ा पर्व है. आइये जानें इस पर्व के पीछे की विभिन्न परंपराएं, पूजा-अर्चना एवं लोहड़ी जलाने की मुहूर्त! लोहरी पारंपरिक रूप से कृषक परिवारों का पारंपरिक पर्व है, जो मूलतः मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है. इस अवसर पर खरीफ की नई फसलों (मक्का, तिल, चावल एवं गुड़ आद) को अग्नि देव को अर्पित कर अगली फसलों की समृद्धी की कामना की जाती है, यह पर्व उनके लिए भी बहुत खास होता है, जिस घर में नया मेहमान वह चाहे संतान अथवा नई बहु के रूप में हो या फिर नई फसल के रूप में हो. संतान के पैदा होने अथवा शादी कर जब नई बहु आती है तो लोहड़ी की रात विशेष सेलीब्रेशन होता है. इस पर्व के साथ तमाम किस्म की परंपराएं जुड़ी हैं, जो इस पर्व की महत्ता को कई गुना बढ़ाती हैं. आइये जानें लोहड़ी से जुड़ी तमाम परंपराओं के बारे में.
अग्नि में तिल क्यों अर्पित करते हैं?
गरुड़ पुराण में उल्लेखित है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु की काया से हुई थी, इसीलिए अधिकांश धार्मिक कर्मकाण्डों में तिल का इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार अग्नि में तिल डालने से वातावरण में व्याप्त संक्रमण खत्म हो जाते हैं, और तिल के जलने से उत्पन्न वायु के इर्द-गिर्द परिक्रमा करने से शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त होती है. इसलिए लोहड़ी की रात अग्नि में नई फसलों के साथ-साथ तिल भी अर्पित करने की परंपरा है.
माता सती के साथ लोहड़ी का संबंध!
पुराणों के अनुसार लोहड़ी का पर्व माता सती से भी जुड़ा है. गौरतलब है कि राजा दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित महायज्ञ में जब सती पहुंचीं, तो दक्ष ने शिवजी का अपमान किया. पति के अपमान से क्षुब्ध सती ने अग्नि-कुण्ड में आत्मदाह कर लिया. तब शिवजी ने क्रोधित होकर दक्ष का सिर काट दिया. बाद में दक्ष को अपनी गलती का अहसास हुआ. ब्रह्माजी की प्रार्थना पर शिवजी ने दक्ष के धड़ पर बकरे का सिर लगवाकर जीवन-दान दिया, इसके बाद ही महायज्ञ पूरा हो सका. अगले जन्म में सती पार्वती के रूप में पैदा हुईं. तब दक्ष ने शिवजी को उपहार और आशीर्वाद भेजकर छमा मांगी. वह दिन पौष एकादशी का दिन था. कहते हैं कि इसीलिए लोहड़ी के दिन मायके द्वारा बेटी के लिए ससुराल में उपहार भेजा जाता है. मान्यता है कि इस दिन पश्चिम दिशा की ओर एक दीप जलाकर माता पार्वती की पूजा करने से अक्षुण्य पुण्य की प्राप्ति होती है.
इस दिन क्यों होती है श्रीकृष्णजी की पूजा?
भागवद् पुराण के अनुसार मथुरा के राजा कंस ने बाल श्रीकृष्ण को मारने के लिए खूंखार मायावी लोहिता नामक राक्षसी को भेजा था. उस दिन पूरे मथुरा में लोग अगले दिन मनाये जानेवाले पर्व मकर संक्रान्ति की तैयारी कर रहे थे. इसी अवसर का फायदा उठाते हुए श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने ही लोहिता का खत्म कर दिया. इसीलिए इस तिथि पर श्रीकृष्ण की भी पूजा की जाती है. यह भी पढ़ें : Happy Lohri 2022 HD Images: लोहड़ी की अपनों को दें हार्दिक बधाई, भेजें ये मनमोहक GIF Greetings, Photo Wishes, Wallpapers और WhatsApp Stickers
लोहड़ी जलाने का शुभ मुहूर्त
13 जनवरी शाम 5 बजे से रोहिणी नक्षत्र शुरु होगा. इसी दिन शाम को 05.43 बजे से लोहड़ी जलाने का मुहूर्त शुरु हो जायेगा, तथा रात 07.25 तक लोहड़ी का मुहूर्त समाप्त हो जायेगा.
ऐसे होती है लोहड़ी पर पूजा
जिस स्थान पर लोहड़ी जलाई जानी होती है, वहां पहले पश्चिम दिशा में माता सती एवं श्रीकृष्ण भगवान की फोटो अथवा प्रतिमा स्थापित करते हैं. अब उनके सामने सरसों के तेल का दीप एवं धूप जलाते हैं. माता सती को सिंदूर तथा बिल्व-पत्र एवं श्रीकृष्ण भगवान को रोली का तिलक लगाते हैं. इसके पश्चात भगवान श्रीकृष्ण एवं अग्निदेव का आह्वान कर तिल का लड्डू चढ़ाते हैं. अब सूखे नारियल में कपूर डालकर अग्नि में प्रज्जवलित करते हैं. अंत में अग्नि में तिल का लड्डू, मक्का एवं मूंगफली अर्पित कर सपरिवार जलती लोहड़ी की 7 परिक्रमा करते हुए अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करते हैं.